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चम्बा ! जिला चम्बा के गांव गोला में बने भगवान शिव के इस मंदिर से लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। यह शिव मंदिर लगभग 20 साल पहले कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देने वाले इक्कीस बर्षीय जांबाज पंजाब रेजीमेंट के सिपाही खेम राज की यादगार में उनके माता-पिता द्वारा बनवाया गया। तब से लेकर आज तक यहां कई शिव भक्त अपनी मनोकामना ले कर आया करते हैं और भक्तों की मन्नतें भी पूर्ण होती हैं। यह शिव मंदिर इस गांव में सबसे बड़ा मंदिर है। शहीद के माता-पिता हर सुबह-शाम यहां पूजा-अर्चना करते हैं। हर बर्ष यहां शिवरात्रि के दिन हवन- कीर्तन किया जाता है और उपस्थित भक्तगणों को प्रशाद बांटा जाता है।शहीद खेम राज अपनी पांच बहनों के एक ही भाई थे। उनका जन्म 17 अक्तूबर 1978 में गांव गोला में श्री मुंशी राम ठाकुर व माता श्रीमती बेगमा ठाकुर के घर हुआ था। 1996 में जी॰डी॰ सिपाही के रूप में पंजाब रेजीमेंट में भर्ती हुये। जनवरी 1999 में पाकिस्तान के साथ हालात बिगड़ने के पर तीन पंजाब रेजीमैंट को कारगिल की अग्रिम चौंकियों पर तैनात किया गया। पांच जून 1999 को सुबह 6:45 पर उन्होने पाकिस्तानी उग्रवादियों के साथ डट कर मुक़ाबला किया जिसमें 6 जून 1999 को रात के 2:30 बजे वह प्रभु के चरणों में विलीन हो गए। खेम राज ने अपने पीछे पांच बहनें व बूढ़े माता-पिता छोड़ कर भारत माता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
चम्बा ! जिला चम्बा के गांव गोला में बने भगवान शिव के इस मंदिर से लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। यह शिव मंदिर लगभग 20 साल पहले कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देने वाले इक्कीस बर्षीय जांबाज पंजाब रेजीमेंट के सिपाही खेम राज की यादगार में उनके माता-पिता द्वारा बनवाया गया। तब से लेकर आज तक यहां कई शिव भक्त अपनी मनोकामना ले कर आया करते हैं और भक्तों की मन्नतें भी पूर्ण होती हैं। यह शिव मंदिर इस गांव में सबसे बड़ा मंदिर है। शहीद के माता-पिता हर सुबह-शाम यहां पूजा-अर्चना करते हैं। हर बर्ष यहां शिवरात्रि के दिन हवन- कीर्तन किया जाता है और उपस्थित भक्तगणों को प्रशाद बांटा जाता है।शहीद खेम राज अपनी पांच बहनों के एक ही भाई थे। उनका जन्म 17 अक्तूबर 1978 में गांव गोला में श्री मुंशी राम ठाकुर व माता श्रीमती बेगमा ठाकुर के घर हुआ था। 1996 में जी॰डी॰ सिपाही के रूप में पंजाब रेजीमेंट में भर्ती हुये। जनवरी 1999 में पाकिस्तान के साथ हालात बिगड़ने के पर तीन पंजाब रेजीमैंट को कारगिल की अग्रिम चौंकियों पर तैनात किया गया। पांच जून 1999 को सुबह 6:45 पर उन्होने पाकिस्तानी उग्रवादियों के साथ डट कर मुक़ाबला किया जिसमें 6 जून 1999 को रात के 2:30 बजे वह प्रभु के चरणों में विलीन हो गए। खेम राज ने अपने पीछे पांच बहनें व बूढ़े माता-पिता छोड़ कर भारत माता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
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