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बिलासपुर ! मुख्य चिकित्सा अधिकारी बिलासपुर डाॅक्टर प्रकाश दरोच ने बताया कि कोविड-19 के साथ-साथ स्वास्थ्य संबधी सभी जरुरी समस्याओं के बारे में भी जानकारी होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि आंखे ईश्वर का दिया अनमोल वरदान हैं। नेत्रदान हमें वह अवसर प्रदान करता है कि मृत्यु के उपरांत आप किसी को अंधेरी जिंदगी में रोशनी भर दें। उन्होंने कहा कि भगवान ने सुंदर संसार को देखने के लिए आंखें दी है। मृत्यु के बाद भी इस संसार को देखने के लिए नेत्रदान एक श्रेष्ठ विकल्प है। उन्होंने बताया कि भारत में लगभग 3 करोड व्यक्ति दृष्टिहीन हैं। यदि समय पर आंखों की जांच हो और समय पर ठीक से ईलाज करवा लिया जाए तो 8 प्रतिशत अंधता को रोका जा सकता है। उन्होंने बताया कि विभिन्न कारणों से प्रत्येक वर्ष करीब 25 से 30,000 लोग अपनी आंखों की रोशनी गंवा बैठते हैं। 15 से 20 लाख लोग केवल काॅर्निया के अभाव के चलते अंधे है, जबकि काॅर्निया दानकर्ताओं की संख्या बहुत कम है, जिसके चलते अंधा व्यक्ति दुनिया के हरे भरे रंगों का आनंद नहीं उठा पाता। उन्होंने बताया कि विश्व का हर तीसरा नेत्रहीन व्यक्ति भारतीय है। इसका कारण यह है कि हमारे देश में नेत्रदान करने का रिवाज ही नहीं है। उन्होंने कहा कि लोगों को आंख दान विषय पर संवेदनशील होना चाहिए। हर आदमी अगर आंख दान के महत्व को समझेगा तो भारत में कोई भी व्यक्ति नेत्रहीन नहीं रहेगा। मृत्यु बाद दान की गई अपनी आंखों से दो व्यक्तियों की आंखों में उजाला भर सकते हैं। उन्होंने बताया कि नेत्रदान एक सरल प्रक्रिया है। मृत्यु के 6 घंटे के अंदर नेत्रदान की प्रक्रिया पूरी की जाती है। कई लोग यह समझते हैं कि वे नेत्रदान के लिए पूरी आंख निकाल दी जाती है, जिससे मृत्यु पश्चात चेहरा विकृत या खराब हो जाता है। कुछ सोचते हैं कि नेत्रदान से अगले जन्म में हम नेत्रहीन ही पैदा होंगे। यह सभी गलत धारणाएं है। असल में डाॅक्टर मृत्यु पश्चात नेत्रदाता की आंख से केवल आंख का एक हिस्सा जिसे काॅर्निया आंख की पुतली के उपर शीशे की तरह एक परत होती है निकालता है। काॅर्निया प्रायः कुपोषण, जन्मजात दोष, अपघात, आंख में संक्रमण या चोट लगने से क्ष्तिग्रस्त हो जाता है। काॅर्निया के क्षतिग्रस्त होने के कारण जिस व्यक्ति की दृष्टि चली गई है वह काॅर्निया प्रत्यारोपण द्वारा पुनः दृष्टि प्राप्त कर सकता है। उन्होंने बताया कि काॅर्निया का कोई कृत्रिम विकल्प तैयार नहीं किया जा सकता। इसलिए इसे दान करके ही ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। किसी भी उम्र का कोई भी व्यक्ति नेत्रदान कर सकता है। जो व्यक्ति नजर का चश्मा लगाते है अथवा जिन्होंने आंखों का सफल आॅप्रेशन करवाया है अथवा जो किसी रोग से पीडित हैं वह भी अपनी आंखें दान कर सकते हैं। नेत्रदान करने वाले व्यक्ति के परिवार से कोई फीस नहीं ली जाती। उन्होंने कहा कि जो भी व्यक्ति अपनी आंखें दान करना चाहता है, वह अपने शहर के नजदीक के आई बैंक में जाकर नेत्रदान की प्रतिज्ञा को रजिस्टर कर लेंगे और नेत्रदान कार्ड दे देंगे। आई बैंक आपके क्षेत्र के मेडिकल काॅलेज या आंखों के अस्पताल में स्थित हो सकता है। कोई भी व्यक्ति जीवन में किसी भी समय नेत्रदान करने की प्रतिज्ञा ले सकता है। नेत्रदान एक ऐसा दान है जिसमें हमें कुछ भी नहीं देना पडता। यह दान हमारी मृत्यु के बाद ही फलीभूत होगा। उन्होंने आग्रह किया नेत्रदान के इस इस पवित्र कार्य में अपना हाथ बंटाएं, ताकि देश में काॅर्निया के अभाव में कोई नेत्रहीन न रहे।
