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शिमला , 07 नवंबर [ विशाल सूद ] ! भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राजीव बिंदल व मुख्य प्रवक्ता राकेश जमवाल ने कहा कि कांग्रेस जम्मू-कश्मीर में फिर से आतंकवाद और अलगाववाद का काला दौर लाना चाहती है। जम्मू- कश्मीर विधानसभा में धारा 370 और 35ए को फिर से लाने के नेशनल कांफ्रेंस के प्रस्ताव का समर्थन कर कांग्रेस ने देश को तोड़ने का कुचक्र फिर से चल दिया है। प्रस्ताव में कहा गया है- "राज्य का स्पेशल स्टेटस और संवैधानिक गारंटियां महत्वपूर्ण हैं। यह जम्मू- कश्मीर की पहचान, कल्चर और लोगों के अधिकारों की सुरक्षा करता है। विधानसभा इसे एक तरफा हटाने पर चिंता व्यक्त करती है। भारत सरकार राज्य के स्पेशल स्टेटस को लेकर यहां के प्रतिनिधियों से बात करे। इसकी संवैधानिक बहाली पर काम किया जाए। विधानसभा इस बात पर जोर देती है कि यह बहाली नेशनल यूनिटी और जम्मू-कश्मीर के लोगों की इच्छाओं, दोनों को ध्यान में रख कर की जाए।" कांग्रेस बताये कि वह कश्मीर के लिए कैसी संवैधानिक गारंटियां चाहती है। कांग्रेस बताये कि वह कैसे कश्मीर की अलग आइडेंटिटी बनाना चाहती है और अलग अधिकार देना चाहती है? बिंदल और जमवाल ने कहा कि कल विधानसभा में जो भी कुछ हुआ, वह पाकिस्तान और देश विरोधी लोगों को खुश करने के लिए किया गया, जम्मू-कश्मीर की जनता को गुमराह करने के लिए किया गया। आज जो देश की एकता के लिए खड़े हैं, जम्मू-कश्मीर वे विकास और शांति के पक्ष में खड़े हैं, उन्हें मार्शल के जरिये बेरहमी से जम्मू-कश्मीर विधानसभा से बाहर निकाला जा रहा है। कांग्रेस-एनसी, पीडीपी - ये सब जम्मू-कश्मीर में फिर से आतंकवाद को लाना चाहते हैं। यह कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस का राष्ट्रविरोधी एजेंडा है। शेख अब्दुल्ला से लेकर उमर अब्दुल्ला तक, भावनात्मक ब्लैकमेल करना नेशनल कॉन्फ्रेंस की दिनचर्या है। जम्मू-कश्मीर धारा 370 तथा 35ए के काले साए से कब का निकल चुकी है। वह विकास के रास्ते पर चल पड़ी है लेकिन कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी ये सब कश्मीर घाटी में आई शांति से परेशान हैं। ये जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद व अलगाववाद के काले दौर को वापस लाना चाहती है। हमारी सरकार ने वादा किया था कि जम्मू-कश्मीर को विधानसभा देंगे, चुनाव करायेंगे, केवल 5 साल के अंदर मोदी सरकार ने चुनाव कराये और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल किया। हम आगे भी जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए काम करेंगे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस फिर से धारा 370 बहाल करके यह बताना चाहती है कि हम वाल्मीकियों, गोरखा समाज, पश्चिमी पाकिस्तान शरणार्थी, पहाड़ी और गुर्जर के खिलाफ हैं। कांग्रेस ने नेशनल कांफ्रेंस के घोषणापत्र का समर्थन कर जम्मू-कश्मीर में आरक्षण को ख़त्म करने का समर्थन किया था। वैसे भी राहुल गाँधी अमेरिका जाकर आरक्षण को ख़त्म करने की बात कर चुके हैं। धारा 370 के हटने के बाद से जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की घटनाओं में 70 प्रतिशत की कमी आई है। नागरिकों की मृत्यु में भी लगभग 80% की कमी आई है। विदेशी नागरिकों के पर्यटन में 300 प्रतिशत का उछाल आया है। जम्मू-कश्मीर का बजट 17 प्रतिशत बढ़ा है। पत्थरबाजी की घटना बिलकुल बंद हो गई। आतंकवादी