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सिरमौर , 28 अगस्त ! गुग्गा नवमी का पर्व गिरिपार क्षेत्र में धूमधाम से मनाया गया। सदियों - पुरानी परंपराओं को बरकरार रखते हुए गुग्गा भक्तों (गुगावल) ने धार्मिक आस्था दिखाते हुए खुद को - लोहे की जंजीर से पीटा। इस दौरान सैकड़ों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। क्षेत्र के सैकड़ों गांवों में सोमवार व मंगलवार को गुगावल अथवा गुग्गा नवमी उत्सव पारंपरिक अंदाज में मनाया गया। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की रात माड़ी कहलाने वाले एक मंजिला गुग्गा मंदिरों में पारंपरिक भक्ति गीतों के साथ शुरू हुआ उक्त पर्व मंगलवार सायं तक चला। कई स्थान भराड़ी,देवामानल, चौरास आदि स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी पेश किए गए, जिसमें स्थानीय पहाड़ी कलाकारों ने लोगों का भरपूर मनोरंजन किया। बता दे की करीब अढ़ाई लाख की आबादी वाले गिरिपार के अधिकतर स्थान नौहराधार, संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ की 130 के करीब पंचायतों में देवभूमि हिमाचल के इस अनूठे धार्मिक उत्सव को धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान क्षेत्र के लगभग सभी बड़े गांव में दो दर्जन के करीब गुग्गा भक्त अथवा श्रद्धालु खुद को लोहे की जंजीरों से पीटते हैं। लोहे की जंजीरों से बने गुग्गा वीर के अस्त्र समझे जाने वाले कौड़े का वजन आमतौर पर दो किलो से दस किलोग्राम तक होता है, जिसे आग अथवा धूने में गर्म करने के बाद श्रद्धालु इससे खुद पर दर्जनों वार करते हैं। बहरहाल गिरिपार के अंतर्गत आने वाले विकास खंड संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ के दर्जनों गांव में को गुग्गावल अथवा स गुग्गा नवमी मनाई जाएगी। गुगावल से शुरू होने पर गारुड़ी कहलाने वाले पारंपरिक लोक गायकों द्वारा छड़ियों से बजने वाले विशेष डमरु की ताल पर गुग्गा पीर, शिरगुल देवता, रामायण व महाभारत आदि वीर गाथाओं का गायन किया जाता है। गुगावल गिरिपार का एकमात्र ऐसा त्योहार है जो जातिगत बंधनों से उपर उठकर मनाया जाता है।
सिरमौर , 28 अगस्त ! गुग्गा नवमी का पर्व गिरिपार क्षेत्र में धूमधाम से मनाया गया। सदियों - पुरानी परंपराओं को बरकरार रखते हुए गुग्गा भक्तों (गुगावल) ने धार्मिक आस्था दिखाते हुए खुद को - लोहे की जंजीर से पीटा। इस दौरान सैकड़ों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। क्षेत्र के सैकड़ों गांवों में सोमवार व मंगलवार को गुगावल अथवा गुग्गा नवमी उत्सव पारंपरिक अंदाज में मनाया गया।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की रात माड़ी कहलाने वाले एक मंजिला गुग्गा मंदिरों में पारंपरिक भक्ति गीतों के साथ शुरू हुआ उक्त पर्व मंगलवार सायं तक चला। कई स्थान भराड़ी,देवामानल, चौरास आदि स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी पेश किए गए, जिसमें स्थानीय पहाड़ी कलाकारों ने लोगों का भरपूर मनोरंजन किया।
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बता दे की करीब अढ़ाई लाख की आबादी वाले गिरिपार के अधिकतर स्थान नौहराधार, संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ की 130 के करीब पंचायतों में देवभूमि हिमाचल के इस अनूठे धार्मिक उत्सव को धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान क्षेत्र के लगभग सभी बड़े गांव में दो दर्जन के करीब गुग्गा भक्त अथवा श्रद्धालु खुद को लोहे की जंजीरों से पीटते हैं।
लोहे की जंजीरों से बने गुग्गा वीर के अस्त्र समझे जाने वाले कौड़े का वजन आमतौर पर दो किलो से दस किलोग्राम तक होता है, जिसे आग अथवा धूने में गर्म करने के बाद श्रद्धालु इससे खुद पर दर्जनों वार करते हैं। बहरहाल गिरिपार के अंतर्गत आने वाले विकास खंड संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ के दर्जनों गांव में को गुग्गावल अथवा स गुग्गा नवमी मनाई जाएगी।
गुगावल से शुरू होने पर गारुड़ी कहलाने वाले पारंपरिक लोक गायकों द्वारा छड़ियों से बजने वाले विशेष डमरु की ताल पर गुग्गा पीर, शिरगुल देवता, रामायण व महाभारत आदि वीर गाथाओं का गायन किया जाता है। गुगावल गिरिपार का एकमात्र ऐसा त्योहार है जो जातिगत बंधनों से उपर उठकर मनाया जाता है।
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