- विज्ञापन (Article Top Ad) -
हिमाचल, 28 दिसंबर [ देवेन्द्र धर ] ! हमने अपने 23 दिसंबर के लेख में हमीरपुर में स्थापित सरकार की तृतीय श्रेणी की नौकरियों को "बांटने" वाली संस्था 'हि.प्र . अधिनस्थ कर्मचारी चयन बोर्ड 'की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाये थे व सरकार से निवेदन किया था कि इन "काली भेड़ों" को सख्त संदेश देने की तत्काल आवश्यकता हैं साथ ही सरकारी नौकरी की तलाश करने वालों प्रदेश के लोगों के विश्वासपात्र बनना सरकार के लिए बहुत-बहुत जरूरी हैं। दल या दलदल कुछ भी कहे यह जरूरी हो गया था कि एक भ्रष्टाचार के बने अड्डे को ध्वस्त किया जाए । यह कर्मचारी बोर्ड अपने जन्म से ही संदेहास्पद व अविश्वसनीय कार्यप्रणाली के लिए जाना जाता रहा है। हिमाचल प्रदेश के इतिहास में पहला ऐसा अवसर है शायद जब सरकार ने त्वरित कार्रवाई करते हुए भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की कोशिश की हो वह भी बिना किसी जांच आयोग को बैठाए एकदम और निर्भीक तरीके से। पुलिस भर्ती का जो पर्चा लीक हुआ था उसकी भी जांच कर जिम्मेदार अधिकारियों को जनता के समक्ष लाना जरूरी है। क्या औचित्य रह गया था कर्मचारी चयन आयोग का जब कहा जाता था कि " चिट लाओ नौकरी पाओ" । सत्य तो यह है कि जैसे हमने पहले लेख में सुझाव दिया था, जब तक कि कर्मचारी आयोग की विश्वसनीयता ना बहाल हो इस संस्था को निरस्त करना चाहिए । पेेपर लीक मामले में उक्त आरोपी महिला जब से बोर्ड की गोपनीय शाखा में काम कर रही थी व उस दौरान किस तरह की कितनी परीक्षाएं आयोजित की गईं उन की भी जांच पारदर्शी तरीके से कर के जनता के समक्ष आनी चाहिए। पिछले दस वर्षों से परीक्षाओं व गोपनीय शाखा से संबंधित कर्मचारियों की नियुक्ति व प्रतिनियुक्ति का भी आकलन किया जाना जरूरी है। ऐसा नहीं होना चाहिए कि " जो पकड़ा गया वह चोर" । हरियाणा सरकार में ओम प्रकाश चौटाला सरकार के दौरान अध्यापकों की नियुक्ति पर क्या हुआ और फिर माननीय न्यायालय ने क्या सज़ा दी हम यहां उल्लेख करना बिल्कुल प्रासंगिक समझ रहे हैं। राजनैतिक दल विशेष कर हिमाचल के संदर्भ में कांग्रेस हो या भारतीय जनता पार्टी हो सरकारी नौकरियों को लेकर अपनी 'गोटियां' फिट करतीं आई हैं यह कोई नई बात नहीं है। इस तरह से पर्चे फूटना दुर्भाग्यपूर्ण है। सारी दाल ही काली हो जाए यह संभव नही हो सकता। राज्य सहकारी बैंक के पूर्व अध्यक्ष रहे हर्ष महाजन पर भी अपने कार्य काल के दौरान बैंक में नियुक्तियों को लेकर इसी तरह के आरोप लगे थे। वो आरोप कितने सही थे यह जांच का विषय है। अपनी सरकार में तो काम चल गया था। फिर उन्होंंने पाला बदला अब लेकिन सरकार भी बदल गई है। हम कुछ सुझाव सभी परीक्षा लेने वाली संस्थानों बोर्डों व विश्व विद्यालयों के लिए सरकार के समक्ष रखना चाहेंगे :- 1. इन संस्थानों के लिए मॉडल 'आचरण का तरीका' तय किया जाना जरुरी है। जैसे कि संघ लोक सेवा आयोग के पास है। 