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चम्बा, 28 जुलाई, [ शिवानी ] ! भगवान रघुवीर और लक्ष्मी नारायण को मिर्जा परिवार द्वारा बनाई गई जरी और गोटे की बनी मिंजर चढ़ाने के साथ ही चम्बा का ऐतिहासिक मिंजर मेला की शुरुआत हो गई । 28 जुलाई यानी आज से चार अगस्त तक चलने वाले इस मिंजर मेले की शोभा बढ़ाने और मुख्यअतिथि के तौर पर हिमाचल प्रदेश के महामहिम राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला ने शिरकत की। इस मौके पर विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया के अलावा चम्बा सदर के विधायक नीरज नय्यर भी इस मेले में शामिल हुए हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी ऐतिहासिक मिंजर मेले का जुलूस नगर पालिका से होता हुआ सबसे पहले प्राचीन लक्ष्मी नारायण मंदिर से होता हुआ रघुबीर मंदिर,और उसके बाद श्री हरिराय मंदिर में पहुंचा जहां पर महामहिम राज्यपाल व उनके साथ आए लोगों ने मिंजर को भगवान के चरणों मे चढ़ाकर मिंजर की रस्म को अदा किया। इसी के साथ ही राज्य पाल द्वारा मिंजर के ऐतिहासिक चिन्ह मिंजर ध्वज को फहराकर इसका शुभारंभ किया,वही राज्यपाल ने अंतरराष्ट्रीय मिंजर मेले के उपलक्ष पर ऐतिहासिक चौगान मैदान में लगाई गई विभिन्न प्रदर्शनों का रिबन काटकर उद्घाटन किया। अनेकता में एकता का प्रतीक है चम्बा का मिंजर मेला। कहने को तो भाई-बहन के अटूट प्रेम की निशानी भी है मिंजर मेला, लेकिन मुस्लिम परिवार द्वारा सुच्चे गोटे से आकर्षक मिंजर तैयार कर भगवान लक्ष्मीनाथ और रघुवीर भगवान को चढ़ाई जाती है। कुल मिला कर मिंजर मेला भाई-बहन के प्यार के साथ-साथ आपसी प्रेम भाव को भी दर्शाता है। श्रावण में उत्तरी भारत में नदी के किनारे अथवा झूलों की बहार में मेले लगते हैं। हिमाचल राज्य के पूर्वोत्तर और हिमालय की पश्चिमोत्तर सीमावर्ती भीतरी तराई में स्थित रावी घाटी प्राकृतिक सौंदर्य से रसा-बसा स्थान है और यहां कबिलयाई मूल का चम्ब्याली समुदाय निवास करता है। इस क्षेत्र में आज भी प्रागैतिहासिक कालीन सांस्कृतिक एवं सामाजिक मान्यताओं के दर्शन होते हैं। श्रावण में वर्षा ऋतु में चम्बा का मिंजर मेला अति महत्वपूर्ण है। यह चम्बा की सांस्कृतिक विरासत में शामिल है। सदियों से मनाये जाने वाला मिंजर मेला यहां के जनमानस में रच-बस गया है। रावी नदी के वैभव से जुटने वाला उत्सव श्रावण के एक रविवार को यह मेला आरंभ होता है, और अगले रविवार को मिंजर का रावी में विसर्जन के साथ ही ये मेला समाप्त हो जाता है। यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था कुछ विद्वानों का मत है कि मिंजर का कोई धार्मिक स्वरूप नहीं है, बल्कि मिंजर वरुण देवता को अच्छी वर्षा एवं अच्छी फसल के लिए और रावी अथवा इरावती नदी के उफान को शांत करने के लिए ही नदी में मक्की की मिंजर का निर्माण कर प्रवाहित करते हैं। चम्बा के अंतर्राष्ट्रीय मिंजर मेले ने जहां यहां के पारम्परिक रीति-रिवाजों को संजोए रखा है, वहीं यहां की संस्कृति से भी अवगत करवाता है। अंतरराष्ट्रीय मिंजर मेला 28 जुलाई से 04 अगस्त मनाया जाएगा और 04 अगस्त को शाम के समय रावी नदी में मिंजर विसर्जन के बाद खत्म हो जाएगा । इसमें मुख्य तोर पर प्रदेश के मुख्यमंत्री शामिल होते हैं। मिंजर मेले के दौरान आठ दिन तक रात्रि के समय सांस्कृतिक सन्ध्याओं का भी आयोजन किया जाता है। दिन के समय चौगान मैदान मै खेल कूद प्रतियोगिताओ को भी करवाया जाता है। मिंजर मेले में अलग अलग विभागों द्वारा प्रदर्शनियां भी लगाई जाती है। पूरा साल लोगो को इस मेले का बड़ी ही बेसब्री से इंतजार रहता है। वहीं साल भर इस मेले के इंतजार में बैठे लोगों में मेले को लेकर काफी उत्साह दिखा। स्थानीय लोगो के अनुसार जब चम्बा के राजा पड़ोसी राज्य पर विजय हासिल कर चम्बा लौटे थे तो चंबा के लोगों ने उन्हें मक्की पर आने वाली मिंजर भेंट की थी जिसके बाद से इस मेले का शुभारम्भ हुआ था। यह परम्परा आज तक चम्बा जिला