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चम्बा 03 अप्रैल [ शिवानी ] ! चम्बा नगर को शिव व देव भूमि भी कहा जाता है। यहां के धार्मिक मेले त्योहार पूरी दुनिया में एक अलग ही पहचान बनाए हुए हैं। इसी कड़ी में शुमार है चरपट नाथ महाराज से जुड़ा खिन्नू जातर मेला। चैत्र महीने की 20 तारीख को यानी 2 अप्रैल को इस खिन्नू जातर मेले का आयोजन चम्बा के ऐतिहासिक चौगान मैदान में करवाया जाता है। माना जाता है कि चटपट नाथ को खेलों से बहुत ही लगाव था। यही वजह है कि आज भी चम्बा के इस ऐतिहासिक चौगान मैदान में जब चटपटानाथ से जुड़े इस खिन्नू जातर मेला का आयोजन होता है उसके बाद ही चम्बा में मेले और खेलों का आयोजन शुरू होता है। चम्बा नगर में स्थित चरपट नाथ महाराज मंदिर में पूजा अर्चना के बाद एक शोभायात्रा निकाली गई जो पहले भगवान लक्ष्मी नारायण मंदिर में स्थित चरट नाथ समाधि पर पहुंची जहां पर पूजा अर्चना के बाद शोभायात्रा शहर के मुख्य बाजार से होती हुई चमेशनी के चंपावती मंदिर पहुंची। वहां पर भी पूजा अर्चना के बाद यह शोभायात्रा चम्बा के ऐतिहासिक चौगान पहुंची जहां पर इस खिन्नू जातर मेले का आयोजन किया गया। मान्यता के अनुसार चरपट नाथ महाराज नाथ पंथ के एक सिद्ध योगी थे जिन्होंने पूर्ण आत्मज्ञान की स्थिति प्राप्त कर ली थी। उनके गुरु या तो गोरखनाथ या मत्स्येन्द्रनाथ थे। चम्बा साम्राज्य में पारंपरिक रूप से चरपट नाथ के जुड़े तीन प्रमुख स्थान जो भरमौर में 84 सिद्ध मंदिर, चम्बा में चंपावती मंदिर और चम्बा में चरपट नाथ मंदिर है। किवदंतियों के अनुसार चरपट नाथ और आठ-चार सिद्ध भरमौर आए थे जो राज्य की पुरानी राजधानी थी जब वहां राजा साहिल बर्मन का शासन था। कहा जाता है कि चरपट नाथ राजा साहिल बर्मन के काफी करीबी माने जाते थे। वास्तव में चरपट नाथ ही थे जिन्होंने राजा साहिल बर्मन को 10 पुत्र और एक पुत्री होने का आशीर्वाद दिया था। राजा साहिल वर्मन ने उन्हें अपने गुरु के रूप में भी स्वीकार किया था। राजा साहिल बर्मन ने वर्ष 920 ई के आसपास राज्य की राजधानी को भरमौर से चम्बा स्थानांतरित किया था और माना जाता है यह निर्णय लेने में चरपट नाथ ने भी भाग लिया था। चम्बा शहर में लक्ष्मी नारायण समूह मंदिर का निर्माण राजा साहिल बर्मन ने चरपट नाथ के निर्देश में करवाया था। स्थानीय लोगों ने कहा कि चम्बा में आज चरपट नाथ मंदिर से एक शोभायात्रा निकाली और चौगान मैदान में खिन्नू जातर मेले लेकर आयोजन करवाया गया। वही पूर्व रणजी ट्रॉफी खिलाड़ी व हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व सचिव श्री चंद नैय्यर ने बताया कि चरपट नाथ महाराज का खेलों से काफी लगाव था और जब भी चम्बा शहर में कोई भी प्रतियोगिता होती है तो सबसे पहले भगवान चरपट नाथ का आगे शीश नवाजा जाता हैं और जीत के बाद भी मंदिर में जाया जाता है। उन्होंने कहा कि जब वह किसी खेल प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए बाहर के राज्यों में जाते थे तो वहां मैच से पहले चरपट नाथ महाराज के जय घोष होता था तो उसे पता चलता है कि यह चम्बा की टीम है। उन्होंने कहा कि चम्बा का हर खिलाड़ी चरपट नाथ का नाम लेकर ही अपने खेल को शुरू करता है। वही