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लाहौल ! नाथो के नाथ त्रिलोकनाथ जिला लाहौल स्पीति के उदयपुर उपमंडल के चंद्रभागा नदी के साथ बहती हुई सात धारा के साथ बसा हुआ त्रिलोकनाथ का प्रचीन मंदिर स्थित है। जिला लाहौल स्पीति मे भगवान त्रिलोकनाथ का मंदिर हर वर्ष देश दुनिया से आने वाले लाखों पर्यटकों की आस्था का प्राचीन धार्मिक स्थान है। इस मंदिर में पहले सिर्फ गर्मियों के सीजन पर ही श्रद्धालु दर्शन के लिए आते थे लेकिन अटल टनल खुलने से अब सर्दियों में भी हजारों की तदाद में पर्यटक यहाँ दर्शन को आते है। मंदिर के गर्भ में पूण्य और पाप के दो पत्थरों के बड़े- बड़े पीलर है। मंदिर के कारदार, बुजुर्ग, लामा, गुर और पंडितों का कहना है कि जो इन दो पीलरों के बीच निकलता है तो वह धर्मी होता है मतलब उसने कोई पाप नहीं किया है। जिला लाहौल स्पीति में सर्दियों के दिनों में अन्य सभी मंदिरों के कपाट बंद रहते हैं लेकिन त्रिलोकनाथ, माता भगवती और नाग देवता के मंदिर के कपाट बंद नही होते। त्रिलोकनाथ मंदिर में यौर मेले के आयोजन शिवरात्रि के बाद होता है। यौर मेले का आयोजन प्राचीन काल से होता आ रहा है। यौर का अर्थ के कि शरद ऋतु से ग्रीष्म ऋतु का आगमन। इस मेले में मुख्य रूप से देव, दानव, पितृ और योगनी की पूजा की जाती है। बर्फीले शिवलिंग के चारों ओर परिक्रमा कर खेल के दौरान 'गुर' के माध्यम से पूरे साल की भविष्यवाणी भी की जाती हैं। बताया जाता है कि जनजातीय जिला लाहौल स्पीति के त्रिलोकनाथ यौर मेले में की जाने वाली भविष्यवाणी सृष्टि मेंआने वाली आपदा से सुख शांति बनाए रखने के लिए की जाती है। एक मार्च से महादेव की पूजा अर्चना के साथ त्रिलोकनाथ यौर का आगाज होता है 4 मार्च को सुरगी, सऊ ट्रिटी , सऊ ओवर, 5 मार्च को त्रिलोकनाथ का पंच अभिषेक, माता भगवती और बुहारी देवता के पुजारियों का आगमन तथा सऊ से मंदिर तक सुरगी का मनमोहक दृश्य , महादेव पूजा और 6 मार्च को यौर का मुख्य कार्य क्रम सुरगी और यांशी पूजा पाठ के बाद समापन होगा।
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