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चम्बा , 15 जनवरी [ शिवानी ] ! अमृतसर का श्री राम तीर्थ मंदिर जहां वाल्मीकि ने लिखी थी रामायण वाल्मीकि द्वारा 24 हजार छंदों वाली रामायण जिस स्थान पर लिखी गई, वह अमृतसर स्थित क्षेत्र है, जहां वर्तमान में श्री राम तीर्थ मंदिर बना हुआ है। स्थापित की गई है वाल्मीकि की 8 फीट ऊंची गोल्ड प्लेटेड प्रतिमा। श्रीराम तीर्थ मंदिर भगवान राम को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि यहां महर्षि वाल्मीकि का आश्रम और एक कुटी थी, इसलिए इसे वाल्मीकि तीर्थ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां वाल्मीकि की 8 फीट ऊंची गोल्ड प्लेटेड प्रतिमा स्थापित की गई है। मान्यता है कि भगवान राम द्वारा माता सीता का परित्याग करने के पश्चात वाल्मीकि जी ने सीताजी को इसी स्थान पर अपने आश्रम में आश्रय दिया था। यहीं पर लव और कुश का जन्म हुआ था। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना भी यहीं की थी। इसी आश्रम में उन्होंने लव और कुश को शस्त्र चलाने की शिक्षा भी दी थी। जब रामजी ने अश्वमेध यज्ञ के लिए घोड़ा छोड़ा था, तब इसी स्थान पर लव-कुश ने उस घोड़े को पकड़ा था और रामजी से युद्ध भी किया था। इस मंदिर के समीप ही एक सरोवर है, जिसे बहुत पावन माना जाता है। मान्यता है कि इस सरोवर को हनुमानजी ने खोदकर बनाया था। इस सरोवर की परिधि 3 किमी है। सरोवर में स्नान करने के पश्चात भक्त इस सरोवर की परिक्रमा करते हैं। यहां प्राचीन बावड़ी भी है, माना जाता है कि सीता माता यहां स्नान किया करती थीं। इस बावड़ी में स्नान कर महिलाएं संतान प्राप्ति की प्रार्थना करती हैं। मंदिर के समीप ही प्राचीन श्री रामचंद्र मंदिर, जगन्नाथपुरी मंदिर, राधा-कृष्ण मंदिर, राम, लक्ष्मण, सीता मंदिर, महर्षि वाल्मीकि का धूना, सीताजी की कुटिया भी मौजूद है।
चम्बा , 15 जनवरी [ शिवानी ] ! अमृतसर का श्री राम तीर्थ मंदिर जहां वाल्मीकि ने लिखी थी रामायण वाल्मीकि द्वारा 24 हजार छंदों वाली रामायण जिस स्थान पर लिखी गई, वह अमृतसर स्थित क्षेत्र है, जहां वर्तमान में श्री राम तीर्थ मंदिर बना हुआ है। स्थापित की गई है वाल्मीकि की 8 फीट ऊंची गोल्ड प्लेटेड प्रतिमा।
श्रीराम तीर्थ मंदिर भगवान राम को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि यहां महर्षि वाल्मीकि का आश्रम और एक कुटी थी, इसलिए इसे वाल्मीकि तीर्थ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां वाल्मीकि की 8 फीट ऊंची गोल्ड प्लेटेड प्रतिमा स्थापित की गई है।
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मान्यता है कि भगवान राम द्वारा माता सीता का परित्याग करने के पश्चात वाल्मीकि जी ने सीताजी को इसी स्थान पर अपने आश्रम में आश्रय दिया था। यहीं पर लव और कुश का जन्म हुआ था। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना भी यहीं की थी। इसी आश्रम में उन्होंने लव और कुश को शस्त्र चलाने की शिक्षा भी दी थी।
जब रामजी ने अश्वमेध यज्ञ के लिए घोड़ा छोड़ा था, तब इसी स्थान पर लव-कुश ने उस घोड़े को पकड़ा था और रामजी से युद्ध भी किया था। इस मंदिर के समीप ही एक सरोवर है, जिसे बहुत पावन माना जाता है। मान्यता है कि इस सरोवर को हनुमानजी ने खोदकर बनाया था। इस सरोवर की परिधि 3 किमी है।
सरोवर में स्नान करने के पश्चात भक्त इस सरोवर की परिक्रमा करते हैं। यहां प्राचीन बावड़ी भी है, माना जाता है कि सीता माता यहां स्नान किया करती थीं। इस बावड़ी में स्नान कर महिलाएं संतान प्राप्ति की प्रार्थना करती हैं।
मंदिर के समीप ही प्राचीन श्री रामचंद्र मंदिर, जगन्नाथपुरी मंदिर, राधा-कृष्ण मंदिर, राम, लक्ष्मण, सीता मंदिर, महर्षि वाल्मीकि का धूना, सीताजी की कुटिया भी मौजूद है।
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