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धर्मशाला , 04 अक्टूबर ! तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने कहा है कि जो भी युद्ध हुए वे अपने स्वार्थ की बजह से हुए हैं। युद्ध में यह बात करो तो बहुत ज्यादा मोह उत्पन्न करने की जरूरत है। दुनिया में बहुत से धर्म है सभी धर्म कहते हैं कि किसी को हानि नहीं पहुंचानी चाहिए। लेकिन आशक्ति रूपी चित कैसे आता है इसमें भारतीय दर्शन की भी व्याख्या की है। दलाई लामा मंगलवार को मैक्लोडगंज स्थित मुख्य बौद्ध मंदिर में ताईवान से आए बौद्ध भिक्षुओं व अन्य अनयायियों को प्रवचन दे रहे थे। दलाई लामा ने कहा बिना परीक्षण के लगता है सब कुछ शुद्ध है सही है, लेकिन जब परीक्षण करते हैं तो पता चलता है कि वह स्वभाव से सिद्ध है या नहीं। स्वभाव से शून्य है, लेकिन स्वभाव को अच्छी तरह से समझने की कोशिश करें तो जो हम सोचते हैं, समझते हैं वह जानकारी कम पड़ सकती है। उसके अर्थ को समझने की जरूरत है। सभी वस्तुएं स्वभाव सिद्ध नहीं हैं। इसके लिए परीक्षण की जरूरत है। भवचक्र में इस दुनिया में कलेश कर्मों से हमें दूर रहना है और मिथ्या से दूर रहना है और सत्य के मार्ग पर चलना है। लेकिन इसके लिए सोच समझ की जरूरत है। दलाई लामा ने इससे पहले प्रज्ञा पाठ, हृदय सूत्र पाठ तिब्बती में किया गया। इस मौके पर अन्य देशों के अनुयायी भी मौजूद रहे और शिक्षा ग्रहण की। पिछले कल के प्रवचन से आगे आज के प्रवचन दलाईलामा ने दिए। हर रोज हर क्षण हमारे भीतर आशक्ति, अलगाव है मोह है वह पैदा होता है। जिस चीज को हम देखते हैं उसके प्रति आशक्ति पैदा होती है और अच्छा नहीं लगता उसके प्रति अमोह होता है। जो अच्छा लगता है उससे मोह होता है। प्रज्ञा के आधार पर प्रमाणित होना चाहिए। जब सत्यता को समझे तो मिथ्या कम होगी। कार्य व मन के द्वारा किए जाने वाले गलत काम ही दुखों को जन्म देते हैं। लेकिन मैं प्रज्ञा के आधार पर कोई स्वतंत्र आत्मा है तो इसे सिद्ध नहीं कर सकते। दूसरे जीवधारियों में भी जब चिंतन करते हैं तो उनमें भी मैं की भावना है। जब चिंतन करते हैं तो जब शून्यता के माध्यम से कलेशों को समझने की कोशिश करें तो जब हम चीजों को नहीं देख पाते हैं तो वह भ्रम से उत्पन्न होती है। इन्हें प्रतिकारों से खत्म किया जा सकता है। परीक्षण से कलेश को खत्म कर सकते हैं। अच्छे व बुरे कर्मों को लेकर परीक्षण व अध्ययन करना चाहिए। मोह को अच्छे तरह से समझना चाहिए। पूर्व के हमारे ग्रंथों को साथ-साथ रखकर उनका अध्ययन करके मोह को समझना चाहिए। दुख की उत्पत्ति होती है, अचानक होती है। दुख इच्छा का कारण और इच्छा व मोह ही दुख का कारण है। इस गंभीरता तो समझने की जरूरत है।
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