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चम्बा ! आंगनवाड़ी वर्कर यूनियन सम्बंधित सीटू जिला चम्बा ने सीटू जिला महासचिव सुदेश ठाकुर व अध्यक्ष नरेंद्र कुमार के नेतृत्व मे जिला प्रशासन के माध्यम से प्रधानमंत्री को अपनी मांगों संबंधी ज्ञापन प्रेषि किया। यूनियन ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दूसरे चरण के दौरान देश में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की स्थिति चिंताजनक है। जैसा कि आप जानते हैं कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर में भी सामुदायिक जागरूकता,सर्वेक्षण और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के कर्तव्यों को सौंपा गया है। वे आशा कार्यकर्ताओं और अन्य फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं के साथ-साथ कोविड -19 की पहचान और उपचार में वार्ड स्तर की समितियों का हिस्सा हैं। जिला प्रशासन द्वारा टीकाकरण कर्तव्यों के अलावा, उन्हें घर-घर जाकर कोविड सर्वेक्षण करना, लोगों को कोविड टैस्ट के लिए ले जाना, रोगियों को प्राथमिक चिकित्सा मार्गदर्शन देना,उनके तापमान और ऑक्सीजन के स्तर की निगरानी करना आदि काम सौंपे गए हैं। उन्हें छुट्टी भी नहीं दी जाती और दिन में 16 घंटे तक काम करना पड़ता है। यह बहुत ही खेदजनक है कि कई लोगों की जान बचाने के इस काम में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को कोई सुरक्षात्मक उपकरण नहीं दिए जाते हैं। यहां तक कि अधिकांश राज्यों में मास्क या सैनिटाइजर भी नहीं दिया जाता है। नतीजतन, सैकड़ों वर्कर्स व हैल्पर्स कोविड -19 से संक्रमित हो रहे हैं और कोविड के कारण होने वाली मौतों में चिंताजनक वृद्धि हुई है, खासकर महामारी की दूसरी लहर के दौरान। आंगनवाड़ी वर्कर्स के परिवार के कई सदस्य भी संक्रमित हो रहे हैं और कई की मौत हो चुकी है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की मृत्यु दर में अचानक वृद्धि होने से घबराहट की स्थिति पैदा हो गई है। ऐसे में जिस तनावपूर्ण काम को वे कर रहे हैं,यह उनके और उनके परिवार के सदस्यों के जीवन के लिए गंभीर तनाव और भय की स्थिति बन गई है। इस दौरान आंगनवाडी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की मौत के आंकड़ों में वृद्धि बेहद चिंताजनक है। उदाहरण के लिए, कर्नाटक में महामारी के कारण कुल 28 वर्कर्स की मृत्यु हुई, इनमें से 22 वर्कर्स की मृत्यु दूसरी लहर में हुई है। उत्तर प्रदेश में 74 आंगनवाड़ी वर्कर्स व हैल्पर्स कोविड की बलि चढ़ चुके हैं। अन्य राज्यों में भी यही स्थिति है। इनके लिए किसी भी तरह के जोखिम भत्ते, अस्पताल के खर्च का भुगतान या जीवन की हानि के लिए मुआवजे का कोई प्रावधान नहीं है। यह चैंकाने वाली बात है कि कई राज्यों में उन्हें फ्रंटलाइन वर्कर्स के रूप में अधिसूचित नहीं किया गया है और वे भारत सरकार द्वारा घोषित 50 लाख रुपये की जीवन बीमा योजना के कवरेज के हकदार भी नहीं हैं। इसलिए अधिकांश परिवारों को कोई मुआवजा नहीं मिला। एक और मुद्दा यह है कि कई लोग उचित उपचार के बिना, यहां तक कि उचित टैस्ट करवाकर संक्रमण का पता लगाए बिना ही मर रहे हैं, क्योंकि दूसरी लहर के अधिकांश मामले बिना लक्षण वाले हैं। चूंकि कोई पोस्टमॉर्टम नहीं किया जाता है, इसलिए इन मौतों को कोविड की मौत के रूप में भी मान्यता नहीं दी जाती है और कोई मुआवजा नहीं दिया जाता है। आंगनवाडी कार्यकर्ताओं व सहायिकाओं को कोविड ड्यूटी के अलावा