- विज्ञापन (Article Top Ad) -
शिमला ! माननीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी कभी झूठ नहीं बोलते। उनकी पिछली रैली जब शिमला के रिज मैदान पर हुई थी तो अपने संबोधन में उन्होंने कहा था कि हवाई सेवाएं इतनी सस्ती होने जा रही है कि देश के चप्पल पहनने वाले अब हवाई जहाज में यात्रा कर सकेंगे। जहां तक हम समझ सके हैं, इस वक्तव्य का भाव हो सकता है कि देश में गरीब लोग सिर्फ चप्पल ही पहनते हैं , चप्पल पहनना गरीबी का प्रतीक हो सकता है या फिर फटीचर लोग जो बूट खरीदने की क्षमता नहीं रखते अब चप्पल पहन कर ही हवाई जहाज की यात्रा कर सकेंगे। "चप्पल" से उन का आशय शायद देश की गुरबत या सरकार द्वारा निर्धारित गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोग को हवाई यात्रा करने का सम्मान दिलाना रहा होगा। उम्मीद थी कि जहाज से यात्रा करने के लिए किराये इतने सस्ते होंगे कि आमजन के सामर्थ्य में रहेंगे, पर ऐसा नहीं हुआ। हवाई जहाज के बढ़े हुए किरायों ने चप्पल वाले तो क्या ,बूट वालों की हवाई यात्रा को भी मुश्किल बना दिया। हां ! निःसंदेह "सूटबूट" वालों के लिए यह यात्रा सुलभ बन गई। अनुमान था कि यह यात्रा करने का व्यय रेल किराये के प्रथम श्रेणी के किरायों बराबर ही रहेगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। माननीय एक बार फिर हिमाचल के दौरे पर रहेंगे। शायद चुनाव नज़र में हैं।फिर इतना दुस्साहस कौन करेगा कि पूछ ले कि चप्पल वालों का क्या बना। सरकार सड़कों के चौड़ीकरण का काम कर रही है हिमाचल सरकार सड़कें सुधारने के लिए 600 करोड खर्च करेगी। फोर लेन विस्थापितों भूमि अधिग्रहण के बाद को चार गुणा मुआवजा देने के नाम पर आनाकानी करने पर है। कमेटी के बाद कमेटी बना कर टालती जा रही है। ब्रिगेडियर खुशहाल ने जो आंदोलन खड़ा किया कि वह चार गुणा मुआवज़ा दिला कर रहेंगे और फिर आंदोलन छोड़कर सरकार की झोली में चले गये। ये ही वे नौ हजार लोग हैं जिन्होंने बीजेपी व उस बहादुर सिपाही की महत्वाकांक्षा पर पानी फेर दिया।लोगों के घर उजडे सरकार तमाशा देखती रही।अब फिर उठ रहा है फोर लेन विस्थापितों का आंदोलन।कब तक यह खिलवाड जारी रहेगा। इस कृत्य की कीमत तो देनी होगी निकम्मी सरकार को। हैलिपेड तो काफी बन चुके है।अब बल्ह एयरपोर्ट बनना बाकी है। लेकिन जहाज पर चढ़कर जाने वाले लोग- वहाँ भी तो होने चाहिए। महंगाई की बात करें तो डीजल,पैट्रोल की कीमत तो मेरे देश की जनता ने तब भी वही दी जब विश्व बाज़ार में कोरोना काल के दौरान कच्चा तेल लागत से भी कम पर बिक रहा था। प्रति बैरल तेल की कीमत घाटे पर चल रही थी।अब अचानक क्यों घटा दी कीमत। देश की चरमराई अर्थव्यवस्था का बयाने हाल भी जरूरी है। पिछले आठ साल में किस स्तर पर सांस ले रही है देश की अर्थ-व्यवस्था। 26 मई 2014 जब "प्रधान सेवक"ने देश का कार्यभार संभाला तब देश की GPD वृद्धि दर 7.4 प्रतिशत थी। 2015-16 में यह वृद्धि दर बढ़ाकर 8.3% तक पहुंच गई। उस के बाद प्रधान सेवक ने नोटबंदी लागू कर दी और सारी अर्थ-व्यवस्था का कचुंबर निकल गया।फिर यह अर्थ व्यवस्था गिरती चली गई। वित्तीय वर्ष 2020-21 को देश की जीडीपी में 7.3 % की गिरावट हुई जो की पिछले चार दशकों में सबसे बड़ी गिरावट है। बेरोजगारी की दर बीजेपी की सरकार में 3.4 % से बढ़कर 8.7% हो गई। कोरोना काल में भी सरकार कमाने लगी रही । मंहगाई पर बात करने की जरुरत ही नहीं यह जग जाहिर है।आटा, चावल, दाल गैस सिलेंडर व अन्य खाद्यान्नों के भाव कहां है? दवाओं के भाव तो हद से ज्यादा बढ़ गये। हम यह कहना चाह रहे हैं कि आम आदमी के जीवन यापन के साधन आठ साल पहले कहां थे,आज हम कहां है। तभी आठ वर्ष सफलतापूर्वक राज करने का जश्न तो बनता ही है। "अंजाम-ए- गुलिस्तां क्या होगा"।
- विज्ञापन (Article Inline Ad) -
- विज्ञापन (Article Bottom Ad) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 1) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 2) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 3) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 4) -