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शिमला ! वैश्विक महामारियों के इतिहास पर यदि नजर दौड़ाई जाए तो एक यह तय मानकर चलना चाहिए कि वर्तमान कोरोना वैश्विक महामारी को हराने में अभी सालों का समय लग सकता है। चिकित्सा विज्ञान एवं प्रौद्यौगिकी के विकास के कारण भले ही यह लड़ाई कुछ आसान लगती हो लेकिन यही विकास इसके संचार की गती बढ़ाकर नित् नई चुनौतियां भी पेश कर रहा है। मार्च 2021 में देश को लग रहा था कि हमने इस बीमारी पर नियन्त्रण पा लिया है और अब हम एंडेमिक अर्थात अन्त की ओर बढ़ रहे हैं दिल्ली के स्वास्थ्य मन्त्री द्वारा 7 मार्च 2021 को एक ब्यान जारी किया गया था कि दिल्ली में यह वैश्विक महामारी एंडेमिक अवस्था पर आ चुकी है, लेकिन नए म्यूटेशन एवं नए- नए वैरिएंट के साथ इस महामारी ने सभी पूर्वानुमानों एवं आकलनों की धज्जियाँ उखाड़ कर रख दी, स्थिति फिर से एक बार हाथों से निकलती गई। दराअसल किसी भी महामारी के पैदा होने और समाप्त होने के अनेक चरण होते है शुरुआत में प्रकोप (Outbreak), महामारी (Epidemic) और फिर वैश्विक महामारी (Pandemic) इसी प्रकार समाप्ति में नियन्त्रण (Control), स्थानिक (Endemic), विलोपन (Elimination) और उन्मूलन (Eradication) की अवस्थाएँ आती है। 11 मार्च 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा चीन के वुहान शहर में पैदा हुई विषाणुजनित संक्रमण बीमारी कोविड-19 को वैश्विक महामारी घोषित किया और अभी तक इजरायल को छोड़ कोई भी प्रभावित देश इसे स्थानिक अर्थात एंडेमिक घोषित नहीं कर पाया है। दुनिया के इतिहास में रोगाणु (जीवाणु एवं विषाणु) जनित महामारियों द्वारा जनसँख्या के एक बहुत बड़े भाग को प्रभावित किया जाता रहा है एक सर्वे के अनुसार दुनिया में होने वाली कुल मानव मौतों की एक तिहाई मौतें इन्हीं रोगाणु जनित महामारियों के प्रभाव से होती है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान आज तक के इतिहास में केवल एक वैश्विक महामारी चेचक (स्माल पॉक्स) का ही उन्मूलन करने में सफल हुआ है, इस वैश्विक महामारी को समाप्त करने में दुनिया को करीब 190 वर्ष लगे थे। 1798 में चेचक के लिए वैक्सीन बनाई गई थी और अगले दो सौ सालों तक वैक्सीनेशन किये जाने के परिणामस्वरूप वर्ष 1977 से 1980 के बीच इसका उन्मूलन संभव हो पाया था। हमारे देश भारत या दुनिया में कब यह वैश्विक महामारी समाप्त होगी? इस प्रश्न का कोई भी सीधा उतर शायद आज के दौर में किसी के पास नहीं है। भारत के सन्दर्भ में बात करें तो बहुत बड़े टिकाकरण अभियान के फलस्वरूप देश ने पोलियो पर 2010 में विजय प्राप्त की तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत को 2014 में पोलियो मुक्त घोषित कर दिया है जबकि डेंगू, कुष्ठ, रेबिज़ जैसे 14 रोगाणुजनित संक्रमण रोग भारत में अभी भी स्थानिक (एंडेमिक) है मतलब देश की स्वास्थ्य सुविधाएँ इन बिमारियों के रोगियों को नियन्त्रित स्थिति में ईलाज प्रदान करने में सक्षम हैं लेकिन इनका संचार समय- समय पर होता रहता है। बात यदि कोविड-19 की करें