आंगवबाडी केंद्र,पूरक पोषाहार वितरण आदि की जिम्मेदारी भी निभानी होती है। अब आंगनवाडी कार्यकर्ताओं को मोबाइल फोन उपलब्ध कराए बिना, मोबाइल डाटा के लिए भुगतान, नेटवर्क कवरेज सुनिश्चित किए बिना, मोबाइल ऐप पोषण ट्रैकर में ऑनलाइन रिपोर्ट करने के लिए कहा गया है। अब वे इस डर में है कि उनकी कोई गलती नहीं होने के बावजूद भी उनके वेतन मे कटौती होगी क्योंकि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के आदेश के अनुसार, ऐप पर डेटा नहीं डालने पर उनके वेतन में कटौती की जाएगी। जिन लाभार्थियों के पास कोई मोबाइल कनेक्शन नहीं है यह ऐप उन लाभार्थियों को सेवा देने से नकारता है। हमने इस मुद्दे पर पहले ही विस्तृत ज्ञापन सौंप दिया है। लाॅकडाउन की इस अवधि में भी विभाग द्वारा आंगनवाडी कार्यकर्ताओं को आंगनवाडी केन्द्रों, दूसरी जमीनों या लाभार्थियो के घरों में ‘पोषक उद्यान’/‘न्यूट्री गार्डन’ बनाने के लिए विवश किया जाता है। अधिकांश आंगनवाड़ी केंद्रों के पास जमीन नहीं है और आईसीडीएस के अधिकांश लाभार्थी भूमिहीन श्रमिक परिवार हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के लिए अपने मूल कर्तव्यों को निभाने के बाद, सब्जी की खेती करना असंभव है। इन मुद्दों के अलावा, जैसा कि हम आपके संज्ञान में ला चुके हैं, अधिकांश राज्य नई शिक्षा नीति के नाम पर आंगनबाडी केंद्रों को मर्ज कर रहे हैं और प्राथमिक विद्यालयों और स्कूली शिक्षा प्रणाली को आंगनवाड़ी केंद्रों से जोड़ना शुरू कर दिया है। यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के विशिष्ट दिशानिर्देशों के बिना किया जा रहा है। इससे आंगनवाड़ी केंद्रों की बुनियादी सेवाएं प्रभावित हो रही हैं। यह ईसीसीई की मूल अवधारणा के खिलाफ है। अब, हमारे देश में लॉकडाउन,आर्थिक मंदी और इसके परिणामस्वरूप नौकरी और आय के भारी नुकसान ने गंभीर कुपोषण और भूख की स्थिति पैदा कर दी है। आईसीडीएस की उपलब्धियों को बनाए रखने के लिए लाभार्थियों को पर्याप्त मात्रा में पूरक पोषण की पूर्ति सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है,और आईसीडीएस की उपलब्धियों को बनाए रखने के लिए नकद हस्तांतरण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। हम,आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली ट्रेड यूनियन फेडरेशन- अखिल भारतीय आंगनवाड़ी सेविका एवं सहायिका फैडरेशन (आईफा) की ओर से लगातार इन मांगों को आपकी सरकार के सामने उठा रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उपरोक्त में से किसी भी मुद्दे का समाधान नहीं किया गया और सरकार द्वारा श्रमिकों और लाभार्थियों के हितों की रक्षा के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। इस स्थिति में, यूनियन मांग करती है कि कोविड-19 संबंधित डयूटी में लगी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करें। सभी को पर्याप्त पीपीई किट, मास्क, दस्ताने, साबुन और सैनिटाइजर उपलब्ध करवाए जाएं। सुनिश्चित करें कि सभी श्रमिकों का टीकाकरण हो। डयूटी पर तैनात सभी फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए कोविड की रैंडम जांच होनी चाहिए। फ्रंटलाइन वर्कर्स का मुफ्त इलाज किया जाए। सरकार 50 लाख रुपये के जीवन बीमा कवरेज में कोविड डयूटी पर तैनात सभी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को शामिल करे। कोविड डयूटी के दौरान (प्रमाणपत्रों की उपलब्धता न होने पर भी) मृत्यु होने पर