घटनाएं दो-तीन जिलों में ही सिमट कर रह गई। जहाँ पहले 5-7 प्रतिशत मतदान होता था, वहां भी 50 प्रतिशत मतदान होने लगा। जो पहले अलगाववाद और आतंकवाद की वकालत कर रहे थे, वे भी अब हिंदुस्तान के संविधान के आईन में लोकतंत्र को मजबूती देते हुए वोट मांगते दिखाई दिए। जी-20 का बैठक जम्मू-कश्मीर में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। जम्मू-कश्मीर को 80 हजार करोड़ रुपये का विशेष पैकेज मिला, 56,000 करोड़ रुपये का निवेश आया। आजादी से लेकर धारा 370 के हटने तक जम्मू-कश्मीर में जितना निवेश आया, उसकी तुलना में तीन गुना निवेश पिछले 4 सालों में जम्मू-कश्मीर में हुआ।कांग्रेस को इसका जवाब देना होगा। इनके इरादे ठीक नहीं है। कांग्रेस नेता फिर से 90 के दशक वाला जैसा माहौल जम्मू-कश्मीर में बनाना चाहते हैं। जम्मू-कश्मीर कांग्रेस विधायक दल के नेता गुलाम अहमद मीर ने कहा कि उनकी पार्टी कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को कम करने और विभाजन के खिलाफ लोगों की नाराजगी का समर्थन किया था और किया है। गुलाम अहमद मीर ने एक तरह से प्रस्ताव का समर्थन किया, कांग्रेस विधानसभा में इस प्रस्ताव के समर्थन में खड़ी नजर आई। राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी अनुच्छेद 370 को हटाने पर अपनी स्थिति स्पष्ट करे। कांग्रेस के एक और पुराने नेता सैफुद्दीन सोज ने प्रेस रिलीज करके इस प्रस्ताव का समर्थन किया है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में जो प्रस्ताव पास किया गया है, भले ही उसमें से चालाकी से धारा 370 और 35ए का जिक्र नहीं किया गया है लेकिन उस प्रस्ताव में जो मांग की गई है, वह धारा 370 और 35ए के जैसा ही है। जब विधानसभा में यह प्रस्ताव पारित हो रहा था तो भाजपा सदस्य इसका विरोध कर रहे थे जबकि कांग्रेस के सदस्य इसका मौन समर्थन कर रहे थे। स्पीकर को निष्पक्ष होना चाहिए था। मीडिया से आई जानकारी में पता चला है कि स्पीकर ने स्वयं ही मंगलवार (5 नवंबर) को मंत्रियों की बैठक बुलाई थी और खुद ही प्रस्ताव तैयार किया। ये सरासर असंवैधानिक है। ये प्रस्ताव लाना पहले से सदन की कार्यवाही में लिस्टेड भी नहीं था। जब विधानसभा में एलजी के अभिभाषण पर चर्चा होनी थी तो प्रस्ताव कैसे लाया गया? इस प्रस्ताव को बिना किसी बहस के पारित कर दिया गया क्योंकि स्पीकर ने शोरगुल के बीच इसे ध्वनिमत से पारित कर दिया। इतने बड़े विषय पर चर्चा नहीं होने दी गई। ये कैसा लोकतंत्र है? इस प्रस्ताव की कोई कानूनी वैधता नहीं है क्योंकि जम्मू-कश्मीर विधानसभा संसद या सुप्रीम कोर्ट से ऊपर नहीं है। कोई भी विधानसभा अनुच्छेद 370 और 35ए को वापस नहीं ला सकती। धारा 370 और 35ए इतिहास बन चुकी है, इस इतिहास को अब कोई बदल नहीं सकता। नेशनल कॉन्फ्रेंस जम्मू-कश्मीर के लोगों को गुमराह कर रही है। जो लोग पहले धारा 370, 35ए, स्वायत्तता और जमात-ए-इस्लामी के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाने की राजनीति करते थे, वे अब 5 अगस्त 2019 के बाद से स्थापित शांति से परेशान हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस राज्य के दर्जे पर बातचीत शुरू करके गरीब लोगों को फिर से सड़क पर लाना चाहती है। अभी जब घाटी में आतंकी हमले हुए और उसमें पाकिस्तान के हाथ होने का मामला सामने आया, तब भी मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पाकिस्तान का जिक्र तक नहीं किया।
