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चम्बा ! कला सृजन पाठशाला द्वारा तुलसीदास जयन्ती के उपलक्ष्य पर चम्बा के बिछड़े सृजेता हरि प्रसाद सुमन के जीवन वृत्त सहित साहित्यिक उपलब्धियों को केन्द्रित करते हुए कविता-पाठ तथा लेख-पाठ का आयोजन सत्र-40(5वां वर्ष) गूगल-मीट के माध्यम से आयोजित किया। इस सुअवसर पर कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए संस्था के फाउंडरअध्यक्ष शरत् शर्मा ने तुलसीदास तथा चम्बा के बिछड़े सृजेता हरि प्रसाद सुमन का लघु जीवन परिचय पढ़ कर उपस्थित सृजनकर्मियों को दोनों रचनाकारों की जीवन यात्रा से रूबरु करवाया। इसके साथ ही उनकी प्रकाशित रचनाओं की दृष्टि को भी सबके समक्ष रखा। इस खूबसूरत मौके पर कला सृजन पाठशाला के सदस्यों के साथ राजकीय महाविद्यालय चम्बा के छात्रों ने भी शिरकत की। दिल्ली, शिमला, तथा चम्बा के दूरदराज क्षेत्र-चुराह घाटी से भी रचनाकार और समीक्षक इस आयोजन में जुड़े जिससे आयोजन में विविधता बनी रही। रचना पाठ का आगाज़ महाराज सिंह की कविता एक शहर की आकर्षित करती पंक्तियों से हुआ- 'सांस भी तेरी जीवन भी तेरा है/ गुमान करूँ क्या यहाँ पे जो मेरा है।' इसके पश्चात केहर सिंह राजौरिया ने परिन्दे कविता पढ़ी। जिससे जीवन के विभिन्न पहलुओं की विसंगतियों पर रोशनी डाली गई। हेम राज ने 'हाँ तुम' कविता पढ़ी जिसके खूबसूरत बन्द : 'चाहे गरम-गरम सी रहना/ चाहे गरम-गरम ही कहना, हाँ तुम' ने श्रोताओं को आत्मविभोर किया। इसके बाद भूपेन्द्र सिंह जसरोटिया ने अपनी ऐंचली कविता गायन करके सुनाई- 'डला पर म्हणू मते आए हो/ सिबा मेरे नौहणी नुहाए हो। इसके साथ ही एक रैप कविता भी गा कर सुनाई- 'ओ हेलो, ओ हेलो'। भूपेन्द्र जसरोटिया के गायन पर श्रोता झूमने लगें। रेखा गक्खड़ 'रश्मि' ने हरि प्रसाद सुमन की प्रकाशित कृतियों के ऊपर समीक्षात्मक टिप्पणियां करके उनकी सृजन क्षमताओं को उजागर किया और यह भी उल्लेख किया कि उनकी रचनाओं में सामाजिक दायित्व भरा पड़ा है। इसके बाद रेखा गक्खड़ रश्मि ने 'दूर ब्याही बेटियाँ' की हृदय छूने वाली पंक्तियां : 'धुंधली हो जाएंगी मायके के आँगन से उसकी यादें" पढ़ कर श्रोताओं को भावुक कर दिया। डॉ. हरि शर्मा ने कविता की ताकत को व्याख्यायित करता समृद्ध लेख पढ़ा जिसमें मनुष्य की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, लोकाचार व लोकव्यवहार स्थिति को रेखांकित किया। उन्होंने तुलसीदास की कृतियों का विवेचन भी किया। रामचरित मानस को लोकव्यवहार तथा लोकाचार का विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक ग्रन्थ माना। नाकाबंदी की बगावत कविता संग्रह में संग्रहित कविता 'खान: एक हादसा' पर समीक्षा करते हुए उसे बड़े फलक की कविता बताया। इसके बाद शरत् शर्मा ने कुमार कृष्ण की कविता 'पत्तल भर ज़मीन' और 'चूल्हा' का पाठ करके उपस्थित श्रोताओं को अपनी रचनाओं की ओर झांकने के लिए प्रेरित किया। कला सृजन पाठशाला के संरक्षक बाल कृष्ण पराशर ने अपने सन्देश में कहा कि अगला आयोजन ऑफ लाइन ही किया जाएगा। वित्त सलाहकार धर्मवीर शर्मा ने कहा कि वित्त बढ़ाने के साथ-साथ कला सृजन पाठशाला में सृजनात्मक संभावनाओं को और आधिक सक्रिय करने की आवश्यकता है। इस अवसर पर कार्यक्रम का संचालन कला सृजन पाठशाला के सलाहकार भूपेन्द्र सिंह जसरोटिया ने त्वरित टिप्पणी के साथ किया। आयोजन में पढ़ी गई तमाम रचनाओं का विश्लेषण करते हुए सचिव रेखा गक्खड़ 'रश्मि' ने आयोजन सत्र-40 का मार्ग विराम की ओर प्रशस्त किया।
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