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शिमला , 23 जुलाई [ विशाल सूद ] ! सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने कहा है कि केंद्रीय बजट बेरोजगारी, महंगाई, अमीरी और गरीबी में बढ़ती असमानता, घटते निवेश व सिकुड़ती अर्थव्यवस्था का समाधान निकालने में पूरी तरह विफ़ल रहा है। बजट अर्थव्यस्था को विस्तार देने में पूरी तरह विफल रहा है। इस से भविष्य में जनता के दुखों व बेरोजगारी में बढ़ोतरी होना तय है। बजट मजदूर कर्मचारी किसान व आम जनता विरोधी है। बजट पूंजीपतियों को रियायतें देने वाला है। मजदूरों की 26 हज़ार रुपये न्यूनतम वेतन की मांग को अनदेखा किया गया है। बजट कैज़ुअल, टेम्परेरी, ठेका, आउटसोर्स, कॉन्ट्रैक्ट, मल्टी टास्क, मल्टी परपज, फिक्स टर्म कर्मियों व अन्य कच्चे रोज़गार के नियमितीकरण के सवाल पर खामोश है। आंगनबाड़ी, आशा, मिड डे मील व अन्य योजना कर्मियों को नियमित करने पर बजट खामोश है। बजट ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के नाम पर मजदूर विरोधी चार लेबर कोडों को लादने की प्रक्रिया में अग्रसर है। यह बजट सार्वजनिक उपक्रमों व सेवाओं तथा मनरेगा आदि को कमजोर करने तथा नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन को लागू करने का क्रम है। खाद्य सब्सिडी को घटाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। यह बजट आंकड़ों के मकड़जाल के सिवाए कुछ नहीं है। बजट मजदूरों, योजना कर्मियों व अन्य सभी कर्मचारियों के लिए ऊंट के मुंह में जीरा डालने से ज़्यादा कुछ नहीं है। यह बजट पूंजीपति, बहुराष्ट्रीय कंपनी व अंतर्राष्ट्रीय वित्त पूंजी परस्त है व मजदूरों के खिलाफ है।
शिमला , 23 जुलाई [ विशाल सूद ] ! सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने कहा है कि केंद्रीय बजट बेरोजगारी, महंगाई, अमीरी और गरीबी में बढ़ती असमानता, घटते निवेश व सिकुड़ती अर्थव्यवस्था का समाधान निकालने में पूरी तरह विफ़ल रहा है। बजट अर्थव्यस्था को विस्तार देने में पूरी तरह विफल रहा है। इस से भविष्य में जनता के दुखों व बेरोजगारी में बढ़ोतरी होना तय है।
बजट मजदूर कर्मचारी किसान व आम जनता विरोधी है। बजट पूंजीपतियों को रियायतें देने वाला है। मजदूरों की 26 हज़ार रुपये न्यूनतम वेतन की मांग को अनदेखा किया गया है। बजट कैज़ुअल, टेम्परेरी, ठेका, आउटसोर्स, कॉन्ट्रैक्ट, मल्टी टास्क, मल्टी परपज, फिक्स टर्म कर्मियों व अन्य कच्चे रोज़गार के नियमितीकरण के सवाल पर खामोश है।
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आंगनबाड़ी, आशा, मिड डे मील व अन्य योजना कर्मियों को नियमित करने पर बजट खामोश है। बजट ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के नाम पर मजदूर विरोधी चार लेबर कोडों को लादने की प्रक्रिया में अग्रसर है। यह बजट सार्वजनिक उपक्रमों व सेवाओं तथा मनरेगा आदि को कमजोर करने तथा नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन को लागू करने का क्रम है। खाद्य सब्सिडी को घटाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
यह बजट आंकड़ों के मकड़जाल के सिवाए कुछ नहीं है। बजट मजदूरों, योजना कर्मियों व अन्य सभी कर्मचारियों के लिए ऊंट के मुंह में जीरा डालने से ज़्यादा कुछ नहीं है। यह बजट पूंजीपति, बहुराष्ट्रीय कंपनी व अंतर्राष्ट्रीय वित्त पूंजी परस्त है व मजदूरों के खिलाफ है।
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