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शिमला , 30 सितंबर [ विशाल सूद ] ! सीटू राष्ट्रीय जनरल काउंसिल के आह्वान पर ठेका, आउटसोर्स, कैजुअल, मल्टी टास्क, मल्टी पर्पज व फिक्स टर्म कर्मियों की मांगों को लेकर सीटू राज्य कमेटी हिमाचल प्रदेश द्वारा जिला व ब्लॉक मुख्यालयों पर जोरदार प्रदर्शन किए गए। प्रदेशभर में हुए प्रदर्शनों में हजारों मजदूरों ने भाग लिया। इसी कड़ी में शिमला के डीसी ऑफिस के बाहर भी सीटू ने नारेबाजी की और प्रदर्शन किया। विजेंद्र मेहरा, रमाकांत मिश्रा, बालक राम, विनोद बिरसांटा, प्रताप, विक्रम, दलीप, पंकज, वीरेंद्र लाल, नोख राम, सीता राम, निशा, सरीना, सुरेंद्रा, उमा, प्रवीण, सन्नी, चमन, कृतिका, राम प्रकाश, पाला राम, दलविंद्र, शिव राम, अनिल शर्मा, अत्तर सिंह, विवेक कश्यप, रंजीव कुठियाला सहित आईजीएमसी, कमला नेहरू, अटल इंस्टीट्यूट चम्याना, मेंटल रिहैबिलिटेशन सेंटर अस्पतालों, छः सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांटों, सैहब, कालीबाड़ी, विशाल मेगामार्ट, बॉर्डर रोड़ ऑर्गेनाइजेशन से संबंधित ठेका,कैजुअल व आउटसोर्स कर्मियों सहित होटल, तहबजारी, मिड डे मील, गाइड यूनियन आदि से जुड़े मजदूरों ने भारी संख्या में भाग लिया। सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने कहा है कि* सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों व प्रतिष्ठानों, निजी तथा सरकारी सेवाओं में कार्यरत ठेका ,आउटसोर्स, कैजुअल ,मल्टी टास्क, मल्टी पर्पज व फिक्स टर्म मजदूरों को आमतौर पर समान और एक जैसा काम करने के बावजूद नियमित मजदूरों से बहुत कम वेतन दिया जाता है। उन्हें कानूनी रूप से मिलने वाली सामाजिक सुरक्षा व आय लाभों से वंचित रखा जाता है। ठेका ,आउटसोर्स,कैजुअल ,मल्टी टास्क, मल्टी पर्पज व फिक्स टर्म मजदूरों की भर्ती में एक ओर राजनीतिक नेताओं, सरकारी अधिकारियों व कंपनियों की कमीशनखोरी बढ़ी है वहीं दूसरी ओर इन कर्मचारियों पर शोषण का शिकंजा मजबूत हुआ है। इन कर्मचारियों का भारी शोषण हो रहा है। इन कर्मचारियों को स्थाई कर्मचारियों के मुकाबले बेहद कम वेतन दिया जा रहा है। कर्मचारियों से 8 के बजाए 12 घंटे कार्य लिया जाता है। इनके लिये इपीएफ, ईएसआई, ग्रेच्युटी, पेंशन, बोनस, छुट्टियों आदि की सुविधा लागू नहीं की जाती है। इनके लिए मेडिकल सुविधा कर कोई प्रावधान नहीं है। इन्हें समय पर वेतन भी नहीं मिलता है। कई बार कई महीनों के उपरान्त यह वेतन मिलता है। इनके लिए ईपीएफ, ई. एस. आई. के दोनों हिस्से भी कई बार ठेका व आउटसोर्स कर्मियों के वेतन से ही काटे जाते हैं। श्रम कानून लागू करने की मांग पर इन्हें अपनी नौकरी तक से हाथ धोना पड़ता है। हि.प्र.