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शिमला ! बैठक ने फैसला लिया कि यूनियन का राज्य सम्मेलन 9 सितम्बर 2022 को हमीरपुर में होगा। बैठक में सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा,यूनियन अध्यक्ष सुरेंद्र बिट्टू,महासचिव सुरेन्द्र कुमार, समेत यूनियन के कई लोग मौजूद रहे। बैठक को सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा,यूनियन प्रदेशाध्यक्ष सुरेंद्र बिट्टू व महासचिव सुरेंद्र कुमार ने सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार लगातार मजदूरों के कानूनों पर हमले कर रही है। इसी कड़ी में मोदी सरकार ने मजदूरों के चबालिस कानूनों को खत्म करके चार लेबर कोड बनाने,सार्वजनिक क्षेत्र के विनिवेश व निजीकरण के निर्णय लिए हैं। इस क्रम में वर्ष 2014 के रेहड़ी फड़ी तयबजारी के कानून को भी खत्म करने की साज़िश रची जा चुकी है। कोरोना काल में जहां दो वर्ष तक रेहड़ी फड़ी तयबजारी का कार्य करने वाले पूरी तरह बर्बाद हो गए वहीं दूसरी ओर उनके कानून पर हमला करके केंद्र सरकार ने अपनी तानाशाही प्रवृत्ति को घोषित कर दिया। उन्होंने हिमाचल प्रदेश सरकार को चेताया है। अगर शिमला स्थित आजीविका भवन की दुकानों को रेहड़ी फड़ी तयबजारी वालों के अलावा किसी अन्य को वितरित किया गया तो यूनियन आंदोलन तेज करेगी। उन्होंने हिमाचल प्रदेश की सभी नगर पंचायतों,नगर परिषदों व नगर निगमों में स्ट्रीट वेंडरज़ एक्ट को लागू करने व टाउन वेंडिंग कमेटियां बनाने की मांग की है। उन्होंने प्रदेशभर में वेंडिंग ज़ोन बनाने की मांग की है। उन्होंने तयबजारी को उजाड़ने के बजाए वर्ष 2014 के कानून अनुसार बसाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि कोरोना काल का फायदा उठाते हुए मोदी सरकार के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश जैसी कई राज्य सरकारों ने आम जनता,मजदूरों व किसानों के लिए आपदाकाल को पूंजीपतियों व कॉरपोरेट्स के लिए अवसर में तब्दील कर दिया है। यह साबित हो गया है कि यह सरकार मजदूर,कर्मचारी व जनता विरोधी है व लगातार गरीब व मध्यम वर्ग के खिलाफ कार्य कर रही है। सरकार की पूँजीपतिपरस्त नीतियों से अस्सी करोड़ से ज़्यादा मजदूर व आम जनता सीधे तौर पर प्रभावित हो रही है। सरकार फैक्टरी मजदूरों के लिए बारह घण्टे के काम करने का आदेश जारी करके उन्हें बंधुआ मजदूर बनाने की कोशिश कर रही है। आंगनबाड़ी,आशा व मिड डे मील योजनकर्मियों के निजीकरण की साज़िश की जा रही है। उन्हें वर्ष 2013 के पैंतालीसवें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार नियमित कर्मचारी घोषित नहीं किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 26 अक्तूबर 2016 को समान कार्य के लिए समान वेतन के आदेश को आउटसोर्स,ठेका,दिहाड़ीदार मजदूरों के लिए लागू नहीं किया जा रहा है। केंद्र व राज्य के मजदूरों को एक समान वेतन नहीं दिया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के मजदूरों के वेतन को महंगाई व उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ नहीं जोड़ा जा रहा है। सातवें वेतन आयोग व 1957 में हुए पन्द्रहवें श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार उन्हें इक्कीस हज़ार रुपये वेतन नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने केंद्र व प्रदेश सरकार से मांग की है कि मजदूरों का न्यूनतम वेतन इक्कीस हज़ार रुपये घोषित किया जाए। केंद्र व राज्य का एक समान वेतन घोषित किया जाए। आंगनबाड़ी,मिड डे मील,आशा व अन्य योजना कर्मियों को सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए। मनरेगा में दो सौ दिन का रोज़गार दिया जाए व उन्हें राज्य सरकार द्वारा घोषित साढ़े तीन सौ रुपये न्यूनतम दैनिक वेतन लागू किया जाए। श्रमिक कल्याण बोर्ड में मनरेगा व निर्माण मजदूरों का पंजीकरण सरल किया जाए। निर्माण मजदूरों की न्यूनतम पेंशन तीन हज़ार रुपये की जाए व उनके सभी लाभों में बढ़ोतरी की जाए। कॉन्ट्रैक्ट,फिक्स टर्म,आउटसोर्स व ठेका प्रणाली की जगह नियमित रोज़गार दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट के निर्णयानुसार समान काम का समान वेतन दिया जाए। सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश व निजीकरण बन्द किया जाए। चबालिस श्रम कानून खत्म करके मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताएं(लेबर कोड) बनाने का निर्णय वापिस लिया जाए। सभी मजदूरों को ईपीएफ,ईएसआई,ग्रेच्युटी,नियमतित रोज़गार,पेंशन,दुर्घटना लाभ आदि सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाया जाए। भारी महंगाई पर रोक लगाई जाए। पेट्रोल,डीज़ल,रसोई गैस की कीमतें कम की जाएं। रेहड़ी,फड़ी तयबजारी क़े लिए स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट को सख्ती से लागू किया जाए।
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