2. इस तरस के हर अनुभाग व विभाग में निर्धारित स्वत: ही 'रोटेशनल मोड़'में कर्मचारियों अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति के आधार पर तैनाती होनी चाहिए ताकि कोई भी सरकार आये जाये "आचरण" का उल्लंघन ना हो सके और कर्मचारी, अधिकारी निर्धारित समयावधि से अधिक ना रहें ।संवेदनशील स्थानों पर यह अवधि सामान्य से कम समय के लिए हो। 3. नौकरियों के लिए परीक्षा के बाद साक्षात्कार के लिए पांच लोगों का पैनल बनाया जाए व तीन लोगों को राज्य के बाहर से बुलाया जाए । अभ्यर्थी को पारदर्शी तरीके से साक्षात्कार के मूल्यांकन जानने का अधिकार हो। अक्सर देखा गया है कि एक अभ्यर्थी लिखित परीक्षणा में उच्च दर्जा पा कर भी साक्षात्कार में रह जाता है। राज्य संघ लोक सेवा आयोग में राजनैतिक आधार पर उच्च नियुक्तियों को करना बंद किया जाए। 4. बैंक की तरह परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाओं आई. बी. पी. एस. के आधार पर ''गोपनीय' रखा जाए। 5. सारी व्यवस्थाओं को लागू करना संभव हैं ये पहले से ही प्रचलन में हैं, जहां न किसी की दखल रहती है न पर्चे फूटते हैं। जो भी हो सरकार ने पहली बार कुछ गंभीरता दिखाई है तो बिना किसी राजनैतिक स्वार्थ के मुक्त कंठ से त्वरित कार्रवाई के लिए सुक्खू सरकार के इस कार्य की आलोचना नहीं की जा सकती।पिछला लेख देखने के लिए क्लिक करें ! हिमाचल ! क्यों फूटते हैं हिमाचल में परीक्षाओं के पर्चे – देवेंद्र धर !
हिमाचल, 28 दिसंबर [ देवेन्द्र धर ] ! हमने अपने 23 दिसंबर के लेख में हमीरपुर में स्थापित सरकार की तृतीय श्रेणी की नौकरियों को "बांटने" वाली संस्था 'हि.प्र . अधिनस्थ कर्मचारी चयन बोर्ड 'की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाये थे व सरकार से निवेदन किया था कि इन "काली भेड़ों" को सख्त संदेश देने की तत्काल आवश्यकता हैं साथ ही सरकारी नौकरी की तलाश करने वालों प्रदेश के लोगों के विश्वासपात्र बनना सरकार के लिए बहुत-बहुत जरूरी हैं।
दल या दलदल कुछ भी कहे यह जरूरी हो गया था कि एक भ्रष्टाचार के बने अड्डे को ध्वस्त किया जाए । यह कर्मचारी बोर्ड अपने जन्म से ही संदेहास्पद व अविश्वसनीय कार्यप्रणाली के लिए जाना जाता रहा है। हिमाचल प्रदेश के इतिहास में पहला ऐसा अवसर है शायद जब सरकार ने त्वरित कार्रवाई करते हुए भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की कोशिश की हो वह भी बिना किसी जांच आयोग को बैठाए एकदम और निर्भीक तरीके से। पुलिस भर्ती का जो पर्चा लीक हुआ था उसकी भी जांच कर जिम्मेदार अधिकारियों को जनता के समक्ष लाना जरूरी है। क्या औचित्य रह गया था कर्मचारी चयन आयोग का जब कहा जाता था कि " चिट लाओ नौकरी पाओ" । सत्य तो यह है कि जैसे हमने पहले लेख में सुझाव दिया था, जब तक कि कर्मचारी आयोग की विश्वसनीयता ना बहाल हो इस संस्था को निरस्त करना चाहिए । पेेपर लीक मामले में उक्त आरोपी महिला जब से बोर्ड की गोपनीय शाखा में काम कर रही थी व उस दौरान किस तरह की कितनी परीक्षाएं आयोजित की गईं उन की भी जांच पारदर्शी तरीके से कर के जनता के समक्ष आनी चाहिए। पिछले दस वर्षों से परीक्षाओं व गोपनीय