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शिमला ! मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने शुक्रवार को अपने वर्तमान कार्यकाल का अंतिम बजट प्रस्तुत किया। कर रहित बजट में मुख्यमंत्री ने लोक लुभावन घोषणाएं की है। हालांकि बीते 4 बजटों की तरह इस बार बजट में नई घोषणाओं की सं या कम है बावजूद इसके चुनाव के मद्देनजर बजट में समाज के जरूरतमंद व कमजोर वर्गों को अधिकाधिक राहत देने की कोशिश की गई है। सामाजिक सेवा क्षेत्र पर यूं भी सरकार का फोकस रहा है। लिहाजा बजट भी इसी पर केंद्रित है। अलबत्ता बढ़ता राजकोषीय व राजस्व घाटा तथा कम होती राजस्व प्राप्तियां आने वाले समय में अर्थव्यवस्था पर कर्ज का बोझ बढ़ा सकती है। मु यमंत्री जयराम ठाकुर ने बजट भाषण में सामाजिक सुरक्षा पेंशन का दायर बढ़ाने के साथ-साथ इसमें बढ़ौतरी की घोषणा की है। दिहाड़ीदारों की दिहाड़ी बढ़ाई गई है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, सहायिकाओं, आशा वर्करों, सिलाई अध्यापिकाओं, जल वाहकों, जल रक्षकों के अलावा कई अन्य श्रेणियों को मु यमंत्री ने बजट में राहत देने की घोषणा की है। बजट में घोषित इन राहतों से खजाने पर करोड़ों रुपए का बोझ पड़ेगा, बेशक समाज के कमजोर वर्गों को उपर उठाना सरकार का दायित्व है। मगर चुनावी साल में की गई इन घोषणाओं को मिशन रिपीट की तैयारियों के मद्देनजर देखा जा रहा है। सामाजिक सुरक्षा पेंशन के दायरे में सरकार ने कुल 7 लाख 50 हजार से अधिक लोगों को शामिल कर दिया है और इस पर 1300 करोड़ रुपए की रकम खर्च होगी। सदन रहे कि कांग्रेस शासन में सामाजिक सुरक्षा पेंशन पर 500 करोड़ से कम की रकम खर्च होती थी। हालांकि मुख्यमंत्री के बजट से आउटसोर्स कर्मियों को उम्मीद थी कि उनके लिए सरकार नीति की घोषणा करेगी लेकिन नीति के बजाए सरकार ने आउटसोर्स कर्मियों के मानदेय में बढ़ोतरी का एलान किया है। इन्हें मिलने वाले न्यूनतम मानदेय को तय कर दिया गया है। बजट में मुख्यमंत्री ने समाज के कमजोर वर्गों को छोड़ कई अन्य लोक लुभावन घोषणाएं की है, मगर घोषणाओं का सीधा असर प्रदेश के खजाने पर पड़ेगा। अर्थव्यवस्था का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2021-22 के 37312 करोड़ के मुकाबले आगामी वित्त वर्ष में प्रदेश की राजस्व प्राप्तियां 36375 करोड़ होगी। जाहिर है कि राजस्व प्राप्तियों में 937 करोड़ की कमी आई है, जबकि चालू वित्त वर्ष के 37034 करोड़ के मुकाबले आगामी वित्त वर्ष में राजस्व खर्च 40 हजार 278 करोड़ खर्च होगा। राजस्व खर्च में 3244 करोड़ की बढ़ौतरी हो रही है। खर्चें बढ़ रहे है और आमदनी कम हो रही है। राजकोषीय घाटा भी चालू वित्त वर्ष के 7798 करोड़ से बढ़कर आगामी वित्त वर्ष में 9602 करोड़ होगा यह परेशानी का कारण बन सकता है। राजकोषीय घाटा जीडीपी के 5 फीसदी से थोड़ा कम है। बात अगर कर्जों की कि जाए तो 2018-19 में सरकार पर 50773 करोड़, 2019-20 56107 करोड़, 2020-21 60993 करोड़ तथा चालू वित्त वर्ष में 21 फरवरी तक प्रदेश सरकार पर 63 हजार 200 करोड़ का कर्ज था। सरकार द्वारा वर्तमान वित्त वर्ष में तय सीमा के तहत ऋण लेने पर कर्ज का आंकड़ 69 हजार करोड़ तक पहुंच सकता है। लिहाजा प्रदेश के नीति निर्धारकों को इस मुद्दे पर सोचने की आवश्यकता है।
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