में लगभग 30 हजार आउटसोर्स कर्मी, हजारों ठेका कर्मी, मल्टी टास्क, मल्टी पर्पज, फिक्स टर्म कर्मी राज्य सेवाओं में कार्यरत है। केन्द्र सरकार के विभिन्न विभागों के अधीन कार्यरत ऐसे कर्मियों की संख्या भी हि. प्र. में हजारों में है। केंद्र की मोदी सरकार के पिछले दस वर्ष के कार्यकाल में स्थाई नौकरियों में भारी कटौती हुई है तथा कॉन्ट्रैक्ट, आउटसोर्स, फिक्स टर्म प्रणाली पर रोजगार का बोलबाला बढ़ा है। इस से कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा खतरे में पड़ी है। हिमाचल प्रदेश की भूतपूर्व भाजपा सरकार आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए पॉलिसी बनाने का वायदा कर इन्हें ठगती रही व वर्तमान कांग्रेस सरकार भी इन कर्मचारियों के प्रति संवेदनहीन रही है व इन्हें नौकरी से निकालने की साजिश रचती रही है। हि. प्र. सरकार द्वारा सरकारी संस्थानों व सेवाओं में मल्टी टास्क व मल्टी पर्पज के आधार पर कर्मियों को न्यूनतम वेतन से भी बेहद कम साढ़े चार हजार से लेकर छः हजार रुपए पर नियुक्त करना उसके शोषणकारी चरित्र को दर्शाता है। उन्होंने मांग की है कि ठेका, आउटसोर्स कैजुअल मल्टी टास्क, मल्टीपर्पज व फिक्स टर्म मज़दूरों के लिए श्रेणी अनुसार न्यूनतम वेतन लागू किया जाए। प्रदेश में ठेका, आउटसोर्स, कैजुअल, मल्टी टास्क, मल्टीपर्पज व फिक्स टर्म मज़दूरों को नियमित करने के लिए तुरन्त ठोस नीति बनाई जाए। ठेका, आउटसोर्स, कैजुअल, मल्टी टास्क, मल्टी पर्पज व फिक्स टर्म मजदूरों को सुप्रीम कोर्ट के 26 अक्टूबर 2016 के फैसले के अनुसार समान काम का समान वेतन दिया जाए। ठेका, आउटसोर्स, कैजुअल, मल्टी टास्क, मल्टी पर्पज व फिक्स टर्म पर भर्ती करने की प्रथा को बन्द किया जाए व भविष्य में सभी विभागों में स्थाई भर्तियां की जाएं। पहले से कार्यरत ठेका, आउटसोर्स,कैजुअल, मल्टी टास्क,मल्टी पर्पज व फिक्स टर्म मजदूरों को ही विभिन्न विभागों में स्थाई कर्मी के रूप में मर्ज किया जाए तथा स्थाई नियुक्तियों की आड़ में उन्हें नौकरी से निकालने की साजिश बन्द की जाए। ठेका ,आउटसोर्स ,कैजुअल, मल्टी टास्क ,मल्टी पर्पज व फिक्स टर्म मजदूरों के लिए छुट्टियों, पैन्शन, ग्रेच्युटी, ई.पी.एफ.,ई.एस.आई. ,मेडिकल , बोनस, ओवर टाईम वेतन, श्रम कानून व आठ घंटे की ड्यूटी आदि सभी प्रकार की सुविधाएं लागू की जाएं। सन् 1957 के 15वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिशों, सन् 1992 के रेप्टाकोस ब्रेट एंड कम्पनी लिमिटेड के संदर्भ में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए सम्मानजनक वेतन हेतु पारित आदेश तथा जस्टिस माधुर की अध्यक्षता में बने 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों के मध्यनज़र ठेका, आउटसोर्स, कैजुअल, मल्टी टास्क, मल्टीपर्पज व फिक्स टर्म मजदूरों को 26.000 न्यूनतम वेतन दिया जाए। ठेका आउटसोर्स, कैजुअल, मल्टी टास्क, मल्टीपर्पज व फिक्स टर्म मजदूरों का वेतन हर महीने 7 तारीख से पहले सुनिश्चित किया जाए। ठेकेदार बदलने पर ठेका, आउटसोर्स व फिक्स टर्म मज़दूरों को न बदला जाए व उनकी सेवाएं निरंतर जारी रखी जाएं। स्थाई अथवा बारहमासी प्रकृति के कार्यों में ठेका, आउटसोर्स, कैजुअल, मल्टी टास्क, मल्टी पर्पज व फिक्स टर्म के बजाए नियमित भर्ती की जाए।
