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हिमाचल प्रदेश पर्यटन निगम के पूर्व उपाध्यक्ष शिमला शहरी से कांग्रेस प्रत्याशी रहे हरीश जनारथा ने पर्यटन निगम की वित्तिय स्थिति और इससे पैदा हुए हालातों को चिंताजनक बताया है। जनारथा ने इस स्थिति को बेहतर तरीके से संभालने और निगम कर्मचारियों में इसे लेकर निराशा को दूर करने के लिए अबिलम्ब उचित कदम उठाने की मांग की है। कारोना काल मे पर्यटन निगम को हुए नुकसान के बाद निगम जिस हालात से गुजर रहा है उसके लिए सरकार का सकारात्मक सहयोग बेहद ज़रूरी है। हिमाचल प्रदेश निगम की वित्तीय स्थिति और निगम कर्मचारियों के वित्तीय लाभ पर प्रदेश सरकार और निगम प्रबंधन का असंवेदनशील रवैया और नकारात्मकता बड़े संकट और असंतोष की वजह। दुनिया भर में पर्यटन के लिए मशहूर "पर्यटन निगम के कर्मठ कर्मचारियों को महीनों नही मिल पाता वेतन और अन्य कर्मचारियों की तरह वित्तीय लाभ और भत्ते। आखिर सरकार और निगम प्रबंधन क्यों नही चाहता प्रदेश की आर्थिकी की रीढ़ #पर्यटन_निगम को इस स्थिति से बाहर निकलना । हज़ारों कर्मचारियों और पर्यटन पर निर्भर लाखो प्रदेशवासियों के लिए सरकार का यह व्यवहार किस तरफ ले जाएगा हिमाचल के पर्यटन निगम कारोबार को। दुनिया भर में पर्यटन के बुते पहचान बनाने और राज्य की आर्थिक मजबूती के आधार पर्यटन मिगम के दिनों दिन खस्ता होते हालात बेहद चिंता का विषय है। निगम कर्मचारियों को सरकार और प्रबधन जिस तरह से सौतेला व्यवहार कर रहा है वो इससे भी ज्यादा चिंता का कारण है। माहमारी के दौरान हालांकि दुनिया भर के हर सेक्टर को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा है लेकिन अगर सबसे ज्यादा प्रभावित कोई क्षेत्र हुआ तो पर्यटन और इससे जुड़े कारोबार। लेकिन स्थिति सामान्य होते ही हिमाचल पर्यटन निगम ने अपनी सारी ताकत से दोबारा पटरी ओर आने के लिए दिन रात एक किया। कारोना संकट और खतरों के बीच प्रोटोकॉल के बीच नुकसान की भरपाई के लिए प्रयास शुरू कर दिए। उन दिनों में भी जब बाकि संस्थानों में अल्टरनेट डे या फाइव डे वीक की व्यबस्था लागू थी, उन मुश्किल दिनों में भी पर्यटन निगम के कर्मचारी पूरी ईमानदारी से कारोना काल मे हुए नुकसान की भरपाई और संस्थान को घाटे से उभारने के लिए पर्यत्नशील रहे। बावजूद इसके निगम प्रबंधन इनकी सेवाओं और प्रयासों की सरहाना और हौंसलाफ़जायी करने की जगह दो सालों से वेतन भत्तों और अन्य मिलने वाले लाभ से लगातार वंचित कर रहा है। हालात इतने नाजुक बनाये जा रहे है कि ज्यादातर कर्मचारी वित्तिय दबाव के चलते बच्चो की स्कूल कॉलेज की फीस घर का रोजमर्रा के खर्चा उठाने में भी असमर्थ बता रहे है। निगम में सेवारत कुछ कर्मचारियों ने तो ऐसे हालातों में मजबूरन आत्महत्या जैसी स्थिति पैदा होने का अंदेशा जताया है। इन कर्मचारियों के मुताबिक" अगर निगम की वितीय स्थिति और हालात इतने नाजुक या ढांचा चरमरा गया है तो क्यों सरकार और निगम प्रबंधन किसी तरह का रास्ता निकालने का प्रयास क्यों नही कर रहा? हर तीन चार महीने बाद मिलने वाले वेतन के लिए हर बार खुद व्यवस्था करने की चेतावनी देना, घाटे का रोना रोना और आर्थिक हालात बेहद खराब बताने से समस्या का समाधान होना सम्भव नहीं। सरकार को निगम को कारोना काल मे हुए नुकसान की भरपाई के लिए अनुदान देकर आगे बढ़ने का रास्ता निकलना चाहिए। वरना कर्मचारियों के मनोबल के गिरने ज़रे प्रदेश का सबसे बड़ा और मजबूत पर्यटन निगम का टूटना और डूबना कोई नही रोक पायेगा, जो न तो निगम न सरकार और न ही हिमाचल की पहचान के लिए हितकर होगा। हिमाचल पर्यटन निगम कर्मचारी लगभग 2 सालों से अपना मासिक वेतन समय पर ना मिलने और अपने वित्तीय लाभ जैसे जुलाई 2016 से देय 8% IR के एरियर , 2018-19 में देय 4% और 5% D.A. के एरियर ना मिलने से मेहरून है। अब तो मासिक वेतन भी एक-दो महीना देरी से मिल रहा है निगम कर्मचारियों कि इस कोविड-19 महामारी की स्थिति को प्रदेश सरकार और निगम प्रबंधन सूध ले एक आश्चर्य का विषय भी है यूं तो प्रदेश सरकार पर्यटन को प्रदेश की आय अर्जित करने का एक अच्छा स्रोत मानती है। प्रदेश की युवा पीढ़ी को भी पर्यटन गतिविधियों से अपनी अच्छी आय अर्जित करने के लिए पर्यटन को ही अपने शिर्ष पर रखती है। लेकिन निगम की विडंबना कुछ इस तरह है कि निगम के कर्मचारियों को आज अपना वेतन भी महीनो देरी से मिल रहा है और तो और पर्यटन निगम में आज भी निगम के लगभग 70% कर्मचारियों को गत 2006 में दिए गए प्रदेश सरकार द्वारा पांचवें वेतन आयोग में सिर्फ मिनिस्ट्रियल श्रेणी के लगभग30% प्रतिशत कर्मचारियों को ग्रेड पे का अतिरिक्त लाभ दिया गया। जबकि शेष 70% ऑपरेशनल श्रेणी जैसे; कुक, वेटर,स्वागत कर्ता और हाउसकीपिंग में कार्य कर रहे कर्मचारियों को ग्रेड पे के अतिरिक्त लाभ से वंचित रखा गया है।
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