प्रदेश में कार्यरत लाखों मजदूरों को आर्थिक व राशन के रूप में मदद सुनिश्चित की जाए – विजेंद्र मेहरा।

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फाइल चित्र
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शिमला ! सीटू राज्य कमेटी ने हिमाचल प्रदेश सरकार से मांग की है कि कोरोना महामारी के मध्यनजर किये गए लॉक डाउन व कर्फ्यू की स्थिति में प्रदेश में कार्यरत संगठित व असंगठित क्षेत्र में कार्यरत लाखों मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा दी जाए तथा उनकी आर्थिक व राशन के रूप में उनकी मदद सुनिश्चित की जाए।

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सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने कहा है कि प्रदेश में कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न परिस्थिति से सबसे ज़्यादा नुकसान मजदूर वर्ग को ही हुआ है। इस स्थिति में मजदूर भारी आर्थिक व मानसिक परेशानी में हैं। रातोंरात उनका रोजगार खत्म हो गया है। हमीरपुर के नादौन में लगभग भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके उत्तर प्रदेश निवासी एक मजदूर ने आत्महत्या करने की कोशिश की है। इस से साफ हो रहा है कि मजदूरों की स्थिति आने वाले दिनों में और बुरी होने वाली है। जेब में पैसा न होने के कारण प्रदेश में सैंकड़ों मजदूर पैदल मार्च करके घरों की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। ऐसे अनेकों उदाहरण कांगड़ा-पठानकोट,मैहतपुर-नंगल,कालाअंब-हरियाणा,बद्दी-चंडीगढ़,पौंटा साहिब-उत्तराखंड व परवाणू-कालका सीमा में देखने को मिले हैं।

विजेंद्र मेहरा ने कहा है सबसे बुरी स्थिति असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की है। प्रदेश में मनरेगा में लगभग बारह लाख जॉब कार्ड होल्डर हैं। इसके सिवाए असंगठित क्षेत्र में मिस्त्री,मजदूर,इलेक्ट्रीशियन,वेल्डर,कारपेंटर,प्लम्बर आदि के रूप में लगभग तीन लाख निर्माण मजदूर कार्यरत हैं। इन पन्द्रह लाख लोगों में से ज़्यादातर लोग हर रोज़ दिहाड़ी लगाकर गुज़र -बसर करने वाले लोग हैं। कोरोना के कारण इनका रोजगार पूरी तरह खत्म हो गया है। सरकार ने हिमाचल प्रदेश श्रमिक कल्याण बोर्ड से जो दो हज़ार रुपये मासिक आर्थिक सहायता की घोषणा की है वह भी कानून अनुसार बोर्ड में पंजीकृत लगभग एक लाख मजदूरों पर ही लागू होती है। हालांकि यह भी नाकाफी है। उन्होंने सरकार से अपील की है कि इन सभी पन्द्रह लाख मजदूरों के परिवार को आगामी तीन महीनों के लिए प्रति माह पांच हज़ार रुपये की मदद राज्य सरकार दे व साथ ही तीन महीने का प्रति माह 35 किलो मुफ्त राशन एकमुश्त इन्हें दिया जाए। इन मजदूरों में लगभग एक लाख से ज़्यादा मजदूर प्रवासी हैं व वे अपने प्रदेश में लौटने में असमर्थ हैं अतः राशन कार्ड न होने के बावजूद भी पांच हज़ार रुपये के साथ उन्हें भी राशन की यही व्यवस्था लागू की जाए।

प्रेम गौतम ने कहा है कि प्रदेश के निजी उद्योगों व अन्य स्थापनाओं में लगभग दो लाख से ज़्यादा मजदूर कार्यरत हैं। लॉक डाउन के कारण ये उद्योग व स्थापनाएं लगभग बन्द हो चुके हैं। मज़दूरों को छुट्टी देकर घर भेजा जा रहा है। इन सभी के प्रबंधनों ने मजदूरों को आदेश दिया है कि लॉक डाउन व कर्फ्यू के कारण दी गयी यह छुट्टी अवैतनिक होगी व उन्हें उसका वेतन नहीं मिलेगा। शिमला नगर निगम के सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट भरयाल टूटू में भी यही फार्मूला अख्तियार किया गया है। ऐसे वातावरण में इन मजदूरों का जीवन जीना मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने मांग की है कि सरकार इन सभी निजी उद्योगों,निजी स्थापनाओं व सरकारी क्षेत्र में कार्यरत आउटसोर्स कम्पनियों को सख्त दिशानिर्देश जारी करें कि इन सभी मजदूरों को पूरे माह का वेतन हर हाल में दिया जाए व उनकी छुट्टियां वेतन सहित होंगी।

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