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शिमला , 20 दिसंबर [ विशाल सूद ] ! हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थियों ने यूजीसी अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से एम ए एन एफ (Maulana Azad National Fellowship for Minority Students) को बहाल करने की मांग उठाई है। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में अध्ययनरत विद्यार्थियों का कहना है कि अल्पसंख्यकों की फेलोशिप को बंद किया जाना, उन्हें शिक्षा के अधिकार से वंचित करना है। एक तरफ जहां सरकार सबका साथ, सबका विकास की बात कर रही है। वहीं, दूसरी तरफ छात्रों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है। देश की छह अल्पसंख्यक समुदायों को इस स्कॉलरशिप का लाभ मिलता था। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में अध्ययनरत अल्पसंख्यक डे-स्कॉलर यासीन बट्ट और अर्थशास्त्र में पीएचडी कर रहे यासिर ने कहा कि साल 2014 के बाद से अभी तक 6 हजार 500 अभ्यर्थियों को इस स्कॉलरशिप का फायदा मिला है। उच्चतर शिक्षा में एमफिल, पीएचडी के दौरान फैलोशिप मिली, लेकिन अब इसे बंद कर दिया गया है। बट्ट ने कहा कि इस स्कॉलरशिप के जरिए न केवल हिमाचल प्रदेश के बल्कि देशभर के अल्पसंख्यक शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ते हैं। हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्य में इस स्कॉलरशिप की महत्ता और भी अधिक हो जाती है। यासीन बट्ट ने कहा कि यह अल्पसंख्यक छात्रों के साथ अन्याय है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि यूजीसी चेयरमैन को इस बाबत आदेश जारी किए जाएं, ताकि अल्पसंख्यक छात्रों को उनका अधिकार मिल सके। अल्पसंख्यक छात्रों ने एनएसयूआई के साथ मिलकर हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति की मार्फत केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और यूजीसी अध्यक्ष को मांग पत्र भी भेजा है। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक छात्रों ने सरकार से मांग की है कि मौलाना आजाद माइनॉरिटी फैलोशिप को जल्द से जल्द बहाल किया जाए। मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप की शुरुआत तत्कालीन यूपीए सरकार में हुई थी। तत्कालीन सरकार ने सच्चर कमेटी की सिफारिशों को मानते हुए अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं के लिए फेलोशिप की शुरुआत की थी। मौजूदा सरकार का तर्क है कि मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप जेआरएफ फेलोशिप के साथ ओवरलैप कर रही है। हालांकि अल्पसंख्यक छात्र-छात्राएं इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते। https://youtube.com/playlist?list=PLfNkwz3upB7OrrnGCDxBewe7LwsUn1bhs
शिमला , 20 दिसंबर [ विशाल सूद ] ! हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थियों ने यूजीसी अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से एम ए एन एफ (Maulana Azad National Fellowship for Minority Students) को बहाल करने की मांग उठाई है। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में अध्ययनरत विद्यार्थियों का कहना है कि अल्पसंख्यकों की फेलोशिप को बंद किया जाना, उन्हें शिक्षा के अधिकार से वंचित करना है। एक तरफ जहां सरकार सबका साथ, सबका विकास की बात कर रही है।
वहीं, दूसरी तरफ छात्रों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है। देश की छह अल्पसंख्यक समुदायों को इस स्कॉलरशिप का लाभ मिलता था।
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हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में अध्ययनरत अल्पसंख्यक डे-स्कॉलर यासीन बट्ट और अर्थशास्त्र में पीएचडी कर रहे यासिर ने कहा कि साल 2014 के बाद से अभी तक 6 हजार 500 अभ्यर्थियों को इस स्कॉलरशिप का फायदा मिला है।
उच्चतर शिक्षा में एमफिल, पीएचडी के दौरान फैलोशिप मिली, लेकिन अब इसे बंद कर दिया गया है। बट्ट ने कहा कि इस स्कॉलरशिप के जरिए न केवल हिमाचल प्रदेश के बल्कि देशभर के अल्पसंख्यक शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ते हैं। हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्य में इस स्कॉलरशिप की महत्ता और भी अधिक हो जाती है।
यासीन बट्ट ने कहा कि यह अल्पसंख्यक छात्रों के साथ अन्याय है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि यूजीसी चेयरमैन को इस बाबत आदेश जारी किए जाएं, ताकि अल्पसंख्यक छात्रों को उनका अधिकार मिल सके। अल्पसंख्यक छात्रों ने एनएसयूआई के साथ मिलकर हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति की मार्फत केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और यूजीसी अध्यक्ष को मांग पत्र भी भेजा है। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक छात्रों ने सरकार से मांग की है कि मौलाना आजाद माइनॉरिटी फैलोशिप को जल्द से जल्द बहाल किया जाए।
मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप की शुरुआत तत्कालीन यूपीए सरकार में हुई थी। तत्कालीन सरकार ने सच्चर कमेटी की सिफारिशों को मानते हुए अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं के लिए फेलोशिप की शुरुआत की थी। मौजूदा सरकार का तर्क है कि मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप जेआरएफ फेलोशिप के साथ ओवरलैप कर रही है।
हालांकि अल्पसंख्यक छात्र-छात्राएं इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते।
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