- विज्ञापन (Article Top Ad) -
चम्बा ! चम्बा जिला में रानी सुनयना की याद में तीन दिन तक मनाया जाने वाला सुई मेला पिछले कल संपन्न हुआ। कल शाम को माता की मूर्ति को पालकी में बिठाकर बाजे गाजे के साथ राज महल में वापस लाया गया। रास्ते में गद्दी महिलाओं द्वारा सुकरात का गायन भी किया गया। दरअसल चम्बा नगर में पानी की कमी के चलते रानी सुनयना ने अपना बलिदान दिया था। जिस समय चम्बा नगर को राजा द्वारा बसाया गया उस समय चम्बा में पानी की किल्लत हुई। एक दिन रानी को सपने में कुलदेवी ने कहा कि चम्बा में अगर पानी की कमी को पूरा करना है तो राज परिवार से किसी एक व्यक्ति का बलिदान देना होगा। सुबह उठकर रानी ने अपना स्वप्न सबको सुनाया। रानी ने सोचा कि अगर राजा का बलिदान होता है तो राजपाठ कौन चलाएगा और अगर बच्चों का बलिदान दिया जाता है तो वंश आगे कैसे बढ़ेगा इसलिए रानी ने खुद अपना बलिदान देने का निर्णय किया। रानी को पालकी में बिठाकर मलूना नामक स्थान पर ले जाया गया। रास्ते में एक जगह पर जहां पर पालकी को विश्राम दिया गया तो रानी ने बड़ी ही तरसती निगाहों से अपने नगर की ओर वापस देखा। रानी ने इच्छा जाहिर की इस स्थान पर मेरा एक मंदिर बनाया जाए और हर साल यहां पर 3 दिन तक मेला मनाया जाए। यह मेला पहले महिला प्रधान हुआ करता था। जनजातीय क्षेत्र भरमौर की गद्दी समुदाय की महिलाएं यहां नृत्य करती हैं। यहां बसोआ गायन भी गाया जाता है। तीसरे दिन जब रानी की मूर्ति को वापस महल में लाया जाता है तो उसको सुकरात कहा जाता है यानी बिरहा की रात कहा जाता है। जब रानी की मूर्ति को वापस महल में पालकी में बिठा कर लाया जाता था उस समय हल्की बारिश की बूंदे जरूर होती है। इसी तरह 3 दिन तक इस मेले को मना कर रानी सुनयना के बलिदान को याद किया जाता है। मेले में भाग लेकर आए लोगों ने बताया कि रानी सुनयना के बलदान को याद् करने के लिए चम्बा में 3 दिन तक यहां मेला मनाया जाता है। रानी सुनयना ने चम्बा नगर में पानी की कमी के चलते बलिदान दिया था। उन्होंने बताया जब रानी की मूर्ति को तीसरी शाम पालकी में बिठा राज महल में लाया जाता है तो उस समय बारिश जरूर होती है। उन्होंने बताया कि रानी के इस बलिदान को हमेशा याद रखा जाएगा।
चम्बा ! चम्बा जिला में रानी सुनयना की याद में तीन दिन तक मनाया जाने वाला सुई मेला पिछले कल संपन्न हुआ। कल शाम को माता की मूर्ति को पालकी में बिठाकर बाजे गाजे के साथ राज महल में वापस लाया गया। रास्ते में गद्दी महिलाओं द्वारा सुकरात का गायन भी किया गया। दरअसल चम्बा नगर में पानी की कमी के चलते रानी सुनयना ने अपना बलिदान दिया था। जिस समय चम्बा नगर को राजा द्वारा बसाया गया उस समय चम्बा में पानी की किल्लत हुई।
एक दिन रानी को सपने में कुलदेवी ने कहा कि चम्बा में अगर पानी की कमी को पूरा करना है तो राज परिवार से किसी एक व्यक्ति का बलिदान देना होगा। सुबह उठकर रानी ने अपना स्वप्न सबको सुनाया। रानी ने सोचा कि अगर राजा का बलिदान होता है तो राजपाठ कौन चलाएगा और अगर बच्चों का बलिदान दिया जाता है तो वंश आगे कैसे बढ़ेगा इसलिए रानी ने खुद अपना बलिदान देने का निर्णय किया। रानी को पालकी में बिठाकर मलूना नामक स्थान पर ले जाया गया। रास्ते में एक जगह पर जहां पर पालकी को विश्राम दिया गया तो रानी ने बड़ी ही तरसती निगाहों से अपने नगर की ओर वापस देखा।
- विज्ञापन (Article Inline Ad) -
रानी ने इच्छा जाहिर की इस स्थान पर मेरा एक मंदिर बनाया जाए और हर साल यहां पर 3 दिन तक मेला मनाया जाए। यह मेला पहले महिला प्रधान हुआ करता था। जनजातीय क्षेत्र भरमौर की गद्दी समुदाय की महिलाएं यहां नृत्य करती हैं। यहां बसोआ गायन भी गाया जाता है। तीसरे दिन जब रानी की मूर्ति को वापस महल में लाया जाता है तो उसको सुकरात कहा जाता है यानी बिरहा की रात कहा जाता है। जब रानी की मूर्ति को वापस महल में पालकी में बिठा कर लाया जाता था उस समय हल्की बारिश की बूंदे जरूर होती है। इसी तरह 3 दिन तक इस मेले को मना कर रानी सुनयना के बलिदान को याद किया जाता है।
मेले में भाग लेकर आए लोगों ने बताया कि रानी सुनयना के बलदान को याद् करने के लिए चम्बा में 3 दिन तक यहां मेला मनाया जाता है। रानी सुनयना ने चम्बा नगर में पानी की कमी के चलते बलिदान दिया था। उन्होंने बताया जब रानी की मूर्ति को तीसरी शाम पालकी में बिठा राज महल में लाया जाता है तो उस समय बारिश जरूर होती है। उन्होंने बताया कि रानी के इस बलिदान को हमेशा याद रखा जाएगा।
- विज्ञापन (Article Bottom Ad) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 1) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 2) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 3) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 4) -