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शिमला , 16 दिसंबर [ देवेंद्र धर ] ! बात पुरानी है ,भारतीय जनता पार्टी की सरकार के समय में देहरा (कांगड़ा) के निर्दलीय विधायक होशियार सिंह ने जब प्रदेश में बढ़ रहे सीमेंट के भाव पर सवाल उठाए थे तो तत्कालीन उद्योग मंत्री नें होशियार सिंह का मज़ाक उड़ाते हुए कहा था कि होशियार सिंह बहुत होशियार हैं। आज जब सीमेंट फैक्ट्रियों लॉकडाउन कर गईं हैं और कांग्रेस की सरकार बनते ही अपने आंतरिक कलह के चलते एक बड़ी चुनौती वर्तमान सरकार सामने आ खड़ी है। प्रदेश के लगभग 18,000 से 20,000 परिवारों पर जीविकोपार्जन का संकट हो गया है। हिमाचल की औद्योगिक इकाईयों में प्रबंधन द्वारा तालाबंदी घोषित करना कोई नई बात नहीं हैं। पूंजीपति अपने लाभ व सरकारों को ग्रसित करने तथा सरकार को अपने कब्जे में करने के लिए इस तरह के हथकंडे अपनाती ही रहती हैं। कम्पनी घाटे में है, मजदूर हड़ताल पर हैं, कंपनी को भारी नुकसान हो रहा हैं ,इसलिए फैक्ट्री पर ताला लगा देना सामान्य बात है । बद्दी ,बरोटीवाला आदि हिमाचल के अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में यह सब आये दिन होता हैं। प्रबंधन के ऐसे फैसले आर्थिक कारणों से व राजनीतिक दबाव बनाने के लिए भी लिये गये हैं। यह किसी भी राजनैतिक दल के लिए हर्ष का विषय नहीं हो सकता हैं। यह मामला सीधा सीधा प्रदेश की जनता से जुड़ा हुआ हैं जिसका उद्योगपतियों ने बिना किसी कर्मचारियों व मजदूरों संगठनों की सहभागिता के उनको प्रताड़ित करने व सरकार को विस्थिति में डालने के लिए द्वेषपूर्ण लिया गया फैसला है ,जिसमें सरकार भी एक पक्ष है क्योंकि सीमेंट की कीमतों व अन्य मूल्यों पर नियंत्रण रखना सरकार का दायित्व हैं। तालाबंदी की गई इन औद्योगिक इकाईयों को मजदूर आंदोलन के कारण बंद नहीं किया है। क्या यह मामला "औद्योगिक विवाद अधिनियम " की परिसीमा में आता है?. सरकार को अपनी शक्तियों का प्रयोग कर मामले को जल्द-से-जल्द निपटाना चाहिए ताकि प्रदेश के लोग लंबे समय तक प्रताड़ित ना हो। इन उद्योगों से अपनी जीविका चलाने वाले लोग भूखे न मरें। सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रहे यह ठीक नहीं हैं। सरकार को चाहिए कि वे बिन समय बर्बादी के सब पक्षों से बात करे फिलहाल उद्योग मंत्री की उनुपस्थिति उद्योग सचिव या वरिष्ठ अधिकारी को यह मामला सुलझाने का दायित्व दिया जाए। इन औद्योगिक इकाईयों के मालिकों को कठोरतम संदेश देना बहुत जरुरी हैं कि सरकार इन मामलों को लेकर बहुत गंभीर है। किसी भी स्थित में नियमानुसार तत्काल एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त कर इकाईयों को खोलने के प्रयास किए जाने चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाना भी जरूरी है कि यह तालाबंदी गैर कानूनी हैं। सरकार अब "सिंगल ईंजन" की हो गई है। केंद्र सरकार की निजीकरण की नीति के विपरीत राज्य सरकार को प्रयास करने चाहिए कि ऐसी बडी कंपनियों से उद्योगों लेकर सरकारी क्षेत्र में लाये जाएं या सरकार व निजी-सार्वजनिक क्षेत्र में मिल कर प्रयास किये जाएं। हिमाचल में सीमेंट उद्योग को लेकर नाहन का अनुभव ठीक नहीं है।सरकार स्वंय भी चलाने का प्रयोग कर सकती है।संसाधन जुटाने होंगे ताकि तालाबंदी के हिमायतियों को कठोर संदेश मिले। निवर्तमान सरकार से किये गये करारों को भी देखना होगा। अगर कोई सीमेंट उद्योग बंद करना चाहे तो हरियाणा में पंचकूला के पास सुरजपुर में बंद हुई सीमेंट की फैक्ट्री को बंद किये जाने के न्यायालय के आदेश व दिये जाने वाले मुआवजे देने जरूरी हैं। देखना है उंट किस करवट बैठता है।
