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शिमला ! गुरु तेग बहादुर को समर्पित तीन दिवसीय (24-26 सितम्बर) राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह में भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (एडवांस्ड स्टडी) के अध्यक्ष प्रोफेसर कपिल कपूर ने कहा कि अब यहां विद्वान देश के संविधान की अनुसूची आठ में शामिल किसी भी भाषा में शोधकार्य और संगोष्ठियां आयोजितकर सकते हैं। आवश्यकता पढ़ने पर साथ-साथ उनके अनुवाद की व्यवस्था भी की जाएगी । उन्होंने कहा कि पहले संस्थान में अधिकांश शोधकार्य अंग्रेजी में ही किया जाता रहा है मगर अब अन्य भाषाओं में भी इसका प्रावधान कर दिया गया है ताकि भारतीय ज्ञान परंपराएं आगे बढ़ती रहीं। संस्थान के उपाध्यक्ष और वर्तमान में कार्यवाहक निदेशक प्रोफेसर चमन लाल गुप्त ने कहा कि कोविड महामारी के कारण संस्थान की अकादमिक गतिविधयाँ भी प्रभावित रहीं मगर यह गर्व, गौरव और आनंद का विषय है कि सभी के सहयोग से प्रोफेसर कपिल कपूर द्वारा की गयी इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन की संकल्पना पूर्ण हुई। प्रोफेसर डी.आर. पुरोहित ने अपने संबोधन में गुरु तेग बहादुर के जीवन, वैराग्य और श्रेष्ठ बलिदान की गाथा को राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने की वकालत की। उन्होंने कहा कि यदि हम अपने देश की संस्कृति को अक्षुण रखना चाहते हैं तो हमें सिख गुरु परंपरा के प्रति विशेष श्रद्धा रखनी चाहिए और उसके ऋणी रहना चाहिए। आठ सत्रों में चली इस त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में 30 विद्वानों ने अपने शोधपत्र पढ़े जिनमें गुरु तेग बहादुर के जीवन-दर्शन, वाणी, आध्यात्म, श्रेष्ठ बलिदान, वैराग और अनेक दूसरे पहलुओं पर सारगर्भित चर्चा की और वर्तमान में उसकी प्रासंगिकतापर प्रकाश डाला। संगोष्ठी का आरंभ और समापन डा.जतिन्द्र सिंह तथा उनके सहयोगियों द्वारा प्रस्तुत मधुर गुरुवाणी के साथ हुआ। मंच का संचालन संस्कृति और फारसी के विद्वान तथा संस्थान के अध्येता डा. बलराम शुक्ल ने किया।
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