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शिमला ! मंत्री सीधा-सीधा क्यों नहीं कहते कि बागवान अब छाबा लगाकर सेब बेचना शुरू कर दें। हिमाचल किसान सभा ने बागवानी मंत्री के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि मंत्री अभी तक सेब और आलू में फर्क नहीं कर पाए हैं। खुले में सेब बेचने के बागवानी मंत्री के बयान को लेकर किसान सभा ने मंत्री महेन्द्र सिंह को घेरते हुए कहा कि उनका बयान बागवानी के बारे में उनके अल्पज्ञान को ही नहीं दर्शाता बल्कि बागवानों के प्रति उनकी असंवेदनशीलता को भी ज़ाहिर करता है। इस समय जब सरकार को बागवानों को राहत देने के लिए कदम उठाने चाहिए थे उस समय बागवानी मंत्री उलजुलूल बयान देकर न सिर्फ बागवानों का अपमान कर रह हैं बल्कि बागवानी निदेशालय और वानिकी एवं बागवानी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों का भी अपमान कर रहे हैं। हिमाचल किसान सभा के राज्याध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तँवर ने कहा कि हर मंत्री कैबिनेट या मंत्री परिषद् का हिस्सा होते हैं इसलिए उनका बयान सरकार का बयान माना जाएगा। सरकार मंत्री के बयान से पल्ला नहीं झाड़ सकती। अगर मंत्री का यह निजी बयान है तो उनको या तो बागवानों से अपनी अज्ञानता के लिए माफी मांगनी चाहिए या सरकार को चाहिए कि महेन्द्र सिंह को बागवानी मंत्रालय के कार्यभार से मुक्त करें। डॉ. तँवर ने कहा कि सेब को मार्केट तक पहुंचने में कई बार एक हफ्ता भी लग जाता है इसलिए खुले में सेब को हज़ारों किलोमीटर दूर तक नहीं पहुंचाया जा सकता। इसमें सेब के खराब होने का खतरा तो है ही साथ ही सेब चोरी का भी खतरा है। अगर सरकार बागवानों का हित चाहती है तो उसे मार्केट इंटरवेंशन स्कीम के तहत सेब का न्यूनतम मूल्य बढ़ाना चाहिए। डॉ. तँवर ने कहा कि जम्मू-कश्मीर हिमाचल से लगभग तीन गुणा सेब पैदा करता है। वहां मण्डी मध्यस्थता योजना में सी ग्रेड के सेब का सरकारी मूल्य 24 रुपये है और 60 प्रतिशत उत्पाद सरकार खरीदती है जबकि हिमाचल में साढ़े नौ रुपये। राज्य सचिव किसान सभा डॉ. ओंकार शाद ने कहा कि सेब सहित इन दिनों सब्ज़ियों और लहसुन, अदरक की जो दूर्दशा हो रही है उसमें किसानों की न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग जायज़ है। वहीं इस बार अडानी ने सेब की खरीद के मूल्य में कटौती करके संकेत दे दिया है कि अगर बाज़ार पर उसका एकाधिकार हो जाएगा तो मूल्य उसकी मर्ज़ी से तय होगा किसानों की मर्ज़ी स नहीं। डॉ. शाद ने कहा कि 9 महीने से दिल्ली बॉर्डर पर बैठे किसान इसी बात की लड़ाई लड़ रहे हैं कि किसानों को उनके उत्पाद का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिले और पूंजीपतियों के हक में बने काले कृषि कानून वापिस हो। डॉ. शाद कहा कि ढाई लाख परिवार बागवानी से आजीविका ही नहीं कमाते बल्कि प्रदेश को 5000 करोड़ की आर्थिकी और लाखों रोज़गार भी देते हैं जिसमें सरकार का योगदान नगण्य है बल्कि छुटपुट मिलने वाली राहत भी बागवानों से छीनी जा रही है। निर्ममता से उनके बागीचों पर आरी चलाई गई है। किसान सभा ने कहा कि सरकार को इस वक्त संवेदनशील होना चाहिए और किसानों-बागवानों के हक में कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए।
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