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शिमला , 21 अगस्त, [ ब्यूरो रिपोर्ट ] ! सैहब सोसाइटी वर्करज़ यूनियन सम्बन्धित सीटू के बैनर तले सैहब व आउटसोर्स कर्मियों ने अपनी मांगों को लेकर डीसी कार्यालय शिमला के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया। प्रदर्शन में सीटू जिला कोषाध्यक्ष बालक राम, सचिव रमाकांत मिश्रा, यूनियन अध्यक्ष जसवंत सिंह, महासचिव ओमप्रकाश गर्ग, कोषाध्यक्ष नरेश, सलाहकार पाला राम मट्टू, विनोद बिरसांटा, पूर्ण चंद, सुनील, योगेश, भरत, पवन, नरेंद्र, अमित भाटिया, रूपा, पूनम, शारदा, देवी सिंह, सूरत राम, नरेंद्र, राकेश, राहुल, शिव राम, बूटा राम, विक्रम, दिगम्बर, मनोज, अजित, चंदू लाल, दिनेश, धर्म चंद,नीरज, ललित, दलविंद्र, मदन, इंद्र, प्रेम, राजीव, खूब राम, अरविंद आदि शामिल रहे। सीटू जिला कोषाध्यक्ष बालक राम, सचिव रमाकांत मिश्रा, यूनियन अध्यक्ष जसवंत सिंह व महासचिव ओमप्रकाश गर्ग ने प्रदर्शन को सम्बोधित करते हुए कहा कि अगर सैहब सोसाइटी, आउटसोर्स व सफाई कर्मियों की मांगों का हल तुरन्त न हुआ तो मजदूर बेमियादी आंदोलन शुरू करेंगे व शिमला शहर में कार्य पूरी तरह ठप्प कर देंगे। उन्होंने हैरानी व्यक्त की है कि नगर निगम प्रशासन सैहब के बाय लॉज़ के खिलाफ कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि जो ढाई करोड़ रुपये नगर निगम घरों की मैपिंग हेतु क्यू आर कोड स्कैनिंग के लिए खर्च करना चाहता है उतने पैसे में 150 अतिरिक्त मजदूरों की भर्त्ती हो सकती है जिस से शहर को और ज़्यादा स्वच्छ रखने में मदद मिलेगी व कार्यरत मजदूरों पर काम का बोझ घटेगा। इतने पैसे से सभी सैहब व आउटसोर्स कर्मियों को तीन वर्ष तक 15 हज़ार रुपये बोनस दिया जा सकता है। यह सब कमीशनखोरी व ठेकेदारी प्रथा को बढ़ाने के उद्देश्य से किया जा रहा है। नगर निगम प्रशासन सरकारी पैसे का दुरुपयोग करना चाहता है जिसे सहन नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि सैहब मजदूरों व सुपरवाइजरों का भारी आर्थिक व मानसिक शोषण हो रहा है। उन्होंने कहा कि हर महीने सैंकड़ों आउटसोर्स कर्मियों का वेतन भुगतान समय पर नहीं किया जा रहा है जोकि वेतन भुगतान अधिनियम 1936 का उल्लंघन है। उन्होंने मांग की है कि सैहब वर्करज़ को नियमित कर्मचारी घोषित किया जाए। उन्हें 15वें भारतीय श्रम सम्मेलन, सुप्रीम कोर्ट के सन 1992 के आदेश, सातवें वेतन आयोग की जस्टिस माथुर की सिफारिशों व 26 अक्तूबर 2016 के माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार 26 हज़ार वेतन दिया जाए। उन्हें अतिरिक्त कार्य का अतिरिक्त वेतन दिया जाए। उन्हें कानूनी रूप से 39 छुट्टियां दी जाएं। सैहब में आउटसोर्स में कार्यरत कर्मियों को सैहब के अंतर्गत लाया जाए व उन्हें समय पर वेतन दिया जाए। सैहब कर्मियों को 4- 9 - 14 का लाभ दिया जाए। सभी सैहब सुपरवाइजरों व मजदूरों को सरकार द्वारा घोषित वेतन दिया जाए। सुपरवाइजरों व मजदूरों के लिए पदोन्नति नीति बनाई जाए। उनकी ईपीएफ की बकाया राशि उनके खाते में जमा की जाए। उनसे अतिरिक्त कार्य करवाना बन्द किया जाए। उन्होंने मांग की है कि सैहब एजीएम की बैठक तुरन्त बुलाई जाए व सैहब कर्मियों की मांगों को पूर्ण किया जाए।
