- विज्ञापन (Article Top Ad) -
शिमला, 25 अगस्त, [ ब्यूरो रिपोर्ट ] ! सेब उत्पादक संघ हिमाचल प्रदेश का एक प्रतिनिधिमंडल सेब उत्पादक संघ के राज्य अध्यक्ष राकेश सिंघा तथा संजय चौहान की अध्यक्षता मे किसानों के कब्जे वाली जमीन की बेदखली को लेकर मुख्यमंत्री को मिला। इसमें करीब 350 के करीब किसानों ने भाग लिया। सरकार की ओर से इस बैठक में राजस्व, कानून व बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी, शिक्षा मंत्री श्री रोहित ठाकुर, राज्य वित आयोग के अध्यक्ष नंद लाल उपस्थित रहे। सेब उत्पादक संघ से संजय घमटा, जय सिंह जेहटा, कृष्ण ब्रामटा, ललित चौहान, नरिंदर चौहान, अशोक झोहटा, नरेश वर्मा, नरेंद्र चौहान, रोहित, शवन लाल, कुलभूषण रावत, रिंकू, रोशन लाल, किमटा, अश्वनी पांजटा, सुनिल चौहान, अजय दुलटा, नरिंद्र मेहता, काकू राजटा के अतिरिक्त दर्शन ठाकुर, पिंकू , सुनिल चौहान, बंसी लाल दगान आदि ने भाग लिया। प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री को अवगत करवाया कि प्रदेश मे किसानों के कब्जे में जो जमीन है उसको लेकर उच्च न्यायालय के आदेश के बाद बेदखली की कार्यवाही आरंभ कर दी गई। जिसको लेकर पूरे प्रदेश में लाखों परिवारों के ऊपर रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। इसमें अधिकतर गरीब परिवार शामिल है जिन्होने अपने रहने के लिए या तो मकान बनाए हैं या जमीन पर खेती कर अपना तथा अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। इसलिए यदि बेदखली की कार्यवाही जारी रहती है तो लाखों लोगों के सिर से छत तथा उनका रोजी रोटी का साधन छीन लिया जाएगा। वन संरक्षण कानून, 1980 के लागू होने के बाद से प्रदेश में वन भूमि के सारे अधिकार राज्य सरकार से छीन कर केंद्र सरकार के पास चले गए हैं। प्रदेश में आज करीब 70 प्रतिशत भूमि वन भूमि की श्रेणी में दर्ज की गई है तथा किसानों के पास कुल भूमि का करीब 14 प्रतिशत हिस्सा ही है। वन संरक्षण कानून, 1980 आने से पहले राज्य सरकार के पास अधिकार था कि वह वन और सरकारी भूमि नौतोड़ भूमि आबंटित कर सकती थी और इसके तहत नौतोड़ दिए जाते रहे हैं। परन्तु वन संरक्षण कानून, 1980 आने के पश्चात् अब राज्य सरकार भूमि आबंटित नही कर सकती है। वर्ष 2002 में तत्कालीन प्रदेश सरकार ने किसानों के कब्जे में जमीन के नियमितीकरण के लिए एक नीति का निर्धारण कर जिन लोगों के कब्जे में जमीन है उनके कब्जों को नियमित किया जाएगा। उसके लिए भू राजस्व कानून की धारा 163(A) को जोड़ा गया। इसको लेकर प्रदेश भर में करीब 1, 66,000 आवेदन किए गए। इसके अतिरिक्त जब प्रदेश में जब सेटलमेंट हुआ तब भी लाखों लोगों को अवैध कब्जे के नोटिस थमाए गए थे तथा उन पर कार्यवाही चल रही है। परन्तु उसके पश्चात् आज तक किसी भी सरकार द्वारा इस मुद्दे पर कोई भी ठोस कदम नहीं उठाए गए तथा 2002 में सरकार द्वारा इस नियमितीकरण की नीति लाने के पश्चात् उच्च न्यायालय दाखिल मुकदमों के आधार पर दिए गए आदेशों के बाद कई बार बेदखली की कार्यवाही की जाती रही है। जिसमे प्रदेश भर में हजारों गरीब परिवारों की बेदखली की जाती रही है। इस प्रतिनिधिमंडल ने सरकार से मांग की है कि प्रदेश सरकार आने वाले विधानसभा सत्र में प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजे, जिसमें किसानों के कब्जे वाली जमीन के नियमितीकरण के लिए एक ठोस नीति निर्धारित की जाए तथा इसके लिए केंद्र सरकार से आग्रह किया जाए कि वन संरक्षण कानून, 1980 में उसी तर्ज पर संशोधन किया जाए जैसे कि केन्द्र सरकार ने दिसम्बर, 2023 में बड़े औद्योगिक और कॉरपोरेट घरानों को जंगल में