इतिहासकार डॉ राजेश सहगल ने बताया कि जब दशमी शताब्दी में राजा साहिल बर्मन चम्बा आये तो वह और उनकी पुत्री यहां के दृश्यों की देख मंत्र मुक्त हो गया तो उन्होंने अपनी राजधानी बरहमपुर के स्थान पर यहां पर राजधानी बनाने का निश्चित किया। जब राजा साहिल वर्मन चम्बा आए तो उनके साथ सिद्ध योगी चरपट नाथ जी भी थे। जरा साहिल वर्मन चरपट नाथ के काफी करीब होने से उन्हें बहुत कुछ सीखने को भी और ज्ञान की प्राप्ति हुई। जब साहिल वर्मन चम्बा आये तो उन्होंने चरपट नाथ से पूछा कि अगर हम चम्बा को अपनी राजधानी बसा ले तो कैसा रहेगा। तो उनकी सलाह पर ही उन्होंने यह निर्णय लिया। इतिहासकार सहगल ने बताया कि भगवान लक्ष्मी नारायण मंदिर के निर्माण कार्य को भी चरपट नाथ के निर्देशों पर ही करवाया गया था। वही चरपट नाथ मंदिर मंदिर के पुजारी ने बताया कि आज चम्बा में खिन्नू जातर मेले का आयोजन किया जा रहा है। यहां परंपरा राजा साहिल बर्मन के शासन कल से चली आ रही है। जब नो नाथ व 84 सिद्ध भरमोर आए थे तो राजा ने उनकी काफी आओ भगत की थी तो उनकी सेवा से प्रसन्न होकर उन्होंने खुश होकर राजा को 10 पुत्र और एक पुत्री का आशीर्वाद दिया था। और जब उन्हें 10 पुत्रों और एक पुत्री की प्राप्ति हुई तो राजा ने चरपट नाथ को अपना गुरु माना था और जब राजा साहिल बर्मन ने अपनी राजधानी भरमौर से चम्बा स्थानांतरण की तो उनके साथ चरपट नाथ महाराज भी आए थे। उन्होंने कहा कि साहिल बर्मन की पुत्री रानी चंपावती जब बड़ी हुई तो उनका स्वयंवर रचाया गया तो उस स्वयंवर में शामिल होने के लिए चरपट नाथ महाराज भी भरमौर से चम्बा पहुंचे। जब चम्बा शहर में उन्होंने प्रवेश किया तो उनके सर पर जटाये थी और साथ में बादल की छांव भी उनके मुंह पर थी। जब राजकुमारी ने जब उन्हें देखा तो उन्होंने कहा कि यह कोई सिद्ध पुरुष है और मैं इन्हीं से अपना विवाह करूंगी तो उन्होंने इस समय उन्हें अपना पति मान लिया। लेकिन जब शादी के रसमें शुरू होने लगी तो चरपट नाथ महाराज को इस बात का पता चला तो उन्होंने कहा कि यह बहुत बड़ा अनर्थ हो गया है उन्होंने कहा कि उन्हें माता पार्वती का श्राप है कि एक महिला उनके साथ लगेगी लेकिन भगवान शंकर ने उन्हें कहा था कि वह सांसारिक भोग नहीं करेंगे और समय उनका आधा विवाह ही हुआ तो चटपटानाथ महाराज ने रानी को कहां की आने वाले समय में जब उनके बच्चे होंगे तो वह रानी चंपावती के मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करेंगे और वहां पर एक दुल्हन का साज सिंगर का सामान लिया जाएगा और वहां पर रानी की मूर्ति को सजाया जाएगा तब उनके विवाह को पूर्ण माना जाएगा। तब से यह भी रसम यहां की जाती है। उन्होंने कहा कि जब बच्चे मैदान में खेलते थे तो उनके साथ चरपट नाथ भी बच्चों के रूप में आकर खेलते थे और जिस टीम में वह होते थे वह हमेशा टीम जीतती थी। जब बच्चों ने इसका राज जानने की कोशिश की तो उन्होंने बताया कि वह चरपट नाथ है बाद में उन्होंने राजा से कहा कि अब उनका भेद खुल चुका है और अब वह यहां से जा रहे हैं और हर साल इसी तरह चैत्र मास में चौगान मैदान में बच्चों के खेलों का आयोजन करवाया जाए तब से यह परंपरा निभाई जा रही है।