शिमला , 30 सितंबर [ विशाल सूद ] ! सीटू राष्ट्रीय जनरल काउंसिल के आह्वान पर ठेका, आउटसोर्स, कैजुअल, मल्टी टास्क, मल्टी पर्पज व फिक्स टर्म कर्मियों की मांगों को लेकर सीटू राज्य कमेटी हिमाचल प्रदेश द्वारा जिला व ब्लॉक मुख्यालयों पर जोरदार प्रदर्शन किए गए। प्रदेशभर में हुए प्रदर्शनों में हजारों मजदूरों ने भाग लिया। इसी कड़ी में शिमला के डीसी ऑफिस के बाहर भी सीटू ने नारेबाजी की और प्रदर्शन किया।
विजेंद्र मेहरा, रमाकांत मिश्रा, बालक राम, विनोद बिरसांटा, प्रताप, विक्रम, दलीप, पंकज, वीरेंद्र लाल, नोख राम, सीता राम, निशा, सरीना, सुरेंद्रा, उमा, प्रवीण, सन्नी, चमन, कृतिका, राम प्रकाश, पाला राम, दलविंद्र, शिव राम, अनिल शर्मा, अत्तर सिंह, विवेक कश्यप, रंजीव कुठियाला सहित आईजीएमसी, कमला नेहरू, अटल इंस्टीट्यूट चम्याना, मेंटल रिहैबिलिटेशन सेंटर अस्पतालों, छः सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांटों, सैहब, कालीबाड़ी, विशाल मेगामार्ट, बॉर्डर रोड़ ऑर्गेनाइजेशन से संबंधित ठेका,कैजुअल व आउटसोर्स कर्मियों सहित होटल, तहबजारी, मिड डे मील, गाइड यूनियन आदि से जुड़े मजदूरों ने भारी संख्या में भाग लिया।
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सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने कहा है कि* सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों व प्रतिष्ठानों, निजी तथा सरकारी सेवाओं में कार्यरत ठेका ,आउटसोर्स, कैजुअल ,मल्टी टास्क, मल्टी पर्पज व फिक्स टर्म मजदूरों को आमतौर पर समान और एक जैसा काम करने के बावजूद नियमित मजदूरों से बहुत कम वेतन दिया जाता है।
उन्हें कानूनी रूप से मिलने वाली सामाजिक सुरक्षा व आय लाभों से वंचित रखा जाता है। ठेका ,आउटसोर्स,कैजुअल ,मल्टी टास्क, मल्टी पर्पज व फिक्स टर्म मजदूरों की भर्ती में एक ओर राजनीतिक नेताओं, सरकारी अधिकारियों व कंपनियों की कमीशनखोरी बढ़ी है वहीं दूसरी ओर इन कर्मचारियों पर शोषण का शिकंजा मजबूत हुआ है। इन कर्मचारियों का भारी शोषण हो रहा है।
इन कर्मचारियों को स्थाई कर्मचारियों के मुकाबले बेहद कम वेतन दिया जा रहा है। कर्मचारियों से 8 के बजाए 12 घंटे कार्य लिया जाता है। इनके लिये इपीएफ, ईएसआई, ग्रेच्युटी, पेंशन, बोनस, छुट्टियों आदि की सुविधा लागू नहीं की जाती है। इनके लिए मेडिकल सुविधा कर कोई प्रावधान नहीं है। इन्हें समय पर वेतन भी नहीं मिलता है।
कई बार कई महीनों के उपरान्त यह वेतन मिलता है। इनके लिए ईपीएफ, ई. एस. आई. के दोनों हिस्से भी कई बार ठेका व आउटसोर्स कर्मियों के वेतन से ही काटे जाते हैं। श्रम कानून लागू करने की मांग पर इन्हें अपनी नौकरी तक से हाथ धोना पड़ता है। हि.प्र.में लगभग 30 हजार आउटसोर्स कर्मी, हजारों ठेका कर्मी, मल्टी टास्क, मल्टी पर्पज, फिक्स टर्म कर्मी राज्य सेवाओं में कार्यरत है। केन्द्र सरकार के विभिन्न विभागों के अधीन कार्यरत ऐसे कर्मियों की संख्या भी हि. प्र. में हजारों में है।
