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शिमला 29 अप्रेल [ विशाल सूद ] ! "वैदिक ज्ञान से लौकिक सद्भाव" की खोज पर केंद्रित एक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आज भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (आईआईएएस), शिमला में शुरू हुई। यह संगोष्ठी आईआईएएस और प्रतिष्ठित सहयोगी संस्थानों – यूनिवर्सल वेद रिसर्च इंस्टीट्यूट (तिरुवनंतमाली, तमिलनाडु) और शांतिगिरी रिसर्च फाउंडेशन (तिरुवनंतपुरम, केरल) के बीच सहयोग से आयोजित हो रही है। केरल के माननीय राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान आज आयोजित संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि रहे। उद्घाटन सत्र की शुरुआत पारंपरिक दीप प्रज्ज्वलन और राष्ट्रगान के साथ सुबह 11:30 बजे हुई। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के निदेशक प्रोफेसर नागेश्वर राव ने मुख्य अतिथि और प्रतिभागियों का हार्दिक स्वागत किया। आईआईएएस के फेलो और इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक प्रोफेसर के. गोपीनाथन पिल्लई ने संगोष्ठी की विषयवस्तु से परिचय करवाया। मुख्य वक्ता के रूप में, 'पद्म भूषण' प्रोफेसर कपिल कपूर, आईआईएएस गवर्निंग बॉडी के पूर्व अध्यक्ष ने व्यावहारिक संदर्भ प्रदान किया। आईआईएएस गवर्निंग बॉडी की अध्यक्ष प्रोफेसर शशिप्रभा कुमार ने अध्यक्षीय संबोधन दिया। उन्होंने समसामयिक समय में सम्मेलन के विषय की प्रासंगिकता के बारे में भी बताया। मुख्य अतिथि श्री आरिफ मोहम्मद खान ने उद्घाटन भाषण दिया, जिसमें उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कैसे वेद, ज्ञान और परंपरा पर अद्वितीय दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा, "वैदिक ज्ञान का सबसे बड़ा योगदान इसका अनूठा दृष्टिकोण है। यह दिव्यता के मानवीय पहलुओं को पहचानते हुए मानवता की दिव्य प्रकृति पर जोर देता है। वैदिक ज्ञान हमें व्यक्तिवाद से परे जाने और अपनी अंतर्संबंधता को अपनाने के लिए कहता है। यह भाषा, समाज, धर्म या रूप-रंग पर आधारित सतही भेदों को अस्वीकार करता है। इसके बजाय, यह सभी प्राणियों के भीतर साझा सार - आत्मा पर केंद्रित है। यह आत्मा अस्तित्व का एकीकृत तत्व है। वैदिक ज्ञान हमें याद दिलाता है कि 'अन्य' की कोई अवधारणा नहीं है। परम आत्मा (परमात्मा) और व्यक्तिगत आत्मा (जीवात्मा) मौलिक रूप से जुड़े हुए हैं।" उन्होंने विचारों की स्थायी शक्ति के बारे में विस्तार से बताया, "मन और बुद्धि के स्मारक सत्ता और शक्ति के स्मारकों से अधिक टिकाऊ होते हैं।" उन्होंने वैदिक ज्ञान को संघर्ष समाधान और व्यक्तिगत विकास से जोड़ते हुए बताया कि एक एकीकृत व्यक्तित्व इसकी सर्वोच्च उपलब्धियों में से एक है। राज्यपाल ने वैदिक ज्ञान के समग्र स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहा "वैदिक ज्ञान की प्रासंगिकता वास्तविकता के एक अभिन्न, समग्र और आध्यात्मिक दृष्टिकोण और उस पर आधारित जीवन के मार्ग की विशेषता है। यह चेतन और निर्जीव, सभी अस्तित्वों की मौलिक एकता की वकालत करता है। यह भव्य वैदिक दृष्टि है, और यह ऋग्वेद के इस आह्वान के साथ संरेखित है कि समूचे ब्रह्मांड से महान विचार हमारे चिंतन में समाएं।" भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान द्वारा आयोजित इस संगोष्ठी में पूरे भारत से लगभग 20 प्रसिद्ध विद्वान भाग ले रहे हैं। कार्यक्रम के दौरान संस्थान के पूर्व अध्येताओं द्वारा लिखित दो प्रकाशन, शर्मिला चंद्रा द्वारा “दी करिज़्मा ऑफ मास्क इन कोंटेक्स्ट ऑफ इंडियन माईथोलॉजी” और विक्रम कुलकर्णी द्वारा “महाराष्ट्र की घुमंतू जनजातियों में दृश्यकला परम्पराएं” का लोकर्पण भी किया गया। उद्घाटन सत्र कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ सम्पन्न हुआ।