तो दुनिया को पांच भागों में बाँट कर देखते हैं – इजरायल, यूरोपियन देश, अमेरिका, अफ्रीका तथा भारत। इजरायल अपने आपको को कोरोना मुक्त देश घोषित कर चूका है, तकनीकी शब्दों में वह एंडेमिक अवस्था पर है, अधिकतर यूरोपियन देशों की योजना अगस्त 2022 तक टिकाकरण पूरा कर इससे आजादी पाने की है तो अमेरिका में 4 जुलाई 2021 को अमेरिका के स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर इससे विजय पाने की चर्चा है। जब सभी विकसित देश अपने आप को सुरक्षित कर लेंगे हो सकता उसके बाद अफ्रीका पर ध्यान जाए मतलब कि अफ़्रीकी देशों में टीकाकरण सबसे अन्त में होगा। बात यदि भारत की करें तो अभी हमारे यहाँ भी यह लड़ाई लम्बी है जिसका करना हर्ड इम्युनिटी को प्राप्त करने में लगने वाला समय है, हर्ड इम्युनिटी प्राप्त करने के दो तरीके हैं एक तो प्राकृतिक रूप से संक्रमित होकर तथा दूसरा वैक्सीनेशन द्वारा। देश का एक प्रतिष्ठित संस्थान ICMR अर्थात भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान परिषद समय – समय पर देश में सिरो सर्वे मतलब एंटीबाडी सर्वे करता है, अभी तक इस प्रकार के तीन नेशनल सर्वे किये जा चुके हैं- पहला जून 2020 में जिसमें 0.73 प्रतिशत लोगों में एंटीबाडी अर्थात इस बीमारी के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता का पता चला, दूसरा सर्वे अगस्त/ सितम्बर 2020 में किया गया जिसमें 6.6 प्रतिशत लोगों में इस प्रकार के एंटीबाडीज पाए गये तथा तीसरा सर्वे दिसम्बर/ जनवरी 2021 में किया गया जिसमें 21.4 प्रतिशत लोगों में इस महामारी के खिलाफ एंटीबाडीज पाए ये हैं, इन सर्वेक्षणों की प्रमाणिकता इसलिए अधिक प्रमाणिक नहीं रहती क्योकि ये केवल 25 हजार सैंपल लेकर यह सर्वे करते हैं। दूसरी ओर हमारा टिकाकरण अभियान है 137 करोड़ की आबादी वाले हमारे देश में 18 वर्ष से ऊपर की जनसँख्या जिनको यह टीका लगाया जाना है 93.7 करोड़ यानी कुल जनसँख्या का 67 प्रतिशत है। देश में वैक्सीन की वेस्टेज प्रतिशतता 6 प्रतिशत के आस पास है तो एक मोटे तौर पर हमें 200 करोड़ वैक्सीन डोज चाहिए, आज तक 17.55 करोड़ खुराकें दी जा चुकी है जबकि 182.5 करोड़ खुराकों की आवश्यकता है । देश में वैक्सीन उत्पादन की क्षमता 100 से 130 करोड़ प्रतिवर्ष है, ऐसे में यदि टीकाकरण की रफ़्तार यूँ ही बनी रहे तो दिसम्बर 2022 तक देश में टीकाकरण अभियान पूर्ण हो सकता है, लेकिन इस अवधि के लम्बे होने के कारण अन्य अनेक चुनौतीयां सामने आ सकती है जिनमें वायरस के बदलते वैरिएंट तथा टीकाकरण से प्राप्त की जाने वाली रोग प्रतिरोधक क्षमता की समय सीमा प्रमुख है। स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के एक अर्थशास्त्री समूह द्वारा एक अन्य अध्ययन किया गया है जिसके अनुसार 15 प्रतिशत लोगों को दोनों खुराकें तथा 63 प्रतिशत लोगों को एक खुराक मिल जाने के बाद देश में हर्ड इम्युनिटी विकसित हो जाएगी जो तथा भारत सितम्बर 2021 तक इस अवस्था को पाकर इस वैश्विक महामारी को नियन्त्रित करने में सफल हो सकता है।
