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शिमला ! हिमाचल प्रदेश न्यूनतम वेतन सलाहकार परिषद के सदस्य विजेंद्र मेहरा ने राज्य सरकार द्वारा मजदूरों की केवल पच्चीस रूपये प्रतिदिन दिहाड़ी बढ़ोतरी को नाकाफी करार दिया है व इसे मजदूर विरोधी करार दिया है। उन्होंने मांग की है कि दिल्ली की तर्ज़ पर न्यूनतम वेतन पन्द्रह हज़ार रुपये घोषित किया जाए। विजेंद्र मेहरा ने प्रदेश सरकार पर मजदूर विरोधी होने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि वेतन बढ़ोतरी की हालिया अधिसूचना पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाली है व यह मजदूरों का शोषण करने वाली है। इस अधिसूचना के चलते अब प्रदेश में मजदूरों का मासिक न्यूनतम वेतन 8250 रुपये हो जाएगा। यह केरल व दिल्ली के वेतन के मुकाबले बेहद कम है। यह पंजाब,हरियाणा,उत्तराखंड आदि पड़ोसी राज्यों की तुलना में भी कम है। पूरे देश के सभी राज्यों में न्यूनतम वेतन को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ जोड़ दिया गया है। इन सभी राज्यों में हर छः महीनों में महंगाई सूचकांक के अनुसार वर्ष में स्वतः ही दो बार वेतन बढ़ोतरी हो जाती है। परंतु हिमाचल प्रदेश में न्यूनतम वेतन को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ नहीं जोड़ा गया है व प्रदेश के लाखों मजदूर महंगाई भत्ते से वंचित हैं। उन्हें देश के अन्य राज्यों की तुलना में बेहद कम वेतन दिया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश न्यूनतम वेतन सलाहकार परिषद की पिछली तीन बैठकों में लगातार दिल्ली की तर्ज़ पर वेतन का मुद्दा उठा चुका है परंतु प्रदेश सरकार मजदूरों की इस जायज़ मांग की लगातार अनदेखी कर रही है। प्रदेश सरकार द्वारा घोषित यह बेहद कम न्यूनतम वेतन भी प्रदेश की पन्द्रह लाख की कुल श्रम शक्ति में से केवल एक तिहाई पांच लाख मजदूरों को ही नसीब हो पा रहा है। मजदूरों के दो तिहाई हिस्से लगभग दस लाख मनरेगा मजदूरों को इस से वंचित रखा जा रहा है। यह मनरेगा मजदूरों के साथ घोर अन्याय है। न्यूनतम वेतन सलाहकार परिषद की बैठक में इस मुद्दे पर भी प्रमुखता से चर्चा हुई थी परंतु इसे अनदेखा कर दिया गया। उन्होंने मांग की है कि हिमाचल प्रदेश में मनरेगा वर्करज़,सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट वर्करज़ व धोबियों के लिए अलग से शेडयूल ऑफ एम्प्लॉयमेंट बनाया जाए व उन्हें न्यूनतम वेतन के दायरे में लाया जाए। उन्होंने मेडिकल कॉलेजों को अस्पतालों,नसिंग होम व क्लीनिकों के लिए बनाए गए शेडयूल ऑफ एम्प्लॉयमेंट में मेडिकल कॉलेजों को भी शामिल करने की मांग की है। उन्होंने काम की गम्भीरता को देखते हुए सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट्स,पब्लिक मोटर ट्रांसपोर्ट,अस्पताल,नर्सिंग होम व क्लीनिकों,निजी शैक्षणिक संस्थानों में कार्यरत कर्मचारियों,धोबियों व औद्योगिक मजदूरों के लिए घोषित न्यूनतम वेतन को नाकाफी करार दिया है व इसमें चालीस प्रतिशत बढ़ोतरी की मांग की है। उन्होंने मांग की है कि समय की मांग को देखते हुए वर्तमान उन्नीस शेडयूल एम्पलॉयमेंट की संख्या में बढ़ोतरी की जाए। उन्होंने खेद व्यक्त किया है कि न्यूनतम वेतन सलाहकार परिषद में मजदूरों के संदर्भ में दिए गए सोलह सूत्रीय मांग पत्र पर प्रदेश सरकार ने अगर विचार न किया व संज्ञान न लिया तो वह भविष्य में न्यूनतम वेतन सलाहकार परिषद की बैठक का बहिष्कार कर देंगे।
