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शिमला ! भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (एडवांस्ड स्टडी) में आज राजभवन शिमला के संयुक्त तत्वाधान में ’भारतीय स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में संविधान का मूल भाव’ विषय पर दो दिवसीय विचार-गोष्ठी का आरंभ हुआ। मुख्य अतिथि एवं प्रदेश के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने इस अवसर कहा कि हमें इस बात पर मंथन करना चाहिए कि हमने देश के संविधान को भाव रूप लिया है या नहीं। इसलिए शब्दों के साथ-साथ संविधान की मूल भावना को समझना भी अनिवार्य है। हमें विरासत में जो उच्च मूल्य-आदर्श मिले हैं उन्हें पहचानने और ग्रहण करने की आवश्यकता है मगर स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरंत बाद दुभार्ग्यवश हम पश्चिमी देशों की तरफ देखने लगे, अतः आज आवश्यकता है कि हजारों वर्ष पुरानी हमारी श्रेष्ठ विचारधारा को विश्व के सामने लाया जाए। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र हमारी परंपराओं में रचा-बसा है। भारत पहले से राष्ट्र था और राष्ट्र है। इस अवसर पर उन्होंने अटलजी की कविता ’परिचय‘ की इन पंक्तियों को दोहराते हुए देश की श्रेष्ठ परंपरा को प्रकाशमान किया- कब बतलाए काबुल में जा कर कितनी मस्जिद तोड़ीं, भूभाग नहीं' शत.शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय। संस्थान के अध्यक्ष प्रोफेसर कपिल कपूर ने अपने उद्बोधन में कहा कि हमारी राज्यव्यवस्था बेबीलोन से प्राचीन है। हमारा लोकतंत्र आत्म शासन पर निर्भर रहा है और समाज कर्तव्यपरक है जो हमारी सभ्यता और संस्कृति की पहचान है। यह हमारे देश की विशेषता है कि जो त्याग, परिश्रम और तपस्या करता है वही शासक माना जाता है। संस्थान के उपाध्यक्ष एवं कार्यवाहक निदेशक प्रोफेसर चमन लाल गुप्त ने अपने उद्बोधन में राज्यपाल का आभार प्रकट करते हुए कहा कि उनके प्रोत्साहन और मार्गदर्शन में राजभवन और संस्थान मिलकर इस विचार-गोष्ठी का आयोजन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत के संविधान निर्माताओं ने विश्व का सर्वश्रेष्ठ संविधान हमें दिया है और उसकी मूल आत्मा इसकी प्रस्तावना में ही निहित है। संस्थान के सचिव प्रेमचंद ने प्रदेश राज्यपाल, संस्थान के अध्यक्ष प्रोफेसर कपिल कपूर, उपाध्यक्ष प्रोफेसर चमनलाल गुप्ता, उपस्थित अन्य विद्वानों तथा मेहमानों का स्वागत किया। मंच का संचालन संस्थान की अकादमिक संसाधन अधिकारी रितिका शर्मा ने किया। व्याख्यान कार्यक्रम का आरंभ दीप प्रज्ज्वलन और समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ।
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