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चम्बा ! शब्द नहीं ढूंढने हैं मुझे तू तो मेरा अहसास है, खुदा को कहाँ देख पाता हूँ बेटी तू ही तो मेरे पास है।। ममता की मूरत माँ भी कभी-कभी सकपका जाती है, बेटी तू जब दौड़ कर पहले पापा के गले लग जाती है।। कुछ तो बदलाव आया है कुछ तो रंग बदले हैं, उईमाँ की जगह अब बापरे हो जाता है।। देर के बाद ही सही जमाने ने कुछ तो करवट बदली है, जहाँ देखो परचम पर बेटी ही नज़र आती है।। इक गुनाह काफी है मेरा सजा मिलेगी उस अदालत में, देर कर दी बड़ी तेरी पहचान करने में।। नहीं मांगुंगा मुआफी गुहार भी नहीं लगाऊंगा खुदा की चौखट पर, सजा काट लूंगा फिर माँग कर तुझे ही बेटी बनाऊंगा।। भूल से भी फिर तूझे बेटा नहीं कहूँगा मेरी गुडिया, गर्व से तू भी कहेगी मैं बेटी हूँ जमाना रंज में थौड़ा मुझसे आएगा।।
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