चम्बा 03 अप्रैल [ शिवानी ] ! चम्बा नगर को शिव व देव भूमि भी कहा जाता है। यहां के धार्मिक मेले त्योहार पूरी दुनिया में एक अलग ही पहचान बनाए हुए हैं। इसी कड़ी में शुमार है चरपट नाथ महाराज से जुड़ा खिन्नू जातर मेला। चैत्र महीने की 20 तारीख को यानी 2 अप्रैल को इस खिन्नू जातर मेले का आयोजन चम्बा के ऐतिहासिक चौगान मैदान में करवाया जाता है। माना जाता है कि चटपट नाथ को खेलों से बहुत ही लगाव था। यही वजह है कि आज भी चम्बा के इस ऐतिहासिक चौगान मैदान में जब चटपटानाथ से जुड़े इस खिन्नू जातर मेला का आयोजन होता है उसके बाद ही चम्बा में मेले और खेलों का आयोजन शुरू होता है। चम्बा नगर में स्थित चरपट नाथ महाराज मंदिर में पूजा अर्चना के बाद एक शोभायात्रा निकाली गई जो पहले भगवान लक्ष्मी नारायण मंदिर में स्थित चरट नाथ समाधि पर पहुंची जहां पर पूजा अर्चना के बाद शोभायात्रा शहर के मुख्य बाजार से होती हुई चमेशनी के चंपावती मंदिर पहुंची। वहां पर भी पूजा अर्चना के बाद यह शोभायात्रा चम्बा के ऐतिहासिक चौगान पहुंची जहां पर इस खिन्नू जातर मेले का आयोजन किया गया।
मान्यता के अनुसार चरपट नाथ महाराज नाथ पंथ के एक सिद्ध योगी थे जिन्होंने पूर्ण आत्मज्ञान की स्थिति प्राप्त कर ली थी। उनके गुरु या तो गोरखनाथ या मत्स्येन्द्रनाथ थे। चम्बा साम्राज्य में पारंपरिक रूप से चरपट नाथ के जुड़े तीन प्रमुख स्थान जो भरमौर में 84 सिद्ध मंदिर, चम्बा में चंपावती मंदिर और चम्बा में चरपट नाथ मंदिर है। किवदंतियों के अनुसार चरपट नाथ और आठ-चार सिद्ध भरमौर आए थे जो राज्य की पुरानी राजधानी थी जब वहां राजा साहिल बर्मन का शासन था। कहा जाता है कि चरपट नाथ राजा साहिल बर्मन के काफी करीबी माने जाते थे। वास्तव में चरपट नाथ ही थे जिन्होंने राजा साहिल बर्मन को 10 पुत्र और एक पुत्री होने का आशीर्वाद दिया था। राजा साहिल वर्मन ने उन्हें अपने गुरु के रूप में भी स्वीकार किया था। राजा साहिल बर्मन ने वर्ष 920 ई के आसपास राज्य की राजधानी को भरमौर से चम्बा स्थानांतरित किया था और माना जाता है यह निर्णय लेने में चरपट नाथ ने भी भाग लिया था। चम्बा शहर में लक्ष्मी नारायण समूह मंदिर का निर्माण राजा साहिल बर्मन ने चरपट नाथ के निर्देश में करवाया था।
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स्थानीय लोगों ने कहा कि चम्बा में आज चरपट नाथ मंदिर से एक शोभायात्रा निकाली और चौगान मैदान में खिन्नू जातर मेले लेकर आयोजन करवाया गया। वही पूर्व रणजी ट्रॉफी खिलाड़ी व हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व सचिव श्री चंद नैय्यर ने बताया कि चरपट नाथ महाराज का खेलों से काफी लगाव था और जब भी चम्बा शहर में कोई भी प्रतियोगिता होती है तो सबसे पहले भगवान चरपट नाथ का आगे शीश नवाजा जाता हैं और जीत के बाद भी मंदिर में जाया जाता है। उन्होंने कहा कि जब वह किसी खेल प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए बाहर के राज्यों में जाते थे तो वहां मैच से पहले चरपट नाथ महाराज के जय घोष होता था तो उसे पता चलता है कि यह चम्बा की टीम है। उन्होंने कहा कि चम्बा का हर खिलाड़ी चरपट नाथ का नाम लेकर ही अपने खेल को शुरू करता है।