में कायम है तथा मिंजर मेले के दौरान हर धर्म, जाति वर्ग के लोग आते हैं तथा एक दूसरे के साथ मिलकर मेले की खुशियां मनाते है। अंतर्राष्ट्रीय मिंजर मेले की विशेषता यहां ये भी है कि लक्ष्मीनारायण मंदिर तथा रघुनाथ जी के मंदिर में चढ़ाई जाने वाली पहली मिंजर को मुस्लिम परिवार द्वारा ही तैयार किया जाता है। कश्मीरी मोहल्ला निवासी ऐजाज मिर्जा ने बताया कि उनके पूर्वज मिर्जा शफी बेग जरी(गोटे) के कुशल कारीगर थे। मिर्जा शफी बेग ने अपनी सूझबूझ का परिचय देते हुए धान की असली मिंजर का प्रारूप के रूप में जरी और सोने की तारों से आकर्षक मिंजर तैयार कर राजा पृथ्वी सिंह को भेंट की थी। जिसे देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुए। उनके द्वारा बनाई गई सुच्चे गोटे की पहली जरी मिंजर भगवान लक्ष्मीनाथ और रघुवीर भगवान को चढ़ाई गई। तब से लेकर आज तक यह पर परम्परा कायम हैं कि इस परिवार के द्वारा बनाई गई सुच्चे गोटे की पहली जरी मिंजर भगवान रघुवीर और लक्ष्मीनारायण को चढ़ाई जाती है।। इस उत्सव का विशेष पहलू सामुदायिक सौहार्द की भागेदारी है। वर्तमान परिपेक्षय में सांझी सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का यह अनूठा उदाहरण है। राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने प्रदेशवासियों को अंतर्राष्ट्रीय मिंजर महोत्सव की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि चम्बा जिला अपनी प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध संस्कृति के लिए विश्व प्रसिद्ध है। उन्होंने कहा कि प्रदेश के हर गांव और शहर की एक भिन्न सांस्कृतिक पहचान है, जो अन्यत्र नहीं मिलती। उन्होंने कहा कि मेलों के माध्यम से संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करके आपसी भाईचारे की भावना को बढ़ावा दिया जाता है। उन्होंने कहा कि मिंजर महोत्सव का प्राचीन परंपराओं, मान्यताओं और आस्थाओं से गहरा संबंध है।
चम्बा, 28 जुलाई, [ शिवानी ] ! भगवान रघुवीर और लक्ष्मी नारायण को मिर्जा परिवार द्वारा बनाई गई जरी और गोटे की बनी मिंजर चढ़ाने के साथ ही चम्बा का ऐतिहासिक मिंजर मेला की शुरुआत हो गई । 28 जुलाई यानी आज से चार अगस्त तक चलने वाले इस मिंजर मेले की शोभा बढ़ाने और मुख्यअतिथि के तौर पर हिमाचल प्रदेश के महामहिम राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला ने शिरकत की।
इस मौके पर विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया के अलावा चम्बा सदर के विधायक नीरज नय्यर भी इस मेले में शामिल हुए हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी ऐतिहासिक मिंजर मेले का जुलूस नगर पालिका से होता हुआ सबसे पहले प्राचीन लक्ष्मी नारायण मंदिर से होता हुआ रघुबीर मंदिर,और उसके बाद श्री हरिराय मंदिर में पहुंचा जहां पर महामहिम राज्यपाल व उनके साथ आए लोगों ने मिंजर को भगवान के चरणों मे चढ़ाकर मिंजर की रस्म को अदा किया।
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इसी के साथ ही राज्य पाल द्वारा मिंजर के ऐतिहासिक चिन्ह मिंजर ध्वज को फहराकर इसका शुभारंभ किया,वही राज्यपाल ने अंतरराष्ट्रीय मिंजर मेले के उपलक्ष पर ऐतिहासिक चौगान मैदान में लगाई गई विभिन्न प्रदर्शनों का रिबन काटकर उद्घाटन किया।
अनेकता में एकता का प्रतीक है चम्बा का मिंजर मेला। कहने को तो भाई-बहन के अटूट प्रेम की निशानी भी है मिंजर मेला, लेकिन मुस्लिम परिवार द्वारा सुच्चे गोटे से आकर्षक मिंजर तैयार कर भगवान लक्ष्मीनाथ और रघुवीर भगवान को चढ़ाई जाती है। कुल मिला कर मिंजर मेला भाई-बहन के प्यार के साथ-साथ आपसी प्रेम भाव को भी दर्शाता है।
श्रावण में उत्तरी भारत में नदी के किनारे अथवा झूलों की बहार में मेले लगते हैं। हिमाचल राज्य के पूर्वोत्तर और हिमालय की पश्चिमोत्तर सीमावर्ती भीतरी तराई में स्थित रावी घाटी प्राकृतिक सौंदर्य से रसा-बसा स्थान है और यहां कबिलयाई मूल का चम्ब्याली समुदाय निवास करता है। इस क्षेत्र में आज भी प्रागैतिहासिक कालीन सांस्कृतिक एवं सामाजिक मान्यताओं के दर्शन होते हैं।