सभी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के परिवारों को तत्काल 50 लाख रुपये का भुगतान किया जाए। संक्रमण होने पर 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए। कर्मियों को 10000 रुपये प्रति माह जोखिम भत्ता और अतिरिक्त काम के लिए अतिरिक्त वेतन सुनिश्चित किया जाए। सभी लाभार्थियों को अगले छः माह तक पूरक पोषाहार (खाद्यान्न, दालें, तेल, गुड़, सूखे मेवे, अंडे आदि) पर्याप्त मात्रा में दिया जाना चाहिए। क्रियान्वयन के लिए पर्याप्त बजट आबंटित किया जाना चाहिए। न्यूट्री गार्डन की जिम्मेदारी आंगनवाडी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की नहीं होनी चाहिए। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की सभी लंबित वेतन राशियां और सभी भत्ते तुरंत जारी किए जाने चाहिए। कई राज्यों में 2 से 6 महीने का वेतन आदि लंबित है। वेतन का नियमित भुगतान सुनिश्चित करें। आंगनवाडी कार्यकर्ताओं एवं सहायिकाओं के वेतन तथा लाभार्थियों के पोषण के लिए आवंटन को ‘पोषण ट्रैकर’ ऐप से नहीं जोड़ा जाए। वेतन तुरंत जारी किया जाए। आईसीडीएस के डिजिटलीकरण से पहले पर्याप्त बुनियादी ढांचा सुनिश्चित करें। आंगनवाड़ी केंद्रों का विलय/मर्ज करना या आंगनवाड़ियों का स्कूलों में विलय नहीं किया जाए। आईसीडीएस को मजबूत किया जाए और ईसीसीई नीति को लागू करें। आईसीडीएस को स्थायी बनाएं। आंगनवाडी कार्यकर्ताओं को वर्कर के रूप में नियमित करें। उन्हें 45वें आईएलसी की सिफारिश के अनुसार 21000 रुपये प्रति माह न्यूनतम वेतन और पेंशन दें। यूनियन इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करने और आवश्यक आदेश जारी करने का आग्रह करती है ।
चम्बा ! आंगनवाड़ी वर्कर यूनियन सम्बंधित सीटू जिला चम्बा ने सीटू जिला महासचिव सुदेश ठाकुर व अध्यक्ष नरेंद्र कुमार के नेतृत्व मे जिला प्रशासन के माध्यम से प्रधानमंत्री को अपनी मांगों संबंधी ज्ञापन प्रेषि किया। यूनियन ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दूसरे चरण के दौरान देश में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की स्थिति चिंताजनक है।
जैसा कि आप जानते हैं कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर में भी सामुदायिक जागरूकता,सर्वेक्षण और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के कर्तव्यों को सौंपा गया है। वे आशा कार्यकर्ताओं और अन्य फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं के साथ-साथ कोविड -19 की पहचान और उपचार में वार्ड स्तर की समितियों का हिस्सा हैं।
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जिला प्रशासन द्वारा टीकाकरण कर्तव्यों के अलावा, उन्हें घर-घर जाकर कोविड सर्वेक्षण करना, लोगों को कोविड टैस्ट के लिए ले जाना, रोगियों को प्राथमिक चिकित्सा मार्गदर्शन देना,उनके तापमान और ऑक्सीजन के स्तर की निगरानी करना आदि काम सौंपे गए हैं। उन्हें छुट्टी भी नहीं दी जाती और दिन में 16 घंटे तक काम करना पड़ता है।
यह बहुत ही खेदजनक है कि कई लोगों की जान बचाने के इस काम में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को कोई सुरक्षात्मक उपकरण नहीं दिए जाते हैं। यहां तक कि अधिकांश राज्यों में मास्क या सैनिटाइजर भी नहीं दिया जाता है। नतीजतन, सैकड़ों वर्कर्स व हैल्पर्स कोविड -19 से संक्रमित हो रहे हैं और कोविड के कारण होने वाली मौतों में चिंताजनक वृद्धि हुई है, खासकर महामारी की दूसरी लहर के दौरान।