वही इतिहासकार डॉ राजेश सहगल ने बताया कि जब दशमी शताब्दी में राजा साहिल बर्मन चम्बा आये तो वह और उनकी पुत्री यहां के दृश्यों की देख मंत्र मुक्त हो गया तो उन्होंने अपनी राजधानी बरहमपुर के स्थान पर यहां पर राजधानी बनाने का निश्चित किया। जब राजा साहिल वर्मन चम्बा आए तो उनके साथ सिद्ध योगी चरपट नाथ जी भी थे। जरा साहिल वर्मन चरपट नाथ के काफी करीब होने से उन्हें बहुत कुछ सीखने को भी और ज्ञान की प्राप्ति हुई। जब साहिल वर्मन चम्बा आये तो उन्होंने चरपट नाथ से पूछा कि अगर हम चम्बा को अपनी राजधानी बसा ले तो कैसा रहेगा। तो उनकी सलाह पर ही उन्होंने यह निर्णय लिया। इतिहासकार सहगल ने बताया कि भगवान लक्ष्मी नारायण मंदिर के निर्माण कार्य को भी चरपट नाथ के निर्देशों पर ही करवाया गया था।
वही चरपट नाथ मंदिर मंदिर के पुजारी ने बताया कि आज चम्बा में खिन्नू जातर मेले का आयोजन किया जा रहा है। यहां परंपरा राजा साहिल बर्मन के शासन कल से चली आ रही है। जब नो नाथ व 84 सिद्ध भरमोर आए थे तो राजा ने उनकी काफी आओ भगत की थी तो उनकी सेवा से प्रसन्न होकर उन्होंने खुश होकर राजा को 10 पुत्र और एक पुत्री का आशीर्वाद दिया था। और जब उन्हें 10 पुत्रों और एक पुत्री की प्राप्ति हुई तो राजा ने चरपट नाथ को अपना गुरु माना था और जब राजा साहिल बर्मन ने अपनी राजधानी भरमौर से चम्बा स्थानांतरण की तो उनके साथ चरपट नाथ महाराज भी आए थे। उन्होंने कहा कि साहिल बर्मन की पुत्री रानी चंपावती जब बड़ी हुई तो उनका स्वयंवर रचाया गया तो उस स्वयंवर में शामिल होने के लिए चरपट नाथ महाराज भी भरमौर से चम्बा पहुंचे। जब चम्बा शहर में उन्होंने प्रवेश किया तो उनके सर पर जटाये थी और साथ में बादल की छांव भी उनके मुंह पर थी। जब राजकुमारी ने जब उन्हें देखा तो उन्होंने कहा कि यह कोई सिद्ध पुरुष है और मैं इन्हीं से अपना विवाह करूंगी तो उन्होंने इस समय उन्हें अपना पति मान लिया। लेकिन जब शादी के रसमें शुरू होने लगी तो चरपट नाथ महाराज को इस बात का पता चला तो उन्होंने कहा कि यह बहुत बड़ा अनर्थ हो गया है उन्होंने कहा कि उन्हें माता पार्वती का श्राप है कि एक महिला उनके साथ लगेगी लेकिन भगवान शंकर ने उन्हें कहा था कि वह सांसारिक भोग नहीं करेंगे और समय उनका आधा विवाह ही हुआ तो चटपटानाथ महाराज ने रानी को कहां की आने वाले समय में जब उनके बच्चे होंगे तो वह रानी चंपावती के मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करेंगे और वहां पर एक दुल्हन का साज सिंगर का सामान लिया जाएगा और वहां पर रानी की मूर्ति को सजाया जाएगा तब उनके विवाह को पूर्ण माना जाएगा। तब से यह भी रसम यहां की जाती है। उन्होंने कहा कि जब बच्चे मैदान में खेलते थे तो उनके साथ चरपट नाथ भी बच्चों के रूप में आकर खेलते थे और जिस टीम में वह होते थे वह हमेशा टीम जीतती थी। जब बच्चों ने इसका राज जानने की कोशिश की तो उन्होंने बताया कि वह चरपट नाथ है बाद में उन्होंने राजा से कहा कि अब उनका भेद खुल चुका है और अब वह यहां से जा रहे हैं और हर साल इसी तरह चैत्र मास में चौगान मैदान में बच्चों के खेलों का आयोजन करवाया जाए तब से यह परंपरा निभाई जा रही है।
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