शिमला ! वैश्विक महामारियों के इतिहास पर यदि नजर दौड़ाई जाए तो एक यह तय मानकर चलना चाहिए कि वर्तमान कोरोना वैश्विक महामारी को हराने में अभी सालों का समय लग सकता है। चिकित्सा विज्ञान एवं प्रौद्यौगिकी के विकास के कारण भले ही यह लड़ाई कुछ आसान लगती हो लेकिन यही विकास इसके संचार की गती बढ़ाकर नित् नई चुनौतियां भी पेश कर रहा है।
मार्च 2021 में देश को लग रहा था कि हमने इस बीमारी पर नियन्त्रण पा लिया है और अब हम एंडेमिक अर्थात अन्त की ओर बढ़ रहे हैं दिल्ली के स्वास्थ्य मन्त्री द्वारा 7 मार्च 2021 को एक ब्यान जारी किया गया था कि दिल्ली में यह वैश्विक महामारी एंडेमिक अवस्था पर आ चुकी है, लेकिन नए म्यूटेशन एवं नए- नए वैरिएंट के साथ इस महामारी ने सभी पूर्वानुमानों एवं आकलनों की धज्जियाँ उखाड़ कर रख दी, स्थिति फिर से एक बार हाथों से निकलती गई।
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दराअसल किसी भी महामारी के पैदा होने और समाप्त होने के अनेक चरण होते है शुरुआत में प्रकोप (Outbreak), महामारी (Epidemic) और फिर वैश्विक महामारी (Pandemic) इसी प्रकार समाप्ति में नियन्त्रण (Control), स्थानिक (Endemic), विलोपन (Elimination) और उन्मूलन (Eradication) की अवस्थाएँ आती है। 11 मार्च 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा चीन के वुहान शहर में पैदा हुई विषाणुजनित संक्रमण बीमारी कोविड-19 को वैश्विक महामारी घोषित किया और अभी तक इजरायल को छोड़ कोई भी प्रभावित देश इसे स्थानिक अर्थात एंडेमिक घोषित नहीं कर पाया है।
दुनिया के इतिहास में रोगाणु (जीवाणु एवं विषाणु) जनित महामारियों द्वारा जनसँख्या के एक बहुत बड़े भाग को प्रभावित किया जाता रहा है एक सर्वे के अनुसार दुनिया में होने वाली कुल मानव मौतों की एक तिहाई मौतें इन्हीं रोगाणु जनित महामारियों के प्रभाव से होती है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान आज तक के इतिहास में केवल एक वैश्विक महामारी चेचक (स्माल पॉक्स) का ही उन्मूलन करने में सफल हुआ है, इस वैश्विक महामारी को समाप्त करने में दुनिया को करीब 190 वर्ष लगे थे। 1798 में चेचक के लिए वैक्सीन बनाई गई थी और अगले दो सौ सालों तक वैक्सीनेशन किये जाने के परिणामस्वरूप वर्ष 1977 से 1980 के बीच इसका उन्मूलन संभव हो पाया था।
हमारे देश भारत या दुनिया में कब यह वैश्विक महामारी समाप्त होगी? इस प्रश्न का कोई भी सीधा उतर शायद आज के दौर में किसी के पास नहीं है। भारत के सन्दर्भ में बात करें तो बहुत बड़े टिकाकरण अभियान के फलस्वरूप देश ने पोलियो पर 2010 में विजय प्राप्त की तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत को 2014 में पोलियो मुक्त घोषित कर दिया है जबकि डेंगू, कुष्ठ, रेबिज़ जैसे 14 रोगाणुजनित संक्रमण रोग भारत में अभी भी स्थानिक (एंडेमिक) है मतलब देश की स्वास्थ्य सुविधाएँ इन बिमारियों के रोगियों को नियन्त्रित स्थिति में ईलाज प्रदान करने में सक्षम हैं लेकिन इनका संचार समय- समय पर होता रहता है। बात यदि कोविड-19 की करें तो दुनिया को पांच भागों में