आंगनवाड़ी वर्कर्स के परिवार के कई सदस्य भी संक्रमित हो रहे हैं और कई की मौत हो चुकी है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की मृत्यु दर में अचानक वृद्धि होने से घबराहट की स्थिति पैदा हो गई है। ऐसे में जिस तनावपूर्ण काम को वे कर रहे हैं,यह उनके और उनके परिवार के सदस्यों के जीवन के लिए गंभीर तनाव और भय की स्थिति बन गई है।
इस दौरान आंगनवाडी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की मौत के आंकड़ों में वृद्धि बेहद चिंताजनक है। उदाहरण के लिए, कर्नाटक में महामारी के कारण कुल 28 वर्कर्स की मृत्यु हुई, इनमें से 22 वर्कर्स की मृत्यु दूसरी लहर में हुई है। उत्तर प्रदेश में 74 आंगनवाड़ी वर्कर्स व हैल्पर्स कोविड की बलि चढ़ चुके हैं। अन्य राज्यों में भी यही स्थिति है।
इनके लिए किसी भी तरह के जोखिम भत्ते, अस्पताल के खर्च का भुगतान या जीवन की हानि के लिए मुआवजे का कोई प्रावधान नहीं है। यह चैंकाने वाली बात है कि कई राज्यों में उन्हें फ्रंटलाइन वर्कर्स के रूप में अधिसूचित नहीं किया गया है और वे भारत सरकार द्वारा घोषित 50 लाख रुपये की जीवन बीमा योजना के कवरेज के हकदार भी नहीं हैं।
इसलिए अधिकांश परिवारों को कोई मुआवजा नहीं मिला। एक और मुद्दा यह है कि कई लोग उचित उपचार के बिना, यहां तक कि उचित टैस्ट करवाकर संक्रमण का पता लगाए बिना ही मर रहे हैं, क्योंकि दूसरी लहर के अधिकांश मामले बिना लक्षण वाले हैं। चूंकि कोई पोस्टमॉर्टम नहीं किया जाता है, इसलिए इन मौतों को कोविड की मौत के रूप में भी मान्यता नहीं दी जाती है और कोई मुआवजा नहीं दिया जाता है।
आंगनवाडी कार्यकर्ताओं व सहायिकाओं को कोविड ड्यूटी के अलावा आंगवबाडी केंद्र,पूरक पोषाहार वितरण आदि की जिम्मेदारी भी निभानी होती है। अब आंगनवाडी कार्यकर्ताओं को मोबाइल फोन उपलब्ध कराए बिना, मोबाइल डाटा के लिए भुगतान, नेटवर्क कवरेज सुनिश्चित किए बिना, मोबाइल ऐप पोषण ट्रैकर में ऑनलाइन रिपोर्ट करने के लिए कहा गया है।
अब वे इस डर में है कि उनकी कोई गलती नहीं होने के बावजूद भी उनके वेतन मे कटौती होगी क्योंकि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के आदेश के अनुसार, ऐप पर डेटा नहीं डालने पर उनके वेतन में कटौती की जाएगी। जिन लाभार्थियों के पास कोई मोबाइल कनेक्शन नहीं है यह ऐप उन लाभार्थियों को सेवा देने से नकारता है। हमने इस मुद्दे पर पहले ही विस्तृत ज्ञापन सौंप दिया है।
लाॅकडाउन की इस अवधि में भी विभाग द्वारा आंगनवाडी कार्यकर्ताओं को आंगनवाडी केन्द्रों, दूसरी जमीनों या लाभार्थियो के घरों में ‘पोषक उद्यान’/‘न्यूट्री गार्डन’ बनाने के लिए विवश किया जाता है। अधिकांश आंगनवाड़ी केंद्रों के पास जमीन नहीं है और आईसीडीएस के अधिकांश लाभार्थी भूमिहीन श्रमिक परिवार हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के लिए अपने मूल कर्तव्यों को निभाने के बाद, सब्जी की खेती करना असंभव है।
इन मुद्दों के अलावा, जैसा कि हम आपके संज्ञान में ला चुके हैं, अधिकांश राज्य नई शिक्षा नीति के नाम पर आंगनबाडी केंद्रों को मर्ज कर रहे हैं और प्राथमिक विद्यालयों और स्कूली शिक्षा प्रणाली को आंगनवाड़ी केंद्रों से जोड़ना शुरू कर दिया है। यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के विशिष्ट दिशानिर्देशों के बिना किया जा रहा है। इससे आंगनवाड़ी केंद्रों की बुनियादी सेवाएं प्रभावित हो रही हैं। यह ईसीसीई की मूल अवधारणा के खिलाफ है।
