जब सीपीएस का कोई काम नहीं है तो क्यों परेशान है सरकार जो पैसा सीपीएस बचाने में उड़ाया जा रहा है उससे हो सकते हैं विकास के काम
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शिमला , 06 दिसंबर ! पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने शिमला से जारी बयान में कहा कि प्रदेश के मुखिया हिमाचल के विकास और जनहित के बजाय सीपीएस बचाने में जीजान लगा रहे हैं। हाईकोर्ट द्वारा सीपीएस को हटाने के आदेश देने के बाद भी सरकार उन्हें बचाने की कोशिश में लगी है और प्रदेश के विकास में खर्च किए जा सकने वाला बजट वकीलों को हायर करने में खर्च किया जा रहा है। सरकार का यह रवैया दुर्भाग्यपूर्ण हैं। जिससे प्रदेश के संसाधन और ऊर्जा सरकार की जिद्द के कारण अन्यत्र बर्बाद हो रहे हैं। प्रदेश के हितों के बजाय मित्रों के हितों पर करोड़ों लुटाना किसी भी विजनरी मुख्यमंत्री का काम नहीं हो सकता है। प्रदेश में प्रशिक्षु डॉक्टर्स को चार-चार महीनें से स्टाइपेंड नहीं मिल रहा है। वह लेक्चर थियेटर में पढ़ने और अस्पताल में मरीजों के इलाज करने के बजाय सड़कों पर धरना दे रहे हैं लेकिन सरकार सारे काम रोक कर वकीलों की फीस भर रही है। इसी से सरकार की प्राथमिकता का पता चलता है कि सरकार के लिए प्रदेश का हित नहीं अपनी और मित्रों की कुर्सी है। जयराम ठाकुर ने कहा कि जब माननीय उच्च न्यायालय ने सीपीएस की नियुक्ति को अवैध ठहराते हुए उन्हें तत्काल प्रभाव से हटाने और उनकी सभी सुविधाएं छीनेने के आदेश दिए तो फिर सरकार उन्हें बचाने के लिए करोड़ों रुपए क्यों उड़ा रही है। इस फैसले में माननीय न्यायाधीश महोदय का कथन ‘यह पद सार्वजनिक सम्पत्ति पर कब्जा है और सभी सुविधाएँ तत्काल प्रभाव से वापस ली जानी चाहिए’ और भी महत्वपूर्ण हैं। इतने कठोर निर्णय के बाद भी सरकार सीपीएस को बचाना चाहती है। उन्होंने कहा कि जिस एक्ट के तहत सीपीएस की नियुक्ति की गई थी बाद में न्यायालय द्वारा उसे भी निरस्त कर दिया गया है। इसके अलावा सरकार द्वारा हाई कोर्ट में पहले ही बताया जा चुका है कि सीपीएस के द्वारा कोई फाइल नहीं देखी जा रही है, कोई विधाई कार्य भी नहीं किया जा रहा है। जब वह कुछ कार्य कर ही नहीं रहे हैं, उनका जनहित में कोई उपयोग ही नहीं है तो सरकार उनकी नियुक्ति में करोड़ो रुपए खर्च करने के बाद अब उन्हें बचाने के लिए फिर से करोड़ो रुपए क्यों पानी में बहा रही है। मुख्यमंत्री को समझना चाहिए कि उनकी गलती को हाई कोर्ट ने सुधार दी है। इसलिए जनहित के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पैसे उन्हें इस तरह से बर्बाद नहीं करना चाहिए। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि अब तक सरकार इस मामले में सिर्फ लीगल फीस के रूप में लगभग दस करोड़ से ज़्यादा रुपए खर्च कर चुकी है और आगे भी यह सिलसिला रुकने वाला नहीं है। जबकि सरकार दो साल से सेंट्रल यूनिवर्सिटी के ज़मीन के पैसे जमा नहीं करवा पाई है। जिसकी वजह से सेंट्रल यूनिवर्सिटी का कैंपस नहीं बन पा रहा है। हिम केयर का बजट नहीं दिया जा रहा है। सहारा की पेंशन और शगुन का बजट नहीं दिया जा रहा है। बीमार इलाज को तरस रहे हैं, दवाई और जांच के लिए भटक रहे हैं। मेडिकल स्टूडेंट्स स्टाइपेंड के लिए तरस रहे हैं। कर्मचारी अपने मेडिकल बिल के लिए भटक रहे हैं, पेंशनर्स पेंशन की राह देख रहे हैं और इतने महत्वपूर्ण कामों को छोड़कर सरकार सीपीएस बचाने में जीजान से जुटी हुई है।
