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सोलन ! कृषि-बागवानी और संबद्ध गतिविधियों से किसानों की आय बढ़ाने के लिए डॉ॰ वाई॰ एस॰ परमार औदयानिकी और वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी ने विश्वविद्यालय के खेतों के तालाबों में मछली पालन शुरू कर दिया है। हाल ही में, विश्वविद्यालय ने चार उन्नत प्रजातियों की मछलियों के 3,000 शिशुओं को विवि के तालाबों में डाला गया। विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. परविंदर कौशल ने मुख्य परिसर के मॉडल फार्म में जल भंडारण तालाबों में इन मछलियों को डाला। इस अवसर पर डॉ. एम के ब्रह्मी, ओएसडी, डॉ. के एस पंत, संयुक्त निदेशक, डॉ. रोहित बिष्ट, डॉ. केएल शर्मा, डॉ. दीपक सुम्ब्रिया सहित तकनीकी और फील्ड स्टाफ, जो इस परियोजना पर काम करेंगे मौजूद रहे। इन मछलियों को हिमाचल प्रदेश राज्य मत्स्य विभाग के नालागढ़ प्रजनन फार्म से खरीदा गया था। इनमें हंगेरियन कार्प, मृगल, जयंती रोहू और कटला शामिल हैं। जहां हंगेरियन कार्प और मृगल बॉटम फीडर हैं वहीं जयंती रोहू और कटला क्रमशः कॉलम और सरफेस फीडर होती है। विश्वविद्यालय में मत्स्य पालन के क्षेत्र का अध्ययन करने के लिए सहायक निदेशक मात्स्यिकी डॉ. हमीर चंद ने मुख्य परिसर के खेतों का दौरा किया। मत्स्य पालन शुरू करने से पहले, डॉ. सोम नाथ, वरिष्ठ मत्स्य अधिकारी ने विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक और प्रबंधकीय कर्मियों को वैज्ञानिक मछली पालन के विभिन्न पहलुओं से परिचित करवाने के लिए दो प्रशिक्षण प्रदान किए। नालागढ़ और देवली में मछली प्रजनन फार्मों का एक्सपोजर दौरा भी किया गया। इस अवसर पर डॉ. परविंदर कौशल ने कहा कि विश्वविद्यालय ने कृषि-बागवानी, वानिकी और डेयरी गतिविधियों के अलावा मत्स्य पालन भी शुरू किया है। उन्होंने कहा कि कृषि-बागवानी और डेयरी गतिविधियों के साथ मत्स्य पालन से कृषि आय में वृद्धि हो सकती है। डॉ कौशल ने कहा कि हमारा मुख्य उद्देश्य वैज्ञानिक तर्ज पर वाणिज्यिक मत्स्य पालन और उत्पादन प्रदर्शन इकाइयों की स्थापना करना और नए तकनीकी हस्तक्षेपों के माध्यम से मछली पालन और प्रजनन प्रौद्योगिकी के शोधन पर कार्य करना है। डॉ. कौशल ने कहा कि हम भविष्य में पोल्ट्री और डक कल्चर को शामिल करके मछली आधारित एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल स्थापित करने की दिशा में कार्य करना चाहते हैं। विश्वविद्यालय मछली पालन को व्यापक बनाने और किसानों, विशेष रूप से राज्य के बेरोजगार युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान करेगा जिससे मछली पालन क्षेत्र को बढ़ाने और मछली उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने और उत्थान में मददगार होगा और किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। इसके अलावा, विश्वविद्यालय छात्रों को व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए अच्छी तरह से सुसज्जित होगा। विश्वविद्यालय ने हिमाचल प्रदेश में मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए 3.00 करोड़ रुपये के वैज्ञानिक हस्तक्षेप और क्षमता निर्माण पर एक परियोजना प्रस्ताव भी तैयार किया है जिसे राज्य सरकार के माध्यम से भारत सरकार की प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत वित्तीय सहायता के लिए भेजा जाएगा।
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