शिमला ! हिमाचल प्रदेश न्यूनतम वेतन सलाहकार परिषद के सदस्य विजेंद्र मेहरा ने राज्य सरकार द्वारा मजदूरों की केवल पच्चीस रूपये प्रतिदिन दिहाड़ी बढ़ोतरी को नाकाफी करार दिया है व इसे मजदूर विरोधी करार दिया है। उन्होंने मांग की है कि दिल्ली की तर्ज़ पर न्यूनतम वेतन पन्द्रह हज़ार रुपये घोषित किया जाए।
विजेंद्र मेहरा ने प्रदेश सरकार पर मजदूर विरोधी होने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि वेतन बढ़ोतरी की हालिया अधिसूचना पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाली है व यह मजदूरों का शोषण करने वाली है। इस अधिसूचना के चलते अब प्रदेश में मजदूरों का मासिक न्यूनतम वेतन 8250 रुपये हो जाएगा। यह केरल व दिल्ली के वेतन के मुकाबले बेहद कम है। यह पंजाब,हरियाणा,उत्तराखंड आदि पड़ोसी राज्यों की तुलना में भी कम है। पूरे देश के सभी राज्यों में न्यूनतम वेतन को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ जोड़ दिया गया है। इन सभी राज्यों में हर छः महीनों में महंगाई सूचकांक के अनुसार वर्ष में स्वतः ही दो बार वेतन बढ़ोतरी हो जाती है। परंतु हिमाचल प्रदेश में न्यूनतम वेतन को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ नहीं जोड़ा गया है व प्रदेश के लाखों मजदूर महंगाई भत्ते से वंचित हैं। उन्हें देश के अन्य राज्यों की तुलना में बेहद कम वेतन दिया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश न्यूनतम वेतन सलाहकार परिषद की पिछली तीन बैठकों में लगातार दिल्ली की तर्ज़ पर वेतन का मुद्दा उठा चुका है परंतु प्रदेश सरकार मजदूरों की इस जायज़ मांग की लगातार अनदेखी कर रही है। प्रदेश सरकार द्वारा घोषित यह बेहद कम न्यूनतम वेतन भी प्रदेश की पन्द्रह लाख की कुल श्रम शक्ति में से केवल एक तिहाई पांच लाख मजदूरों को ही नसीब हो पा रहा है। मजदूरों के दो तिहाई हिस्से लगभग दस लाख मनरेगा मजदूरों को इस से वंचित रखा जा रहा है। यह मनरेगा मजदूरों के साथ घोर अन्याय है। न्यूनतम वेतन सलाहकार परिषद की बैठक में इस मुद्दे पर भी प्रमुखता से चर्चा हुई थी परंतु इसे अनदेखा कर दिया गया।
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उन्होंने मांग की है कि हिमाचल प्रदेश में मनरेगा वर्करज़,सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट वर्करज़ व धोबियों के लिए अलग से शेडयूल ऑफ एम्प्लॉयमेंट बनाया जाए व उन्हें न्यूनतम वेतन के दायरे में लाया जाए। उन्होंने मेडिकल कॉलेजों को अस्पतालों,नसिंग होम व क्लीनिकों के लिए बनाए गए शेडयूल ऑफ एम्प्लॉयमेंट में मेडिकल कॉलेजों को भी शामिल करने की मांग की है। उन्होंने काम की गम्भीरता को देखते हुए सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट्स,पब्लिक मोटर ट्रांसपोर्ट,अस्पताल,नर्सिंग होम व क्लीनिकों,निजी शैक्षणिक संस्थानों में कार्यरत कर्मचारियों,धोबियों व औद्योगिक मजदूरों के लिए घोषित न्यूनतम वेतन को नाकाफी करार दिया है व इसमें चालीस प्रतिशत बढ़ोतरी की मांग की है। उन्होंने मांग की है कि समय की मांग को देखते हुए वर्तमान उन्नीस शेडयूल एम्पलॉयमेंट की संख्या में बढ़ोतरी की जाए। उन्होंने खेद व्यक्त किया है कि न्यूनतम वेतन सलाहकार परिषद में मजदूरों के संदर्भ में दिए गए सोलह सूत्रीय मांग पत्र पर प्रदेश सरकार ने अगर विचार न किया व संज्ञान न लिया तो वह भविष्य में न्यूनतम वेतन सलाहकार परिषद की बैठक का बहिष्कार कर देंगे।
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