उद्योग लगाने तथा खनन करने के लिए हजारों बीघा जमीन देने का प्रावधान किया गया है। इसमें औद्योगिक उत्पादन के साथ ही साथ कृषि तथा बागवानी को भी शामिल कर भूमिहीन तथा गरीब किसानों को कम से कम 5 बीघा तक भूमि देने का प्रावधान किया जाए। इसके साथ ही मांग की गई कि अभी तक प्रदेश में *अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006* के प्रावधानों के अनुसार अन्य परंपरागत वन निवासी जिसके अंतर्गत प्रदेश की अधिकांश जनता आती है के पक्ष में जमीन देने की कोई भी कार्यवाही नहीं हुई है। इस पर भी सरकार कार्यवाही कर भूमिहीन तथा गरीब किसानों को जमीन देने के लिए ठोस रूप से कार्यवाही करे। सरकार से प्रतिनिधिमंडल ने यह भी आग्रह किया कि उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त करने के लिए उच्च न्यायालय में हलफनामा दायर कर सरकार उचित कदम उठाए ताकि इस कार्यवाही पर रोक लगाई जा सके। वर्ष 2015 तथा 2019 में भी तत्कालीन सरकारों के द्वारा उच्च न्यायालय के आदेशों पर रोक लगाने के लिए उच्च न्यायालय में अर्जी दाखिल कर इस पर रोक लगाई गई थी। मुख्यमंत्री ने प्रदेश के लाखो परिवारों की रोजी रोटी से जुड़ी इस समस्या को समझते हुए उचित कार्यवाही करने के लिए कानूनी रूप से जो भी सम्भव हो सकेगा वो कदम उठाने का आश्वासन दिया तथा राजस्व तथा कानून मंत्री की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन करने का भी आश्वासन दिया है। ताकि प्रदेश में कब्जों के नियमितिकरण के लिए ठोस नीति का निर्धारण किया जा सके। इसके साथ ही कानूनी परामर्श के अनुसार उच्च न्यायालय में हस्तक्षेप का आश्वासन भी दिया गया।
शिमला, 25 अगस्त, [ ब्यूरो रिपोर्ट ] ! सेब उत्पादक संघ हिमाचल प्रदेश का एक प्रतिनिधिमंडल सेब उत्पादक संघ के राज्य अध्यक्ष राकेश सिंघा तथा संजय चौहान की अध्यक्षता मे किसानों के कब्जे वाली जमीन की बेदखली को लेकर मुख्यमंत्री को मिला।
इसमें करीब 350 के करीब किसानों ने भाग लिया। सरकार की ओर से इस बैठक में राजस्व, कानून व बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी, शिक्षा मंत्री श्री रोहित ठाकुर, राज्य वित आयोग के अध्यक्ष नंद लाल उपस्थित रहे। सेब उत्पादक संघ से संजय घमटा, जय सिंह जेहटा, कृष्ण ब्रामटा, ललित चौहान, नरिंदर चौहान, अशोक झोहटा, नरेश वर्मा, नरेंद्र चौहान, रोहित, शवन लाल, कुलभूषण रावत, रिंकू, रोशन लाल, किमटा, अश्वनी पांजटा, सुनिल चौहान, अजय दुलटा, नरिंद्र मेहता, काकू राजटा के अतिरिक्त दर्शन ठाकुर, पिंकू , सुनिल चौहान, बंसी लाल दगान आदि ने भाग लिया।
- विज्ञापन (Article Inline Ad) -
प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री को अवगत करवाया कि प्रदेश मे किसानों के कब्जे में जो जमीन है उसको लेकर उच्च न्यायालय के आदेश के बाद बेदखली की कार्यवाही आरंभ कर दी गई। जिसको लेकर पूरे प्रदेश में लाखों परिवारों के ऊपर रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। इसमें अधिकतर गरीब परिवार शामिल है जिन्होने अपने रहने के लिए या तो मकान बनाए हैं या जमीन पर खेती कर अपना तथा अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। इसलिए यदि बेदखली की कार्यवाही जारी रहती है तो लाखों लोगों के सिर से छत तथा उनका रोजी रोटी का साधन छीन लिया जाएगा।
वन संरक्षण कानून, 1980 के लागू होने के बाद से प्रदेश में वन भूमि के सारे अधिकार राज्य सरकार से छीन कर केंद्र सरकार के पास चले गए हैं। प्रदेश में आज करीब 70 प्रतिशत भूमि वन भूमि की श्रेणी में दर्ज की गई है तथा किसानों के पास कुल भूमि का करीब 14 प्रतिशत हिस्सा ही है। वन संरक्षण कानून, 1980 आने से पहले राज्य सरकार के पास अधिकार था कि वह वन और सरकारी भूमि नौतोड़ भूमि आबंटित कर सकती थी और इसके तहत नौतोड़ दिए जाते रहे हैं। परन्तु वन संरक्षण कानून, 1980 आने के पश्चात् अब राज्य सरकार भूमि आबंटित नही कर सकती है।