बाँट कर देखते हैं – इजरायल, यूरोपियन देश, अमेरिका, अफ्रीका तथा भारत। इजरायल अपने आपको को कोरोना मुक्त देश घोषित कर चूका है, तकनीकी शब्दों में वह एंडेमिक अवस्था पर है, अधिकतर यूरोपियन देशों की योजना अगस्त 2022 तक टिकाकरण पूरा कर इससे आजादी पाने की है तो अमेरिका में 4 जुलाई 2021 को अमेरिका के स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर इससे विजय पाने की चर्चा है। जब सभी विकसित देश अपने आप को सुरक्षित कर लेंगे हो सकता उसके बाद अफ्रीका पर ध्यान जाए मतलब कि अफ़्रीकी देशों में टीकाकरण सबसे अन्त में होगा।
बात यदि भारत की करें तो अभी हमारे यहाँ भी यह लड़ाई लम्बी है जिसका करना हर्ड इम्युनिटी को प्राप्त करने में लगने वाला समय है, हर्ड इम्युनिटी प्राप्त करने के दो तरीके हैं एक तो प्राकृतिक रूप से संक्रमित होकर तथा दूसरा वैक्सीनेशन द्वारा। देश का एक प्रतिष्ठित संस्थान ICMR अर्थात भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान परिषद समय – समय पर देश में सिरो सर्वे मतलब एंटीबाडी सर्वे करता है, अभी तक इस प्रकार के तीन नेशनल सर्वे किये जा चुके हैं- पहला जून 2020 में जिसमें 0.73 प्रतिशत लोगों में एंटीबाडी अर्थात इस बीमारी के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता का पता चला, दूसरा सर्वे अगस्त/ सितम्बर 2020 में किया गया जिसमें 6.6 प्रतिशत लोगों में इस प्रकार के एंटीबाडीज पाए गये तथा तीसरा सर्वे दिसम्बर/ जनवरी 2021 में किया गया जिसमें 21.4 प्रतिशत लोगों में इस महामारी के खिलाफ एंटीबाडीज पाए ये हैं, इन सर्वेक्षणों की प्रमाणिकता इसलिए अधिक प्रमाणिक नहीं रहती क्योकि ये केवल 25 हजार सैंपल लेकर यह सर्वे करते हैं। दूसरी ओर हमारा टिकाकरण अभियान है 137 करोड़ की आबादी वाले हमारे देश में 18 वर्ष से ऊपर की जनसँख्या जिनको यह टीका लगाया जाना है 93.7 करोड़ यानी कुल जनसँख्या का 67 प्रतिशत है। देश में वैक्सीन की वेस्टेज प्रतिशतता 6 प्रतिशत के आस पास है तो एक मोटे तौर पर हमें 200 करोड़ वैक्सीन डोज चाहिए, आज तक 17.55 करोड़ खुराकें दी जा चुकी है जबकि 182.5 करोड़ खुराकों की आवश्यकता है ।
देश में वैक्सीन उत्पादन की क्षमता 100 से 130 करोड़ प्रतिवर्ष है, ऐसे में यदि टीकाकरण की रफ़्तार यूँ ही बनी रहे तो दिसम्बर 2022 तक देश में टीकाकरण अभियान पूर्ण हो सकता है, लेकिन इस अवधि के लम्बे होने के कारण अन्य अनेक चुनौतीयां सामने आ सकती है जिनमें वायरस के बदलते वैरिएंट तथा टीकाकरण से प्राप्त की जाने वाली रोग प्रतिरोधक क्षमता की समय सीमा प्रमुख है। स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के एक अर्थशास्त्री समूह द्वारा एक अन्य अध्ययन किया गया है जिसके अनुसार 15 प्रतिशत लोगों को दोनों खुराकें तथा 63 प्रतिशत लोगों को एक खुराक मिल जाने के बाद देश में हर्ड इम्युनिटी विकसित हो जाएगी जो तथा भारत सितम्बर 2021 तक इस अवस्था को पाकर इस वैश्विक महामारी को नियन्त्रित करने में सफल हो सकता है।
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