शिमला , 16 दिसंबर [ देवेंद्र धर ] ! बात पुरानी है ,भारतीय जनता पार्टी की सरकार के समय में देहरा (कांगड़ा) के निर्दलीय विधायक होशियार सिंह ने जब प्रदेश में बढ़ रहे सीमेंट के भाव पर सवाल उठाए थे तो तत्कालीन उद्योग मंत्री नें होशियार सिंह का मज़ाक उड़ाते हुए कहा था कि होशियार सिंह बहुत होशियार हैं।
आज जब सीमेंट फैक्ट्रियों लॉकडाउन कर गईं हैं और कांग्रेस की सरकार बनते ही अपने आंतरिक कलह के चलते एक बड़ी चुनौती वर्तमान सरकार सामने आ खड़ी है। प्रदेश के लगभग 18,000 से 20,000 परिवारों पर जीविकोपार्जन का संकट हो गया है।
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हिमाचल की औद्योगिक इकाईयों में प्रबंधन द्वारा तालाबंदी घोषित करना कोई नई बात नहीं हैं। पूंजीपति अपने लाभ व सरकारों को ग्रसित करने तथा सरकार को अपने कब्जे में करने के लिए इस तरह के हथकंडे अपनाती ही रहती हैं।
कम्पनी घाटे में है, मजदूर हड़ताल पर हैं, कंपनी को भारी नुकसान हो रहा हैं ,इसलिए फैक्ट्री पर ताला लगा देना सामान्य बात है ।
बद्दी ,बरोटीवाला आदि हिमाचल के अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में यह सब आये दिन होता हैं।
प्रबंधन के ऐसे फैसले आर्थिक कारणों से व राजनीतिक दबाव बनाने के लिए भी लिये गये हैं। यह किसी भी राजनैतिक दल के लिए हर्ष का विषय नहीं हो सकता हैं।
यह मामला सीधा सीधा प्रदेश की जनता से जुड़ा हुआ हैं जिसका उद्योगपतियों ने बिना किसी कर्मचारियों व मजदूरों संगठनों की सहभागिता के उनको प्रताड़ित करने व सरकार को विस्थिति में डालने के लिए द्वेषपूर्ण लिया गया फैसला है ,जिसमें सरकार भी एक पक्ष है क्योंकि सीमेंट की कीमतों व अन्य मूल्यों पर नियंत्रण रखना सरकार का दायित्व हैं।
तालाबंदी की गई इन औद्योगिक इकाईयों को मजदूर आंदोलन के कारण बंद नहीं किया है। क्या यह मामला "औद्योगिक विवाद अधिनियम " की परिसीमा में आता है?. सरकार को अपनी शक्तियों का प्रयोग कर मामले को जल्द-से-जल्द निपटाना चाहिए ताकि प्रदेश के लोग लंबे समय तक प्रताड़ित ना हो। इन उद्योगों से अपनी जीविका चलाने वाले लोग भूखे न मरें।
सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रहे यह ठीक नहीं हैं। सरकार को चाहिए कि वे बिन समय बर्बादी के सब पक्षों से बात करे फिलहाल उद्योग मंत्री की उनुपस्थिति उद्योग सचिव या वरिष्ठ अधिकारी को यह मामला सुलझाने का दायित्व दिया जाए। इन औद्योगिक इकाईयों के मालिकों को कठोरतम संदेश देना बहुत जरुरी हैं कि सरकार इन मामलों को लेकर बहुत गंभीर है। किसी भी स्थित में नियमानुसार तत्काल एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त कर इकाईयों को खोलने के प्रयास किए जाने चाहिए।
यह सुनिश्चित किया जाना भी जरूरी है कि यह तालाबंदी गैर कानूनी हैं। सरकार अब "सिंगल ईंजन" की हो गई है। केंद्र सरकार की निजीकरण की नीति के विपरीत राज्य सरकार को प्रयास करने चाहिए कि ऐसी बडी कंपनियों से उद्योगों लेकर सरकारी क्षेत्र में लाये जाएं या सरकार व निजी-सार्वजनिक क्षेत्र में मिल कर प्रयास किये जाएं।
हिमाचल में सीमेंट उद्योग को लेकर नाहन का अनुभव ठीक नहीं है।सरकार स्वंय भी चलाने का प्रयोग कर सकती है।संसाधन जुटाने होंगे ताकि तालाबंदी के हिमायतियों को कठोर संदेश मिले। निवर्तमान सरकार से किये गये करारों को भी देखना होगा। अगर कोई सीमेंट उद्योग बंद करना चाहे तो हरियाणा में पंचकूला के पास सुरजपुर में बंद हुई सीमेंट की फैक्ट्री को बंद किये जाने के न्यायालय के आदेश व दिये जाने वाले मुआवजे देने जरूरी हैं। देखना है उंट किस करवट बैठता है।
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