शिमला , 07 नवंबर [ विशाल सूद ] ! भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राजीव बिंदल व मुख्य प्रवक्ता राकेश जमवाल ने कहा कि कांग्रेस जम्मू-कश्मीर में फिर से आतंकवाद और अलगाववाद का काला दौर लाना चाहती है। जम्मू- कश्मीर विधानसभा में धारा 370 और 35ए को फिर से लाने के नेशनल कांफ्रेंस के प्रस्ताव का समर्थन कर कांग्रेस ने देश को तोड़ने का कुचक्र फिर से चल दिया है।
प्रस्ताव में कहा गया है- "राज्य का स्पेशल स्टेटस और संवैधानिक गारंटियां महत्वपूर्ण हैं। यह जम्मू- कश्मीर की पहचान, कल्चर और लोगों के अधिकारों की सुरक्षा करता है। विधानसभा इसे एक तरफा हटाने पर चिंता व्यक्त करती है। भारत सरकार राज्य के स्पेशल स्टेटस को लेकर यहां के प्रतिनिधियों से बात करे। इसकी संवैधानिक बहाली पर काम किया जाए।
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विधानसभा इस बात पर जोर देती है कि यह बहाली नेशनल यूनिटी और जम्मू-कश्मीर के लोगों की इच्छाओं, दोनों को ध्यान में रख कर की जाए।" कांग्रेस बताये कि वह कश्मीर के लिए कैसी संवैधानिक गारंटियां चाहती है। कांग्रेस बताये कि वह कैसे कश्मीर की अलग आइडेंटिटी बनाना चाहती है और अलग अधिकार देना चाहती है?
बिंदल और जमवाल ने कहा कि कल विधानसभा में जो भी कुछ हुआ, वह पाकिस्तान और देश विरोधी लोगों को खुश करने के लिए किया गया, जम्मू-कश्मीर की जनता को गुमराह करने के लिए किया गया। आज जो देश की एकता के लिए खड़े हैं, जम्मू-कश्मीर वे विकास और शांति के पक्ष में खड़े हैं, उन्हें मार्शल के जरिये बेरहमी से जम्मू-कश्मीर विधानसभा से बाहर निकाला जा रहा है।
कांग्रेस-एनसी, पीडीपी - ये सब जम्मू-कश्मीर में फिर से आतंकवाद को लाना चाहते हैं। यह कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस का राष्ट्रविरोधी एजेंडा है। शेख अब्दुल्ला से लेकर उमर अब्दुल्ला तक, भावनात्मक ब्लैकमेल करना नेशनल कॉन्फ्रेंस की दिनचर्या है। जम्मू-कश्मीर धारा 370 तथा 35ए के काले साए से कब का निकल चुकी है।
वह विकास के रास्ते पर चल पड़ी है लेकिन कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी ये सब कश्मीर घाटी में आई शांति से परेशान हैं। ये जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद व अलगाववाद के काले दौर को वापस लाना चाहती है। हमारी सरकार ने वादा किया था कि जम्मू-कश्मीर को विधानसभा देंगे, चुनाव करायेंगे, केवल 5 साल के अंदर मोदी सरकार ने चुनाव कराये और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल किया। हम आगे भी जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए काम करेंगे।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस फिर से धारा 370 बहाल करके यह बताना चाहती है कि हम वाल्मीकियों, गोरखा समाज, पश्चिमी पाकिस्तान शरणार्थी, पहाड़ी और गुर्जर के खिलाफ हैं। कांग्रेस ने नेशनल कांफ्रेंस के घोषणापत्र का समर्थन कर जम्मू-कश्मीर में आरक्षण को ख़त्म करने का समर्थन किया था। वैसे भी राहुल गाँधी अमेरिका जाकर आरक्षण को ख़त्म करने की बात कर चुके हैं।
धारा 370 के हटने के बाद से जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की घटनाओं में 70 प्रतिशत की कमी आई है। नागरिकों की मृत्यु में भी लगभग 80% की कमी आई है। विदेशी नागरिकों के पर्यटन में 300 प्रतिशत का उछाल आया है। जम्मू-कश्मीर का बजट 17 प्रतिशत बढ़ा है। पत्थरबाजी की घटना बिलकुल बंद हो गई। आतंकवादी घटनाएं दो-तीन जिलों में ही सिमट कर रह गई। जहाँ पहले 5-7 प्रतिशत मतदान होता था, वहां भी 50 प्रतिशत मतदान होने लगा। जो पहले अलगाववाद और आतंकवाद की वकालत कर रहे थे, वे भी अब हिंदुस्तान के संविधान के आईन में लोकतंत्र को मजबूती देते हुए वोट मांगते दिखाई दिए।