शिमला , 21 अगस्त, [ ब्यूरो रिपोर्ट ] ! सैहब सोसाइटी वर्करज़ यूनियन सम्बन्धित सीटू के बैनर तले सैहब व आउटसोर्स कर्मियों ने अपनी मांगों को लेकर डीसी कार्यालय शिमला के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया। प्रदर्शन में सीटू जिला कोषाध्यक्ष बालक राम, सचिव रमाकांत मिश्रा, यूनियन अध्यक्ष जसवंत सिंह, महासचिव ओमप्रकाश गर्ग, कोषाध्यक्ष नरेश, सलाहकार पाला राम मट्टू, विनोद बिरसांटा, पूर्ण चंद, सुनील, योगेश, भरत, पवन, नरेंद्र, अमित भाटिया, रूपा, पूनम, शारदा, देवी सिंह, सूरत राम, नरेंद्र, राकेश, राहुल, शिव राम, बूटा राम, विक्रम, दिगम्बर, मनोज, अजित, चंदू लाल, दिनेश, धर्म चंद,नीरज, ललित, दलविंद्र, मदन, इंद्र, प्रेम, राजीव, खूब राम, अरविंद आदि शामिल रहे।
सीटू जिला कोषाध्यक्ष बालक राम, सचिव रमाकांत मिश्रा, यूनियन अध्यक्ष जसवंत सिंह व महासचिव ओमप्रकाश गर्ग ने प्रदर्शन को सम्बोधित करते हुए कहा कि अगर सैहब सोसाइटी, आउटसोर्स व सफाई कर्मियों की मांगों का हल तुरन्त न हुआ तो मजदूर बेमियादी आंदोलन शुरू करेंगे व शिमला शहर में कार्य पूरी तरह ठप्प कर देंगे। उन्होंने हैरानी व्यक्त की है कि नगर निगम प्रशासन सैहब के बाय लॉज़ के खिलाफ कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि जो ढाई करोड़ रुपये नगर निगम घरों की मैपिंग हेतु क्यू आर कोड स्कैनिंग के लिए खर्च करना चाहता है उतने पैसे में 150 अतिरिक्त मजदूरों की भर्त्ती हो सकती है जिस से शहर को और ज़्यादा स्वच्छ रखने में मदद मिलेगी व कार्यरत मजदूरों पर काम का बोझ घटेगा। इतने पैसे से सभी सैहब व आउटसोर्स कर्मियों को तीन वर्ष तक 15 हज़ार रुपये बोनस दिया जा सकता है। यह सब कमीशनखोरी व ठेकेदारी प्रथा को बढ़ाने के उद्देश्य से किया जा रहा है। नगर निगम प्रशासन सरकारी पैसे का दुरुपयोग करना चाहता है जिसे सहन नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि सैहब मजदूरों व सुपरवाइजरों का भारी आर्थिक व मानसिक शोषण हो रहा है। उन्होंने कहा कि हर महीने सैंकड़ों आउटसोर्स कर्मियों का वेतन भुगतान समय पर नहीं किया जा रहा है जोकि वेतन भुगतान अधिनियम 1936 का उल्लंघन है।
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उन्होंने मांग की है कि सैहब वर्करज़ को नियमित कर्मचारी घोषित किया जाए। उन्हें 15वें भारतीय श्रम सम्मेलन, सुप्रीम कोर्ट के सन 1992 के आदेश, सातवें वेतन आयोग की जस्टिस माथुर की सिफारिशों व 26 अक्तूबर 2016 के माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार 26 हज़ार वेतन दिया जाए। उन्हें अतिरिक्त कार्य का अतिरिक्त वेतन दिया जाए। उन्हें कानूनी रूप से 39 छुट्टियां दी जाएं। सैहब में आउटसोर्स में कार्यरत कर्मियों को सैहब के अंतर्गत लाया जाए व उन्हें समय पर वेतन दिया जाए। सैहब कर्मियों को 4- 9 - 14 का लाभ दिया जाए। सभी सैहब सुपरवाइजरों व मजदूरों को सरकार द्वारा घोषित वेतन दिया जाए। सुपरवाइजरों व मजदूरों के लिए पदोन्नति नीति बनाई जाए। उनकी ईपीएफ की बकाया राशि उनके खाते में जमा की जाए। उनसे अतिरिक्त कार्य करवाना बन्द किया जाए। उन्होंने मांग की है कि सैहब एजीएम की बैठक तुरन्त बुलाई जाए व सैहब कर्मियों की मांगों को पूर्ण किया जाए।
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