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भरमौर , 17 जून [ के एस प्रेमी ] ! पौराणिक परंपराओं के अनुसार जनजातीय जिला भरमौर के गद्दी समुदाय के लोग जो भेड़ बकरियां पालते है वे सदियों से अपनी भेड़ बकरियों को लेकर ऊंचे ऊंचे पहाड़ों बर्फीले रास्तों और कई खतरो का सामना करते हुए जनजातीय जिला लाहौल में पहुंचते है। माना जाता है कि जब भी जोत के रास्ते खुलते है तो इनके अराध्य देव इन्हे जाने की आज्ञा देते है। तभी ये भेड़ पालक अपनी भेड़ बकरियों के साथ लाहौल की तरफ प्रस्थान करते है। आपको बता दें कि इस बार जोत खुलते ही भेड़ पालक लाहौल के लिए निकल चुके है , और अब जोत को पार करके त्रिलोकी नाथ लाहौल की तरफ प्रस्थान कर रहे हैं। कुछ ही घंटो के सफर के बाद ये भेड़ पालक त्रिलोकी नाथ पहुंच जाएंगे और इनका लंबा सफर समाप्त हो जाएगा। बता दे कि यह भेड़ पालक अब अगले 6 महीने के लिए लाहौल में ही अपनी भेड़ बकरियों के साथ निवास करेंगे और जब 6 महीने बाद जब सर्दियां शुरू होने लगेंगी तो अपनी भेड़ बकरियां लेकर अपने अपने घरों को लोट जाएंगे। वीडियो में आप साफ तौर से देख सकते है की किस तरह से ये भेड़ पालक अपनी भेड़ बकरियों के साथ बर्फ से ढकी इन पहाड़ियों से होते हुए अपने गंतव्य की और बढ़ रहे है। इस दौरान बर्फ में इन्हे काफी दिक्कतों का भी सामना करना पड़ता है। बाबजूद इसके ये भेड़ पालक केलंग बजीर, मां मराली, मां बन्नी और भोले बाबा का नाम लेकर आगे बढ़ते है और जोत पार हुए त्रिलोकी नाथ मंदिर की तरफ पहुंचते हैं और ये सिलसिला हर वर्ष यूं ही चलता है।
भरमौर , 17 जून [ के एस प्रेमी ] ! पौराणिक परंपराओं के अनुसार जनजातीय जिला भरमौर के गद्दी समुदाय के लोग जो भेड़ बकरियां पालते है वे सदियों से अपनी भेड़ बकरियों को लेकर ऊंचे ऊंचे पहाड़ों बर्फीले रास्तों और कई खतरो का सामना करते हुए जनजातीय जिला लाहौल में पहुंचते है।
माना जाता है कि जब भी जोत के रास्ते खुलते है तो इनके अराध्य देव इन्हे जाने की आज्ञा देते है। तभी ये भेड़ पालक अपनी भेड़ बकरियों के साथ लाहौल की तरफ प्रस्थान करते है।
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आपको बता दें कि इस बार जोत खुलते ही भेड़ पालक लाहौल के लिए निकल चुके है , और अब जोत को पार करके त्रिलोकी नाथ लाहौल की तरफ प्रस्थान कर रहे हैं। कुछ ही घंटो के सफर के बाद ये भेड़ पालक त्रिलोकी नाथ पहुंच जाएंगे और इनका लंबा सफर समाप्त हो जाएगा।
बता दे कि यह भेड़ पालक अब अगले 6 महीने के लिए लाहौल में ही अपनी भेड़ बकरियों के साथ निवास करेंगे और जब 6 महीने बाद जब सर्दियां शुरू होने लगेंगी तो अपनी भेड़ बकरियां लेकर अपने अपने घरों को लोट जाएंगे।
वीडियो में आप साफ तौर से देख सकते है की किस तरह से ये भेड़ पालक अपनी भेड़ बकरियों के साथ बर्फ से ढकी इन पहाड़ियों से होते हुए अपने गंतव्य की और बढ़ रहे है। इस दौरान बर्फ में इन्हे काफी दिक्कतों का भी सामना करना पड़ता है। बाबजूद इसके ये भेड़ पालक केलंग बजीर, मां मराली, मां बन्नी और भोले बाबा का नाम लेकर आगे बढ़ते है और जोत पार हुए त्रिलोकी नाथ मंदिर की तरफ पहुंचते हैं और ये सिलसिला हर वर्ष यूं ही चलता है।
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