शिमला 29 अप्रेल [ विशाल सूद ] ! "वैदिक ज्ञान से लौकिक सद्भाव" की खोज पर केंद्रित एक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आज भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (आईआईएएस), शिमला में शुरू हुई। यह संगोष्ठी आईआईएएस और प्रतिष्ठित सहयोगी संस्थानों – यूनिवर्सल वेद रिसर्च इंस्टीट्यूट (तिरुवनंतमाली, तमिलनाडु) और शांतिगिरी रिसर्च फाउंडेशन (तिरुवनंतपुरम, केरल) के बीच सहयोग से आयोजित हो रही है। केरल के माननीय राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान आज आयोजित संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि रहे।
उद्घाटन सत्र की शुरुआत पारंपरिक दीप प्रज्ज्वलन और राष्ट्रगान के साथ सुबह 11:30 बजे हुई। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के निदेशक प्रोफेसर नागेश्वर राव ने मुख्य अतिथि और प्रतिभागियों का हार्दिक स्वागत किया। आईआईएएस के फेलो और इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक प्रोफेसर के. गोपीनाथन पिल्लई ने संगोष्ठी की विषयवस्तु से परिचय करवाया।
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मुख्य वक्ता के रूप में, 'पद्म भूषण' प्रोफेसर कपिल कपूर, आईआईएएस गवर्निंग बॉडी के पूर्व अध्यक्ष ने व्यावहारिक संदर्भ प्रदान किया। आईआईएएस गवर्निंग बॉडी की अध्यक्ष प्रोफेसर शशिप्रभा कुमार ने अध्यक्षीय संबोधन दिया। उन्होंने समसामयिक समय में सम्मेलन के विषय की प्रासंगिकता के बारे में भी बताया।
मुख्य अतिथि श्री आरिफ मोहम्मद खान ने उद्घाटन भाषण दिया, जिसमें उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कैसे वेद, ज्ञान और परंपरा पर अद्वितीय दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा, "वैदिक ज्ञान का सबसे बड़ा योगदान इसका अनूठा दृष्टिकोण है। यह दिव्यता के मानवीय पहलुओं को पहचानते हुए मानवता की दिव्य प्रकृति पर जोर देता है। वैदिक ज्ञान हमें व्यक्तिवाद से परे जाने और अपनी अंतर्संबंधता को अपनाने के लिए कहता है। यह भाषा, समाज, धर्म या रूप-रंग पर आधारित सतही भेदों को अस्वीकार करता है। इसके बजाय, यह सभी प्राणियों के भीतर साझा सार - आत्मा पर केंद्रित है। यह आत्मा अस्तित्व का एकीकृत तत्व है। वैदिक ज्ञान हमें याद दिलाता है कि 'अन्य' की कोई अवधारणा नहीं है। परम आत्मा (परमात्मा) और व्यक्तिगत आत्मा (जीवात्मा) मौलिक रूप से जुड़े हुए हैं।"
उन्होंने विचारों की स्थायी शक्ति के बारे में विस्तार से बताया, "मन और बुद्धि के स्मारक सत्ता और शक्ति के स्मारकों से अधिक टिकाऊ होते हैं।" उन्होंने वैदिक ज्ञान को संघर्ष समाधान और व्यक्तिगत विकास से जोड़ते हुए बताया कि एक एकीकृत व्यक्तित्व इसकी सर्वोच्च उपलब्धियों में से एक है।
राज्यपाल ने वैदिक ज्ञान के समग्र स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहा "वैदिक ज्ञान की प्रासंगिकता वास्तविकता के एक अभिन्न, समग्र और आध्यात्मिक दृष्टिकोण और उस पर आधारित जीवन के मार्ग की विशेषता है। यह चेतन और निर्जीव, सभी अस्तित्वों की मौलिक एकता की वकालत करता है। यह भव्य वैदिक दृष्टि है, और यह ऋग्वेद के इस आह्वान के साथ संरेखित है कि समूचे ब्रह्मांड से महान विचार हमारे चिंतन में समाएं।"
भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान द्वारा आयोजित इस संगोष्ठी में पूरे भारत से लगभग 20 प्रसिद्ध विद्वान भाग ले रहे हैं। कार्यक्रम के दौरान संस्थान के पूर्व अध्येताओं द्वारा लिखित दो प्रकाशन, शर्मिला चंद्रा द्वारा “दी करिज़्मा ऑफ मास्क इन कोंटेक्स्ट ऑफ इंडियन माईथोलॉजी” और विक्रम कुलकर्णी द्वारा “महाराष्ट्र की घुमंतू जनजातियों में दृश्यकला परम्पराएं” का लोकर्पण भी किया गया। उद्घाटन सत्र कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ सम्पन्न हुआ।
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