शिमला , 06 दिसंबर ! पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने शिमला से जारी बयान में कहा कि प्रदेश के मुखिया हिमाचल के विकास और जनहित के बजाय सीपीएस बचाने में जीजान लगा रहे हैं। हाईकोर्ट द्वारा सीपीएस को हटाने के आदेश देने के बाद भी सरकार उन्हें बचाने की कोशिश में लगी है और प्रदेश के विकास में खर्च किए जा सकने वाला बजट वकीलों को हायर करने में खर्च किया जा रहा है।
सरकार का यह रवैया दुर्भाग्यपूर्ण हैं। जिससे प्रदेश के संसाधन और ऊर्जा सरकार की जिद्द के कारण अन्यत्र बर्बाद हो रहे हैं। प्रदेश के हितों के बजाय मित्रों के हितों पर करोड़ों लुटाना किसी भी विजनरी मुख्यमंत्री का काम नहीं हो सकता है। प्रदेश में प्रशिक्षु डॉक्टर्स को चार-चार महीनें से स्टाइपेंड नहीं मिल रहा है।
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वह लेक्चर थियेटर में पढ़ने और अस्पताल में मरीजों के इलाज करने के बजाय सड़कों पर धरना दे रहे हैं लेकिन सरकार सारे काम रोक कर वकीलों की फीस भर रही है। इसी से सरकार की प्राथमिकता का पता चलता है कि सरकार के लिए प्रदेश का हित नहीं अपनी और मित्रों की कुर्सी है।
जयराम ठाकुर ने कहा कि जब माननीय उच्च न्यायालय ने सीपीएस की नियुक्ति को अवैध ठहराते हुए उन्हें तत्काल प्रभाव से हटाने और उनकी सभी सुविधाएं छीनेने के आदेश दिए तो फिर सरकार उन्हें बचाने के लिए करोड़ों रुपए क्यों उड़ा रही है। इस फैसले में माननीय न्यायाधीश महोदय का कथन ‘यह पद सार्वजनिक सम्पत्ति पर कब्जा है और सभी सुविधाएँ तत्काल प्रभाव से वापस ली जानी चाहिए’ और भी महत्वपूर्ण हैं।
इतने कठोर निर्णय के बाद भी सरकार सीपीएस को बचाना चाहती है। उन्होंने कहा कि जिस एक्ट के तहत सीपीएस की नियुक्ति की गई थी बाद में न्यायालय द्वारा उसे भी निरस्त कर दिया गया है। इसके अलावा सरकार द्वारा हाई कोर्ट में पहले ही बताया जा चुका है कि सीपीएस के द्वारा कोई फाइल नहीं देखी जा रही है, कोई विधाई कार्य भी नहीं किया जा रहा है।
जब वह कुछ कार्य कर ही नहीं रहे हैं, उनका जनहित में कोई उपयोग ही नहीं है तो सरकार उनकी नियुक्ति में करोड़ो रुपए खर्च करने के बाद अब उन्हें बचाने के लिए फिर से करोड़ो रुपए क्यों पानी में बहा रही है। मुख्यमंत्री को समझना चाहिए कि उनकी गलती को हाई कोर्ट ने सुधार दी है। इसलिए जनहित के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पैसे उन्हें इस तरह से बर्बाद नहीं करना चाहिए।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि अब तक सरकार इस मामले में सिर्फ लीगल फीस के रूप में लगभग दस करोड़ से ज़्यादा रुपए खर्च कर चुकी है और आगे भी यह सिलसिला रुकने वाला नहीं है। जबकि सरकार दो साल से सेंट्रल यूनिवर्सिटी के ज़मीन के पैसे जमा नहीं करवा पाई है। जिसकी वजह से सेंट्रल यूनिवर्सिटी का कैंपस नहीं बन पा रहा है।
हिम केयर का बजट नहीं दिया जा रहा है। सहारा की पेंशन और शगुन का बजट नहीं दिया जा रहा है। बीमार इलाज को तरस रहे हैं, दवाई और जांच के लिए भटक रहे हैं। मेडिकल स्टूडेंट्स स्टाइपेंड के लिए तरस रहे हैं। कर्मचारी अपने मेडिकल बिल के लिए भटक रहे हैं, पेंशनर्स पेंशन की राह देख रहे हैं और इतने महत्वपूर्ण कामों को छोड़कर सरकार सीपीएस बचाने में जीजान से जुटी हुई है।
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