बिलासपुर ! मुख्य चिकित्सा अधिकारी बिलासपुर डाॅक्टर प्रकाश दरोच ने बताया कि कोविड-19 के साथ-साथ स्वास्थ्य संबधी सभी जरुरी समस्याओं के बारे में भी जानकारी होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि आंखे ईश्वर का दिया अनमोल वरदान हैं। नेत्रदान हमें वह अवसर प्रदान करता है कि मृत्यु के उपरांत आप किसी को अंधेरी जिंदगी में रोशनी भर दें। उन्होंने कहा कि भगवान ने सुंदर संसार को देखने के लिए आंखें दी है। मृत्यु के बाद भी इस संसार को देखने के लिए नेत्रदान एक श्रेष्ठ विकल्प है।
उन्होंने बताया कि भारत में लगभग 3 करोड व्यक्ति दृष्टिहीन हैं। यदि समय पर आंखों की जांच हो और समय पर ठीक से ईलाज करवा लिया जाए तो 8 प्रतिशत अंधता को रोका जा सकता है। उन्होंने बताया कि विभिन्न कारणों से प्रत्येक वर्ष करीब 25 से 30,000 लोग अपनी आंखों की रोशनी गंवा बैठते हैं। 15 से 20 लाख लोग केवल काॅर्निया के अभाव के चलते अंधे है, जबकि काॅर्निया दानकर्ताओं की संख्या बहुत कम है, जिसके चलते अंधा व्यक्ति दुनिया के हरे भरे रंगों का आनंद नहीं उठा पाता। उन्होंने बताया कि विश्व का हर तीसरा नेत्रहीन व्यक्ति भारतीय है। इसका कारण यह है कि हमारे देश में नेत्रदान करने का रिवाज ही नहीं है।
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उन्होंने कहा कि लोगों को आंख दान विषय पर संवेदनशील होना चाहिए। हर आदमी अगर आंख दान के महत्व को समझेगा तो भारत में कोई भी व्यक्ति नेत्रहीन नहीं रहेगा। मृत्यु बाद दान की गई अपनी आंखों से दो व्यक्तियों की आंखों में उजाला भर सकते हैं। उन्होंने बताया कि नेत्रदान एक सरल प्रक्रिया है। मृत्यु के 6 घंटे के अंदर नेत्रदान की प्रक्रिया पूरी की जाती है। कई लोग यह समझते हैं कि वे नेत्रदान के लिए पूरी आंख निकाल दी जाती है, जिससे मृत्यु पश्चात चेहरा विकृत या खराब हो जाता है। कुछ सोचते हैं कि नेत्रदान से अगले जन्म में हम नेत्रहीन ही पैदा होंगे। यह सभी गलत धारणाएं है।
असल में डाॅक्टर मृत्यु पश्चात नेत्रदाता की आंख से केवल आंख का एक हिस्सा जिसे काॅर्निया आंख की पुतली के उपर शीशे की तरह एक परत होती है निकालता है। काॅर्निया प्रायः कुपोषण, जन्मजात दोष, अपघात, आंख में संक्रमण या चोट लगने से क्ष्तिग्रस्त हो जाता है। काॅर्निया के क्षतिग्रस्त होने के कारण जिस व्यक्ति की दृष्टि चली गई है वह काॅर्निया प्रत्यारोपण द्वारा पुनः दृष्टि प्राप्त कर सकता है। उन्होंने बताया कि काॅर्निया का कोई कृत्रिम विकल्प तैयार नहीं किया जा सकता। इसलिए इसे दान करके ही ट्रांसप्लांट किया जा सकता है।
किसी भी उम्र का कोई भी व्यक्ति नेत्रदान कर सकता है। जो व्यक्ति नजर का चश्मा लगाते है अथवा जिन्होंने आंखों का सफल आॅप्रेशन करवाया है अथवा जो किसी रोग से पीडित हैं वह भी अपनी आंखें दान कर सकते हैं। नेत्रदान करने वाले व्यक्ति के परिवार से कोई फीस नहीं ली जाती।
उन्होंने कहा कि जो भी व्यक्ति अपनी आंखें दान करना चाहता है, वह अपने शहर के नजदीक के आई बैंक में जाकर नेत्रदान की प्रतिज्ञा को रजिस्टर कर लेंगे और नेत्रदान कार्ड दे देंगे। आई बैंक आपके क्षेत्र के मेडिकल काॅलेज या आंखों के अस्पताल में स्थित हो सकता है। कोई भी व्यक्ति जीवन में किसी भी समय नेत्रदान करने की प्रतिज्ञा ले सकता है।
नेत्रदान एक ऐसा दान है जिसमें हमें कुछ भी नहीं देना पडता। यह दान हमारी मृत्यु के बाद ही फलीभूत होगा। उन्होंने आग्रह किया नेत्रदान के इस इस पवित्र कार्य में अपना हाथ बंटाएं, ताकि देश में काॅर्निया के अभाव में कोई नेत्रहीन न रहे।
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