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शिमला , 10 मार्च [ विशाल सूद ] ! शिमला में तिब्बती युवा कांग्रेस (आरटीवाईसी) ने तिब्बत के 66वें जन आंदोलन दिवस पर शांतिपूर्ण रैली निकाली। रैली का नेतृत्व आरटीवाईसी के अध्यक्ष ताशी पाल्डेन ने किया। इसमें विभिन्न एनजीओ, छात्र और कार्यकर्ता, और शिमला की तिब्बती समुदाय के लोग शामिल हुए । आरटीवाईसी के अध्यक्ष ताशी पाल्डेन ने बताया कि तिब्बतियों ने यह रैली 10 मार्च 1959 को तिब्बत पर चीन के अवैध कब्जे के विरोध में निकाली है। इसका उद्देश्य तिब्बत के अधूरे संघर्ष को याद करना और दुनिया का ध्यान तिब्बत की मौजूदा स्थिति की ओर खींचना था। आरटीवाईसी के अध्यक्ष ताशी पाल्डेन ने आगे बताया कि 1959 की तिब्बती राष्ट्रीय जनक्रांति चीन के खिलाफ एक अहम विद्रोह था। इस विद्रोह में हजारों तिब्बतियों ने अपनी जान गंवाई। 14वें दलाई लामा को निर्वासन में जाना पड़ा। पाल्डेन ने कहा कि तिब्बत में लोगों की भाषा और धार्मिक स्वतंत्रता पर कड़े प्रतिबंध हैं। तिब्बती बच्चों को जबरन औपनिवेशिक शैली के बोर्डिंग स्कूलों में भेजा जा रहा है। 10 मार्च 1959 को हजारों तिब्बती नोरबुलिंका में एकत्र हुए थे। वे दलाई लामा के ग्रीष्मकालीन महल के पास चीन के बढ़ते नियंत्रण का विरोध कर रहे थे। यह शांतिपूर्ण विरोध बाद में क्रूर दमन में बदल गया। इसके बाद दलाई लामा को निर्वासन में जाना पड़ा और तिब्बत की स्वायत्तता का सपना टूट गया। आज यह दिवस तिब्बत की आजादी के समर्थन का प्रतीक बन गया है। बाइट,,,आरटीवाईसी अध्यक्ष ताशी पाल्डेन
शिमला , 10 मार्च [ विशाल सूद ] ! शिमला में तिब्बती युवा कांग्रेस (आरटीवाईसी) ने तिब्बत के 66वें जन आंदोलन दिवस पर शांतिपूर्ण रैली निकाली। रैली का नेतृत्व आरटीवाईसी के अध्यक्ष ताशी पाल्डेन ने किया। इसमें विभिन्न एनजीओ, छात्र और कार्यकर्ता, और शिमला की तिब्बती समुदाय के लोग शामिल हुए ।
आरटीवाईसी के अध्यक्ष ताशी पाल्डेन ने बताया कि तिब्बतियों ने यह रैली 10 मार्च 1959 को तिब्बत पर चीन के अवैध कब्जे के विरोध में निकाली है। इसका उद्देश्य तिब्बत के अधूरे संघर्ष को याद करना और दुनिया का ध्यान तिब्बत की मौजूदा स्थिति की ओर खींचना था।
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आरटीवाईसी के अध्यक्ष ताशी पाल्डेन ने आगे बताया कि 1959 की तिब्बती राष्ट्रीय जनक्रांति चीन के खिलाफ एक अहम विद्रोह था। इस विद्रोह में हजारों तिब्बतियों ने अपनी जान गंवाई। 14वें दलाई लामा को निर्वासन में जाना पड़ा।
पाल्डेन ने कहा कि तिब्बत में लोगों की भाषा और धार्मिक स्वतंत्रता पर कड़े प्रतिबंध हैं। तिब्बती बच्चों को जबरन औपनिवेशिक शैली के बोर्डिंग स्कूलों में भेजा जा रहा है।
10 मार्च 1959 को हजारों तिब्बती नोरबुलिंका में एकत्र हुए थे। वे दलाई लामा के ग्रीष्मकालीन महल के पास चीन के बढ़ते नियंत्रण का विरोध कर रहे थे। यह शांतिपूर्ण विरोध बाद में क्रूर दमन में बदल गया। इसके बाद दलाई लामा को निर्वासन में जाना पड़ा और तिब्बत की स्वायत्तता का सपना टूट गया। आज यह दिवस तिब्बत की आजादी के समर्थन का प्रतीक बन गया है।
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