शिमला ! सीटू जिला कमेटी की बैठक सीटू ऑफिस चितकारा पार्क में जिलाध्यक्ष कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में हुई। बैठक मे मजदूरों के सामने आ रही विभिन्न चुनोतियों पर विस्तारपूर्वक चर्चा हुई। बैठक को सम्बोधित करते हुए सीटू राज्याध्यक्ष विजेंदर मेहरा व राज्य महासचिव प्रेम गौतम ने कहा सिंह, कि केंद्र व राज्य सरकार लगातार मजदूर व किसान विरोधी नीतियों को लागू कर रही है। कोरोना महामारी के इस संकट काल को भी केंद्र की सरकार व राज्य सरकारें मजदूरों व किसानों का खून चूसने व उनके शोषण को तेज करने के लिए इस्तेमाल कर रही हैं। केंद्र सरकार द्वारा संसद में 3 मजदूर विरोधी कोडों को पास कर लिया है जिससे मजदूरों की स्थिति बन्धुआ मजदूर जैसी हो जाएगी, ये श्रम सुधार पूंजीपतियों के पक्ष में किये गए हैं जिससे मजदूरों का शोषण बढेगा उसी तर्ज पर हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान में श्रम कानूनों में बदलाव इसी प्रक्रिया का हिस्सा है। केंद्र सरकार द्वारा कृषि उपज,वाणिज्य एवम व्यापार(संवर्धन एवम सुविधा) बिल 2020,मूल्य आश्वासन(बन्दोबस्ती और सुरक्षा) समझौता कृषि सेवा बिल 2020 व आवश्यक वस्तु अधिनियम(संशोधन) 2020 आदि तीन किसान विरोधी कानूनों को संसद से पास करके किसानों का गला घोंटने का कार्य किया गया है। यह सरकार देश की जनता के संघर्ष के परिणाम स्वरूप वर्ष 1947 में हासिल की गई आज़ादी के बाद जनता के खून-पसीने से बनाए गए बैंक, बीमा, बीएसएनएल, पोस्टल, स्वास्थ्य सेवाओं, रेलवे, कोयला, जल, थल व वायु परिवहन सेवाओं, रक्षा क्षेत्र ,बिजली, पानी व लोक निर्माण आदि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को पूंजीपतियों को कौड़ियों के भाव पर बेचने पर उतारू है। ऐसा करके यह सरकार पूंजीपतियों की मुनाफाखोरी को बढ़ाने के लिए पूरे देश के संसाधनों को बेचना चाहती है। ऐसा करके यह सरकार देश की आत्मनिर्भरता को खत्म करना चाहती है।
हिमाचल प्रदेश सरकार भी इन्हीं नीतियों का अनुसरण कर रही है। कारखाना अधिनियम 1948 में तब्दीली करके हिमाचल प्रदेश में काम के घण्टों को आठ से बढ़ाकर बारह कर दिया गया है। इस से एक तरफ एक-तिहाई मजदूरों की भारी छंटनी होगी वहीं दूसरी ओर कार्यरत मजदूरों का शोषण तेज़ होगा। फैक्टरी की पूरी परिभाषा बदलकर लगभग दो तिहाई मजदूरों को चौदह श्रम कानूनों के दायरे से बाहर कर दिया गया है। ठेका मजदूर अधिनियम 1970 में बदलाव से हजारों ठेका मजदूर श्रम कानूनों के दायरे से बाहर हो जाएंगे। औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 में परिवर्तन से जहां एक ओर अपनी मांगों को लेकर की जाने वाली मजदूरों की हड़ताल पर अंकुश लगेगा वहीं दूसरी ओर मजदूरों की छंटनी की पक्रिया आसान हो जाएगी व उन्हें छंटनी भत्ता से भी वंचित होना पड़ेगा। तालाबंदी,छंटनी व ले ऑफ की प्रक्रिया भी मालिकों के पक्ष में हो जाएगी। मॉडल स्टेंडिंग ऑर्डरज़ में तब्दीली करके फिक्स टर्म रोज़गार को लागू करने व मेंटेनेंस ऑफ रिकोर्डज़ को कमज़ोर करने से श्रमिकों की पूरी सामाजिक सुरक्षा खत्म हो जाएगी। उन्होंने मजदूर व किसान विरोधी कदमों व श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी बदलावों पर रोक लगाने की मांग की है। उन्होंने सरकार को चेताया है कि अगर पूंजीपतियों, नैेगमिक घरानों व उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाकर मजदूरों -किसानों के शोषण को रोका न गया तो मजदूर-किसान सड़कों पर उतरकर सरकार का प्रतिरोध तीखे रूप में करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि मजदूरों की राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी परिवर्तन की प्रक्रिया पर रोक लगाने, मजदूरों का वेतन 21 हज़ार रुपये घोषित करने,सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को बेचने पर रोक लगाने,किसान विरोधी अध्यादेशों को वापिस लेने,मजदूरों को कोरोना काल के पांच महीनों का वेतन देने,उनकी छंटनी पर रोक लगाने,किसानों की फसलों का उचित दाम देने,कर्ज़ा मुक्ति,मनरेगा के तहत दो सौ दिन का रोज़गार,कॉरपोरेट खेती पर रोक लगाने, आंगनबाड़ी, मिड डे मील व आशा वर्करज़ को नियमित कर्मचारी घोषित करने,फिक्स टर्म रोज़गार पर रोक लगाने,हर व्यक्ति को महीने का दस किलो मुफ्त राशन देने व 7500 रुपये की आर्थिक मदद देने की मांगें लगातार उठा रही है परंतु देश की सरकार का रुख पूर्ण रूप से तानशाही पूर्ण है जिसके लिए भविष्य में मजदूर किसान आन्दोलन को जन आंदोलन बनाते हुए आगे बढ़ना होगा ।
उन्होंने मांग की है कि केंद्र सरकार कोरोना काल में सभी किसानों का रबी फसल का कर्ज माफ करे व खरीफ फसल के लिए केसीसी जारी करे। किसानों की पूर्ण कर्ज़ माफी की जाए। किसानों को फसल का सी-2 लागत से 50 फीसद अधिक दाम दिया जाए। किसानों के लिए “वन नेशन-वन मार्किट” नहीं बल्कि”वन नेशन-वन एमएसपी” की नीति लागू की जाए। किसानों व आदिवासियों की खेती की ज़मीन कम्पनियों को देने व कॉरपोरेट खेती पर रोक लगाई जाए।