- विज्ञापन (Article Top Ad) -
मंडी , 06 मार्च ! हिमाचल प्रदेश में होली हर जिलों मे अलग तरीके से मनाई जाती है, लेकिन मंडी की होली बिल्कुल अलग है। यहां पर सभी लोग सेरी मंच पर एकत्रित होकर एक साथ होली मनाते हैं। डीजे की धुनों पर थिरकते हुए होली का आनंद हर युवा, बड़े व बच्चे लेते हैं। सोमवार को सुबह ही सेरी मंच पर युवा जुट गए और डीजे की धुनों पर जमकर थिरके।देशभर में जहां 8 मार्च को होली मनाई जाएगी वहीं मंडी में दो दिन पहले ही इसका आयोजन हुआ है। राज देवता माधो राय जलेब के साथ इसका आगाज होता है। छोटी काशी की होली राजा और प्रजा के बीच आपसी सद्भाव और सौहार्द की प्रतीक भी है। यहां कार्यक्रम का आयोजन एक निजी कंप्यूटर संस्थान करता है। मंडी की होली की खासियत यह है कि यहां गैरों पर रंग नहीं डाला जाता, बिना जान-पहचान के किसी पर रंग नहीं डालते और महिलाएं भी बाजार में होली खेलने आती हैं। बता दें राज देवता माधोराय की भागीदारी तो रियासतकाल से ही होली में रही है। उस जमाने में मंदिर के प्रांगण में पीतल के बड़े बर्तनों में रंग घोला जाता था। राजा अपने दरबारियों के साथ यहां होली खेलते थे। यही नहीं राजा घोड़े पर सवार होकर प्रजा के बीच भी होली खेलने जाते थे। उस समय स्थानीय स्तर पर प्राकृतिक रंगों की महक से होली की रंगत सराबोर होती थी। राजा और प्रजा का मेल आज भी जारी है। राजदेवता माधो राय जनता के बीच जाते हैं। https://youtube.com/playlist?list=PLfNkwz3upB7OrrnGCDxBewe7LwsUn1bhs
मंडी , 06 मार्च ! हिमाचल प्रदेश में होली हर जिलों मे अलग तरीके से मनाई जाती है, लेकिन मंडी की होली बिल्कुल अलग है। यहां पर सभी लोग सेरी मंच पर एकत्रित होकर एक साथ होली मनाते हैं। डीजे की धुनों पर थिरकते हुए होली का आनंद हर युवा, बड़े व बच्चे लेते हैं।
सोमवार को सुबह ही सेरी मंच पर युवा जुट गए और डीजे की धुनों पर जमकर थिरके।देशभर में जहां 8 मार्च को होली मनाई जाएगी वहीं मंडी में दो दिन पहले ही इसका आयोजन हुआ है। राज देवता माधो राय जलेब के साथ इसका आगाज होता है। छोटी काशी की होली राजा और प्रजा के बीच आपसी सद्भाव और सौहार्द की प्रतीक भी है।
- विज्ञापन (Article Inline Ad) -
यहां कार्यक्रम का आयोजन एक निजी कंप्यूटर संस्थान करता है। मंडी की होली की खासियत यह है कि यहां गैरों पर रंग नहीं डाला जाता, बिना जान-पहचान के किसी पर रंग नहीं डालते और महिलाएं भी बाजार में होली खेलने आती हैं। बता दें राज देवता माधोराय की भागीदारी तो रियासतकाल से ही होली में रही है। उस जमाने में मंदिर के प्रांगण में पीतल के बड़े बर्तनों में रंग घोला जाता था।
राजा अपने दरबारियों के साथ यहां होली खेलते थे। यही नहीं राजा घोड़े पर सवार होकर प्रजा के बीच भी होली खेलने जाते थे। उस समय स्थानीय स्तर पर प्राकृतिक रंगों की महक से होली की रंगत सराबोर होती थी। राजा और प्रजा का मेल आज भी जारी है। राजदेवता माधो राय जनता के बीच जाते हैं।
- विज्ञापन (Article Bottom Ad) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 1) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 2) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 3) -
- विज्ञापन (Sidebar Ad 4) -