वर्ष 2002 में तत्कालीन प्रदेश सरकार ने किसानों के कब्जे में जमीन के नियमितीकरण के लिए एक नीति का निर्धारण कर जिन लोगों के कब्जे में जमीन है उनके कब्जों को नियमित किया जाएगा। उसके लिए भू राजस्व कानून की धारा 163(A) को जोड़ा गया। इसको लेकर प्रदेश भर में करीब 1, 66,000 आवेदन किए गए। इसके अतिरिक्त जब प्रदेश में जब सेटलमेंट हुआ तब भी लाखों लोगों को अवैध कब्जे के नोटिस थमाए गए थे तथा उन पर कार्यवाही चल रही है। परन्तु उसके पश्चात् आज तक किसी भी सरकार द्वारा इस मुद्दे पर कोई भी ठोस कदम नहीं उठाए गए तथा 2002 में सरकार द्वारा इस नियमितीकरण की नीति लाने के पश्चात् उच्च न्यायालय दाखिल मुकदमों के आधार पर दिए गए आदेशों के बाद कई बार बेदखली की कार्यवाही की जाती रही है। जिसमे प्रदेश भर में हजारों गरीब परिवारों की बेदखली की जाती रही है।
इस प्रतिनिधिमंडल ने सरकार से मांग की है कि प्रदेश सरकार आने वाले विधानसभा सत्र में प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजे, जिसमें किसानों के कब्जे वाली जमीन के नियमितीकरण के लिए एक ठोस नीति निर्धारित की जाए तथा इसके लिए केंद्र सरकार से आग्रह किया जाए कि वन संरक्षण कानून, 1980 में उसी तर्ज पर संशोधन किया जाए जैसे कि केन्द्र सरकार ने दिसम्बर, 2023 में बड़े औद्योगिक और कॉरपोरेट घरानों को जंगल में उद्योग लगाने तथा खनन करने के लिए हजारों बीघा जमीन देने का प्रावधान किया गया है। इसमें औद्योगिक उत्पादन के साथ ही साथ कृषि तथा बागवानी को भी शामिल कर भूमिहीन तथा गरीब किसानों को कम से कम 5 बीघा तक भूमि देने का प्रावधान किया जाए। इसके साथ ही मांग की गई कि अभी तक प्रदेश में *अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006* के प्रावधानों के अनुसार अन्य परंपरागत वन निवासी जिसके अंतर्गत प्रदेश की अधिकांश जनता आती है के पक्ष में जमीन देने की कोई भी कार्यवाही नहीं हुई है। इस पर भी सरकार कार्यवाही कर भूमिहीन तथा गरीब किसानों को जमीन देने के लिए ठोस रूप से कार्यवाही करे। सरकार से प्रतिनिधिमंडल ने यह भी आग्रह किया कि उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त करने के लिए उच्च न्यायालय में हलफनामा दायर कर सरकार उचित कदम उठाए ताकि इस कार्यवाही पर रोक लगाई जा सके। वर्ष 2015 तथा 2019 में भी तत्कालीन सरकारों के द्वारा उच्च न्यायालय के आदेशों पर रोक लगाने के लिए उच्च न्यायालय में अर्जी दाखिल कर इस पर रोक लगाई गई थी।
मुख्यमंत्री ने प्रदेश के लाखो परिवारों की रोजी रोटी से जुड़ी इस समस्या को समझते हुए उचित कार्यवाही करने के लिए कानूनी रूप से जो भी सम्भव हो सकेगा वो कदम उठाने का आश्वासन दिया तथा राजस्व तथा कानून मंत्री की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन करने का भी आश्वासन दिया है। ताकि प्रदेश में कब्जों के नियमितिकरण के लिए ठोस नीति का निर्धारण किया जा सके। इसके साथ ही कानूनी परामर्श के अनुसार उच्च न्यायालय में हस्तक्षेप का आश्वासन भी दिया गया।
- विज्ञापन (Article Bottom Ad) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 1) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 2) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 3) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 4) -