केंद्र की मोदी सरकार के पिछले दस वर्ष के कार्यकाल में स्थाई नौकरियों में भारी कटौती हुई है तथा कॉन्ट्रैक्ट, आउटसोर्स, फिक्स टर्म प्रणाली पर रोजगार का बोलबाला बढ़ा है। इस से कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा खतरे में पड़ी है। हिमाचल प्रदेश की भूतपूर्व भाजपा सरकार आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए पॉलिसी बनाने का वायदा कर इन्हें ठगती रही व वर्तमान कांग्रेस सरकार भी इन कर्मचारियों के प्रति संवेदनहीन रही है व इन्हें नौकरी से निकालने की साजिश रचती रही है।
हि. प्र. सरकार द्वारा सरकारी संस्थानों व सेवाओं में मल्टी टास्क व मल्टी पर्पज के आधार पर कर्मियों को न्यूनतम वेतन से भी बेहद कम साढ़े चार हजार से लेकर छः हजार रुपए पर नियुक्त करना उसके शोषणकारी चरित्र को दर्शाता है।
उन्होंने मांग की है कि ठेका, आउटसोर्स कैजुअल मल्टी टास्क, मल्टीपर्पज व फिक्स टर्म मज़दूरों के लिए श्रेणी अनुसार न्यूनतम वेतन लागू किया जाए। प्रदेश में ठेका, आउटसोर्स, कैजुअल, मल्टी टास्क, मल्टीपर्पज व फिक्स टर्म मज़दूरों को नियमित करने के लिए तुरन्त ठोस नीति बनाई जाए।
ठेका, आउटसोर्स, कैजुअल, मल्टी टास्क, मल्टी पर्पज व फिक्स टर्म मजदूरों को सुप्रीम कोर्ट के 26 अक्टूबर 2016 के फैसले के अनुसार समान काम का समान वेतन दिया जाए। ठेका, आउटसोर्स, कैजुअल, मल्टी टास्क, मल्टी पर्पज व फिक्स टर्म पर भर्ती करने की प्रथा को बन्द किया जाए व भविष्य में सभी विभागों में स्थाई भर्तियां की जाएं। पहले से कार्यरत ठेका, आउटसोर्स,कैजुअल, मल्टी टास्क,मल्टी पर्पज व फिक्स टर्म मजदूरों को ही विभिन्न विभागों में स्थाई कर्मी के रूप में मर्ज किया जाए तथा स्थाई नियुक्तियों की आड़ में उन्हें नौकरी से निकालने की साजिश बन्द की जाए।
ठेका ,आउटसोर्स ,कैजुअल, मल्टी टास्क ,मल्टी पर्पज व फिक्स टर्म मजदूरों के लिए छुट्टियों, पैन्शन, ग्रेच्युटी, ई.पी.एफ.,ई.एस.आई. ,मेडिकल , बोनस, ओवर टाईम वेतन, श्रम कानून व आठ घंटे की ड्यूटी आदि सभी प्रकार की सुविधाएं लागू की जाएं। सन् 1957 के 15वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिशों, सन् 1992 के रेप्टाकोस ब्रेट एंड कम्पनी लिमिटेड के संदर्भ में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए सम्मानजनक वेतन हेतु पारित आदेश तथा जस्टिस माधुर की अध्यक्षता में बने 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों के मध्यनज़र ठेका, आउटसोर्स, कैजुअल, मल्टी टास्क, मल्टीपर्पज व फिक्स टर्म मजदूरों को 26.000 न्यूनतम वेतन दिया जाए। ठेका आउटसोर्स, कैजुअल, मल्टी टास्क, मल्टीपर्पज व फिक्स टर्म मजदूरों का वेतन हर महीने 7 तारीख से पहले सुनिश्चित किया जाए।
ठेकेदार बदलने पर ठेका, आउटसोर्स व फिक्स टर्म मज़दूरों को न बदला जाए व उनकी सेवाएं निरंतर जारी रखी जाएं। स्थाई अथवा बारहमासी प्रकृति के कार्यों में ठेका, आउटसोर्स, कैजुअल, मल्टी टास्क, मल्टी पर्पज व फिक्स टर्म के बजाए नियमित भर्ती की जाए।
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