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चम्बा ! संस्कृत की हितैषी कही जाने वाली हिमाचल प्रदेश की भाजपा सरकार वर्तमान कार्यकाल के अपने अंतिम साल में है। आरम्भ के दिनों में ही उन्होंने संस्कृत को द्वितीय राजभाषा बनाने और संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना की बात कही थी। इनमें से द्वितीय राजभाषा संस्कृत को बनाने के लिए उन्होंने घोषणा कर दी और संस्कृत विश्वविद्यालय बनाने की योजना अभी तक अधर में है। सरकार इस विषय में क्या कर रही है संस्कृत के प्रेमी जानना चाहते हैं। द्वितीय राजभाषा घोषित करने में सरकार बहुत जल्दबाजी कर गई और अभी तक 4 वर्ष बीत जाने के बाद भी उस संदर्भ में सरकार की ओर से कोई भी पहल नहीं की गयी है जिस कारण यह भाषा अपने अस्तित्व को ढूंढ रही है। शास्त्री अध्यापक पिछले अनेक वर्षों से टीजीटी पदनाम के लिए निरंतर संघर्ष कर रहे हैं किंतु अभी तक सरकार लगातार आश्वासन पर आश्वासन गोष्ठियों पर गोष्ठियां करती जा रही है। आम जनता त्रस्त है निरंतर संस्कृति के संरक्षकों में इस बात के लिए रोष है कि सरकार बाहर मंचों पर घूम घूम कर कहती है कि वह संस्कृति प्रेमी, संस्कारों की प्रेमी है संस्कृत भाषा के उत्थान के लिए प्रयास कर रही है किंतु आम जनता इसके लाभ से लगातार वंचित है कुछ ही दिनों पहले हिमाचल प्रदेश के बहुत सारे संस्कृत शिक्षकों एवं संस्कृत प्रेमियों ने संस्कृत भारती नामक एक अखिल भारतीय संस्था के सहयोग से सरकार के सभी अधिकारियों को हजारों मेल भेजे है और पत्र भी भेज रहे हैं कि सरकार ने जो शास्त्री को टीजीटी पदनाम देने की संकल्पना दिखाई है वह कहां है। हिमाचल प्रदेश में संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना अभी तक क्यों नहीं हो पाई है? द्वितीय राजभाषा का क्रियान्वयन अभी तक क्यों नहीं हो पाया है? संस्कृत महाविद्यालयों में संस्कृतेतर शिक्षक ही प्रशासनिक रूप से कार्य कर रहे हैं जिन्हें संस्कृत का बोध नहीं होता। ऐसी अनेक समस्याएं जो संस्कृत भाषा के समक्ष हैं उन सब विषय पर संस्कृत का प्रेमी कहलाने वाली सरकार अभी तक कोई कार्य नहीं कर पाई है। इससे अब संदेह होने लगा है कि यह सरकार संस्कृत की हितैषी है अथवा नहीं है।
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