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धर्मशाला , 24 नवंबर ! जिला मुख्यालय धर्मशाला के समीप चैतड़ू स्थित बौद्ध स्तूप (भीम का टिल्ला) में एक बार उत्खनन हुआ है। इस स्मारक में उत्खनन की और जरूरत है, जो कि भारती पुरातत्व सर्वेक्षण की प्रपोजल में भी शामिल है। हाल ही में श्रीनगर में आयोजित विभाग की बैठक में प्रदेश के अन्य स्मारकों के साथ बौद्ध स्तूप बारे भी चर्चा हुई है, क्योंकि यह साइट उत्खनन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण शिमला के सहायक पुरातत्वविद डा. विजय कुमार बोध ने बताया कि इस स्मारक की खोज खोज गगल-चैतड़ू सडक़ मार्ग के निर्माण के दौरान हुई थी। वहां पर कुछ मूर्तियां व पुरातन वस्तुएं मिली थी। बौद्ध स्तूप में अभी और उत्खनन की जरूरत है, जो कि विभाग के आगामी प्रपोजल में शुमार है। आगामी 2-2 साल में यहां पर विभाग की ओर से उत्खनन का प्रयास किया जाएगा। डा. विजय के अनुसार जो भी स्तूप होते हैं, उनमें किसी गुरु की अस्थियां दबी रहती हैं और उसके ऊपर गुंबदनुमा स्तूप बनाया जाता है और चैतडू का स्तूप भी इसी तरह का माना जाता है। पूरी संभावना है कि यहां भी और कुछ अवशेष मिल सकते हैं। बकौल डा. विजय बुद्धिज्म का धर्मशाला बहुत बड़ा सेंटर है, यदि बौद्ध स्तूप में बुद्धिज्म के कोई अवशेष मिलते हैं तो उसे विभाग अच्छे से एसोसिएट कर सकता है। इससे जहां टूरिज्म बढ़ेगा, वहीं विभाग की साइट भी डिवेलप होगी और रखरखाव और भी बेहतर ढंग से हो पाएगा। प्रदेश भर में 40 पुरातन स्मारक हैं, जिनका संरक्षण पुरातत्व विभाग की ओर से किया जाता है। बौद्ध स्तूप उत्खनन की दृष्टि से महत्वपूर्ण साइट है, यदि इसकी खुदाई होगी तो अवश्य यहां और भी सोलिड अवशेष मिलने की पूरी संभावना है। खुदाई में जो अवशेष मिलते हैं, उसके हिसाब से उन अवशेषों की टाइमलाइन सेट की जाती है। उसी से यह अंदाजा लगाया जाता है कि कितनी पुरानी सभ्यता रही होगी या फिर संबंधित स्मारक रहा होगा। हाल ही में विभाग की श्रीनगर में आयोजित बैठक में भी प्रदेश और जिला के स्मारकों पर चर्चा हुई है, जिसमें चैतडू के बौद्ध स्तूप का विषय भी रहा है।
धर्मशाला , 24 नवंबर ! जिला मुख्यालय धर्मशाला के समीप चैतड़ू स्थित बौद्ध स्तूप (भीम का टिल्ला) में एक बार उत्खनन हुआ है। इस स्मारक में उत्खनन की और जरूरत है, जो कि भारती पुरातत्व सर्वेक्षण की प्रपोजल में भी शामिल है। हाल ही में श्रीनगर में आयोजित विभाग की बैठक में प्रदेश के अन्य स्मारकों के साथ बौद्ध स्तूप बारे भी चर्चा हुई है, क्योंकि यह साइट उत्खनन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण शिमला के सहायक पुरातत्वविद डा. विजय कुमार बोध ने बताया कि इस स्मारक की खोज खोज गगल-चैतड़ू सडक़ मार्ग के निर्माण के दौरान हुई थी। वहां पर कुछ मूर्तियां व पुरातन वस्तुएं मिली थी। बौद्ध स्तूप में अभी और उत्खनन की जरूरत है, जो कि विभाग के आगामी प्रपोजल में शुमार है। आगामी 2-2 साल में यहां पर विभाग की ओर से उत्खनन का प्रयास किया जाएगा।
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डा. विजय के अनुसार जो भी स्तूप होते हैं, उनमें किसी गुरु की अस्थियां दबी रहती हैं और उसके ऊपर गुंबदनुमा स्तूप बनाया जाता है और चैतडू का स्तूप भी इसी तरह का माना जाता है। पूरी संभावना है कि यहां भी और कुछ अवशेष मिल सकते हैं।
बकौल डा. विजय बुद्धिज्म का धर्मशाला बहुत बड़ा सेंटर है, यदि बौद्ध स्तूप में बुद्धिज्म के कोई अवशेष मिलते हैं तो उसे विभाग अच्छे से एसोसिएट कर सकता है। इससे जहां टूरिज्म बढ़ेगा, वहीं विभाग की साइट भी डिवेलप होगी और रखरखाव और भी बेहतर ढंग से हो पाएगा। प्रदेश भर में 40 पुरातन स्मारक हैं, जिनका संरक्षण पुरातत्व विभाग की ओर से किया जाता है। बौद्ध स्तूप उत्खनन की दृष्टि से महत्वपूर्ण साइट है, यदि इसकी खुदाई होगी तो अवश्य यहां और भी सोलिड अवशेष मिलने की पूरी संभावना है।
खुदाई में जो अवशेष मिलते हैं, उसके हिसाब से उन अवशेषों की टाइमलाइन सेट की जाती है। उसी से यह अंदाजा लगाया जाता है कि कितनी पुरानी सभ्यता रही होगी या फिर संबंधित स्मारक रहा होगा। हाल ही में विभाग की श्रीनगर में आयोजित बैठक में भी प्रदेश और जिला के स्मारकों पर चर्चा हुई है, जिसमें चैतडू के बौद्ध स्तूप का विषय भी रहा है।
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