श्रावण में वर्षा ऋतु में चम्बा का मिंजर मेला अति महत्वपूर्ण है। यह चम्बा की सांस्कृतिक विरासत में शामिल है। सदियों से मनाये जाने वाला मिंजर मेला यहां के जनमानस में रच-बस गया है। रावी नदी के वैभव से जुटने वाला उत्सव श्रावण के एक रविवार को यह मेला आरंभ होता है, और अगले रविवार को मिंजर का रावी में विसर्जन के साथ ही ये मेला समाप्त हो जाता है।
यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था कुछ विद्वानों का मत है कि मिंजर का कोई धार्मिक स्वरूप नहीं है, बल्कि मिंजर वरुण देवता को अच्छी वर्षा एवं अच्छी फसल के लिए और रावी अथवा इरावती नदी के उफान को शांत करने के लिए ही नदी में मक्की की मिंजर का निर्माण कर प्रवाहित करते हैं। चम्बा के अंतर्राष्ट्रीय मिंजर मेले ने जहां यहां के पारम्परिक रीति-रिवाजों को संजोए रखा है, वहीं यहां की संस्कृति से भी अवगत करवाता है।
अंतरराष्ट्रीय मिंजर मेला 28 जुलाई से 04 अगस्त मनाया जाएगा और 04 अगस्त को शाम के समय रावी नदी में मिंजर विसर्जन के बाद खत्म हो जाएगा । इसमें मुख्य तोर पर प्रदेश के मुख्यमंत्री शामिल होते हैं।
मिंजर मेले के दौरान आठ दिन तक रात्रि के समय सांस्कृतिक सन्ध्याओं का भी आयोजन किया जाता है। दिन के समय चौगान मैदान मै खेल कूद प्रतियोगिताओ को भी करवाया जाता है। मिंजर मेले में अलग अलग विभागों द्वारा प्रदर्शनियां भी लगाई जाती है। पूरा साल लोगो को इस मेले का बड़ी ही बेसब्री से इंतजार रहता है।
वहीं साल भर इस मेले के इंतजार में बैठे लोगों में मेले को लेकर काफी उत्साह दिखा। स्थानीय लोगो के अनुसार जब चम्बा के राजा पड़ोसी राज्य पर विजय हासिल कर चम्बा लौटे थे तो चंबा के लोगों ने उन्हें मक्की पर आने वाली मिंजर भेंट की थी जिसके बाद से इस मेले का शुभारम्भ हुआ था। यह परम्परा आज तक चम्बा जिला में कायम है तथा मिंजर मेले के दौरान हर धर्म, जाति वर्ग के लोग आते हैं तथा एक दूसरे के साथ मिलकर मेले की खुशियां मनाते है।
अंतर्राष्ट्रीय मिंजर मेले की विशेषता यहां ये भी है कि लक्ष्मीनारायण मंदिर तथा रघुनाथ जी के मंदिर में चढ़ाई जाने वाली पहली मिंजर को मुस्लिम परिवार द्वारा ही तैयार किया जाता है। कश्मीरी मोहल्ला निवासी ऐजाज मिर्जा ने बताया कि उनके पूर्वज मिर्जा शफी बेग जरी(गोटे) के कुशल कारीगर थे। मिर्जा शफी बेग ने अपनी सूझबूझ का परिचय देते हुए धान की असली मिंजर का प्रारूप के रूप में जरी और सोने की तारों से आकर्षक मिंजर तैयार कर राजा पृथ्वी सिंह को भेंट की थी। जिसे देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुए। उनके द्वारा बनाई गई सुच्चे गोटे की पहली जरी मिंजर भगवान लक्ष्मीनाथ और रघुवीर भगवान को चढ़ाई गई।
तब से लेकर आज तक यह पर परम्परा कायम हैं कि इस परिवार के द्वारा बनाई गई सुच्चे गोटे की पहली जरी मिंजर भगवान रघुवीर और लक्ष्मीनारायण को चढ़ाई जाती है।। इस उत्सव का विशेष पहलू सामुदायिक सौहार्द की भागेदारी है। वर्तमान परिपेक्षय में सांझी सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का यह अनूठा उदाहरण है।
राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने प्रदेशवासियों को अंतर्राष्ट्रीय मिंजर महोत्सव की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि चम्बा जिला अपनी प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध संस्कृति के लिए विश्व प्रसिद्ध है। उन्होंने कहा कि प्रदेश के हर गांव और शहर की एक भिन्न सांस्कृतिक पहचान है, जो अन्यत्र नहीं मिलती। उन्होंने कहा कि मेलों के माध्यम से संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करके आपसी भाईचारे की भावना को बढ़ावा दिया जाता है। उन्होंने कहा कि मिंजर महोत्सव का प्राचीन परंपराओं, मान्यताओं और आस्थाओं से गहरा संबंध है।
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