शाखा से संबंधित कर्मचारियों की नियुक्ति व प्रतिनियुक्ति का भी आकलन किया जाना जरूरी है। ऐसा नहीं होना चाहिए कि " जो पकड़ा गया वह चोर" । हरियाणा सरकार में ओम प्रकाश चौटाला सरकार के दौरान अध्यापकों की नियुक्ति पर क्या हुआ और फिर माननीय न्यायालय ने क्या सज़ा दी हम यहां उल्लेख करना बिल्कुल प्रासंगिक समझ रहे हैं। राजनैतिक दल विशेष कर हिमाचल के संदर्भ में कांग्रेस हो या भारतीय जनता पार्टी हो सरकारी नौकरियों को लेकर अपनी 'गोटियां' फिट करतीं आई हैं यह कोई नई बात नहीं है। इस तरह से पर्चे फूटना दुर्भाग्यपूर्ण है। सारी दाल ही काली हो जाए यह संभव नही हो सकता। राज्य सहकारी बैंक के पूर्व अध्यक्ष रहे हर्ष महाजन पर भी अपने कार्य काल के दौरान बैंक में नियुक्तियों को लेकर इसी तरह के आरोप लगे थे। वो आरोप कितने सही थे यह जांच का विषय है। अपनी सरकार में तो काम चल गया था। फिर उन्होंंने पाला बदला अब लेकिन सरकार भी बदल गई है। हम कुछ सुझाव सभी परीक्षा लेने वाली संस्थानों बोर्डों व विश्व विद्यालयों के लिए सरकार के समक्ष रखना चाहेंगे :- 1. इन संस्थानों के लिए मॉडल 'आचरण का तरीका' तय किया जाना जरुरी है। जैसे कि संघ लोक सेवा आयोग के पास है। 2. इस तरस के हर अनुभाग व विभाग में निर्धारित स्वत: ही 'रोटेशनल मोड़'में कर्मचारियों अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति के आधार पर तैनाती होनी चाहिए ताकि कोई भी सरकार आये जाये "आचरण" का उल्लंघन ना हो सके और कर्मचारी, अधिकारी निर्धारित समयावधि से अधिक ना रहें ।संवेदनशील स्थानों पर यह अवधि सामान्य से कम समय के लिए हो। 3. नौकरियों के लिए परीक्षा के बाद साक्षात्कार के लिए पांच लोगों का पैनल बनाया जाए व तीन लोगों को राज्य के बाहर से बुलाया जाए । अभ्यर्थी को पारदर्शी तरीके से साक्षात्कार के मूल्यांकन जानने का अधिकार हो। अक्सर देखा गया है कि एक अभ्यर्थी लिखित परीक्षणा में उच्च दर्जा पा कर भी साक्षात्कार में रह जाता है। राज्य संघ लोक सेवा आयोग में राजनैतिक आधार पर उच्च नियुक्तियों को करना बंद किया जाए। 4. बैंक की तरह परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाओं आई. बी. पी. एस. के आधार पर ''गोपनीय' रखा जाए। 5. सारी व्यवस्थाओं को लागू करना संभव हैं ये पहले से ही प्रचलन में हैं, जहां न किसी की दखल रहती है न पर्चे फूटते हैं। जो भी हो सरकार ने पहली बार कुछ गंभीरता दिखाई है तो बिना किसी राजनैतिक स्वार्थ के मुक्त कंठ से त्वरित कार्रवाई के लिए सुक्खू सरकार के इस कार्य की आलोचना नहीं की जा सकती।पिछला लेख देखने के लिए क्लिक करें ! हिमाचल ! क्यों फूटते हैं हिमाचल में परीक्षाओं के पर्चे – देवेंद्र धर !- विज्ञापन (Article Inline Ad) -
- विज्ञापन (Article Bottom Ad) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 1) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 2) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 3) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 4) -