जी-20 का बैठक जम्मू-कश्मीर में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। जम्मू-कश्मीर को 80 हजार करोड़ रुपये का विशेष पैकेज मिला, 56,000 करोड़ रुपये का निवेश आया। आजादी से लेकर धारा 370 के हटने तक जम्मू-कश्मीर में जितना निवेश आया, उसकी तुलना में तीन गुना निवेश पिछले 4 सालों में जम्मू-कश्मीर में हुआ।कांग्रेस को इसका जवाब देना होगा। इनके इरादे ठीक नहीं है। कांग्रेस नेता फिर से 90 के दशक वाला जैसा माहौल जम्मू-कश्मीर में बनाना चाहते हैं।
जम्मू-कश्मीर कांग्रेस विधायक दल के नेता गुलाम अहमद मीर ने कहा कि उनकी पार्टी कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को कम करने और विभाजन के खिलाफ लोगों की नाराजगी का समर्थन किया था और किया है। गुलाम अहमद मीर ने एक तरह से प्रस्ताव का समर्थन किया, कांग्रेस विधानसभा में इस प्रस्ताव के समर्थन में खड़ी नजर आई। राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी अनुच्छेद 370 को हटाने पर अपनी स्थिति स्पष्ट करे। कांग्रेस के एक और पुराने नेता सैफुद्दीन सोज ने प्रेस रिलीज करके इस प्रस्ताव का समर्थन किया है।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में जो प्रस्ताव पास किया गया है, भले ही उसमें से चालाकी से धारा 370 और 35ए का जिक्र नहीं किया गया है लेकिन उस प्रस्ताव में जो मांग की गई है, वह धारा 370 और 35ए के जैसा ही है। जब विधानसभा में यह प्रस्ताव पारित हो रहा था तो भाजपा सदस्य इसका विरोध कर रहे थे जबकि कांग्रेस के सदस्य इसका मौन समर्थन कर रहे थे। स्पीकर को निष्पक्ष होना चाहिए था।
मीडिया से आई जानकारी में पता चला है कि स्पीकर ने स्वयं ही मंगलवार (5 नवंबर) को मंत्रियों की बैठक बुलाई थी और खुद ही प्रस्ताव तैयार किया। ये सरासर असंवैधानिक है। ये प्रस्ताव लाना पहले से सदन की कार्यवाही में लिस्टेड भी नहीं था। जब विधानसभा में एलजी के अभिभाषण पर चर्चा होनी थी तो प्रस्ताव कैसे लाया गया? इस प्रस्ताव को बिना किसी बहस के पारित कर दिया गया क्योंकि स्पीकर ने शोरगुल के बीच इसे ध्वनिमत से पारित कर दिया। इतने बड़े विषय पर चर्चा नहीं होने दी गई। ये कैसा लोकतंत्र है?
इस प्रस्ताव की कोई कानूनी वैधता नहीं है क्योंकि जम्मू-कश्मीर विधानसभा संसद या सुप्रीम कोर्ट से ऊपर नहीं है। कोई भी विधानसभा अनुच्छेद 370 और 35ए को वापस नहीं ला सकती। धारा 370 और 35ए इतिहास बन चुकी है, इस इतिहास को अब कोई बदल नहीं सकता। नेशनल कॉन्फ्रेंस जम्मू-कश्मीर के लोगों को गुमराह कर रही है। जो लोग पहले धारा 370, 35ए, स्वायत्तता और जमात-ए-इस्लामी के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाने की राजनीति करते थे, वे अब 5 अगस्त 2019 के बाद से स्थापित शांति से परेशान हैं।
नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस राज्य के दर्जे पर बातचीत शुरू करके गरीब लोगों को फिर से सड़क पर लाना चाहती है। अभी जब घाटी में आतंकी हमले हुए और उसमें पाकिस्तान के हाथ होने का मामला सामने आया, तब भी मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पाकिस्तान का जिक्र तक नहीं किया।
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