अब, हमारे देश में लॉकडाउन,आर्थिक मंदी और इसके परिणामस्वरूप नौकरी और आय के भारी नुकसान ने गंभीर कुपोषण और भूख की स्थिति पैदा कर दी है। आईसीडीएस की उपलब्धियों को बनाए रखने के लिए लाभार्थियों को पर्याप्त मात्रा में पूरक पोषण की पूर्ति सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है,और आईसीडीएस की उपलब्धियों को बनाए रखने के लिए नकद हस्तांतरण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
हम,आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली ट्रेड यूनियन फेडरेशन- अखिल भारतीय आंगनवाड़ी सेविका एवं सहायिका फैडरेशन (आईफा) की ओर से लगातार इन मांगों को आपकी सरकार के सामने उठा रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उपरोक्त में से किसी भी मुद्दे का समाधान नहीं किया गया और सरकार द्वारा श्रमिकों और लाभार्थियों के हितों की रक्षा के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
इस स्थिति में, यूनियन मांग करती है कि कोविड-19 संबंधित डयूटी में लगी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करें। सभी को पर्याप्त पीपीई किट, मास्क, दस्ताने, साबुन और सैनिटाइजर उपलब्ध करवाए जाएं। सुनिश्चित करें कि सभी श्रमिकों का टीकाकरण हो। डयूटी पर तैनात सभी फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए कोविड की रैंडम जांच होनी चाहिए। फ्रंटलाइन वर्कर्स का मुफ्त इलाज किया जाए।
सरकार 50 लाख रुपये के जीवन बीमा कवरेज में कोविड डयूटी पर तैनात सभी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को शामिल करे। कोविड डयूटी के दौरान (प्रमाणपत्रों की उपलब्धता न होने पर भी) मृत्यु होने पर सभी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के परिवारों को तत्काल 50 लाख रुपये का भुगतान किया जाए। संक्रमण होने पर 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए। कर्मियों को 10000 रुपये प्रति माह जोखिम भत्ता और अतिरिक्त काम के लिए अतिरिक्त वेतन सुनिश्चित किया जाए।
सभी लाभार्थियों को अगले छः माह तक पूरक पोषाहार (खाद्यान्न, दालें, तेल, गुड़, सूखे मेवे, अंडे आदि) पर्याप्त मात्रा में दिया जाना चाहिए। क्रियान्वयन के लिए पर्याप्त बजट आबंटित किया जाना चाहिए। न्यूट्री गार्डन की जिम्मेदारी आंगनवाडी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की नहीं होनी चाहिए।
आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की सभी लंबित वेतन राशियां और सभी भत्ते तुरंत जारी किए जाने चाहिए। कई राज्यों में 2 से 6 महीने का वेतन आदि लंबित है। वेतन का नियमित भुगतान सुनिश्चित करें।
आंगनवाडी कार्यकर्ताओं एवं सहायिकाओं के वेतन तथा लाभार्थियों के पोषण के लिए आवंटन को ‘पोषण ट्रैकर’ ऐप से नहीं जोड़ा जाए। वेतन तुरंत जारी किया जाए। आईसीडीएस के डिजिटलीकरण से पहले पर्याप्त बुनियादी ढांचा सुनिश्चित करें।
आंगनवाड़ी केंद्रों का विलय/मर्ज करना या आंगनवाड़ियों का स्कूलों में विलय नहीं किया जाए। आईसीडीएस को मजबूत किया जाए और ईसीसीई नीति को लागू करें।
आईसीडीएस को स्थायी बनाएं। आंगनवाडी कार्यकर्ताओं को वर्कर के रूप में नियमित करें। उन्हें 45वें आईएलसी की सिफारिश के अनुसार 21000 रुपये प्रति माह न्यूनतम वेतन और पेंशन दें। यूनियन इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करने और आवश्यक आदेश जारी करने का आग्रह करती है ।
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