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शिमला, 08 अपील [ विशाल सूद ] ! भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (आईआईएएस), शिमला में आज “भारतीय रंगमंच में नायिका प्रतिरूप: स्त्रीवादी विमर्श के आधुनिक परिप्रेक्ष्य” विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ हुआ। ऐतिहासिक राष्ट्रपति निवास परिसर में आयोजित इस संगोष्ठी का उद्घाटन दीप प्रज्वलन के साथ हुआ।कार्यक्रम की शुरुआत में संस्थान के सचिव श्री मेहर चंद नेगी ने उद्घाटन वक्तव्य दिया और सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया। उसके बाद संगोष्ठी की संयोजिका और संस्थान की फेलो डॉ. शमीनाज़ खान ने विषय की पृष्ठभूमि प्रस्तुत करते हुए बताया कि यह संगोष्ठी ‘नाट्यशास्त्र’ में प्रतिपादित नायिका भेद की परंपरा और उसके आधुनिक स्त्रीवादी पुनर्पाठ पर केंद्रित है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि किस प्रकार पारंपरिक प्रतिरूप आज के सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भों में पुनः परिभाषित हो रहे हैं। प्रख्यात संस्कृत विद्वान प्रोफेसर राधावल्लभ त्रिपाठी (पूर्व कुलपति, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली) ने उद्घाटन सत्र में ऑनलाइन मुख्य वक्तव्य देते हुए कहा कि “नायिका भेद” की अवधारणा केवल नाटकीय अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि भारतीय समाज में स्त्री की भूमिका की संरचना से भी जुड़ी है। उन्होंने विशद उदाहरणों के साथ स्पष्ट किया कि पारंपरिक नायिकाएं आधुनिक मंचन में किस प्रकार नवीन रूप ले रही हैं। उद्घाटन सत्र का संचालन संस्थान के जनसम्पर्क अधिकारी अखिलेश पाठक ने किया और धन्यवाद ज्ञापन श्री प्रेम चंद, सलाहकार (पुस्तकालय) द्वारा प्रस्तुत किया गया।पहले दिन के शेष सत्रों में प्रो. ओ. पी. शर्मा, प्रो. उमा अनंतानी, प्रो. आर. सी. सिन्हा की अध्यक्षता में विभिन्न विद्वानों द्वारा शोधपत्र प्रस्तुत किए गए। इनमें संस्कृत, इतिहास, साहित्य, और नाट्यकला के विद्वानों ने पारंपरिक नायिकाओं के समकालीन पुनर्पाठ पर विमर्श किया। सत्रों में भारत के विभिन्न राज्यों से आए विद्वानों के साथ-साथ ऑनलाइन प्रतिभागिता भी रही। यह संगोष्ठी 9 अप्रैल को समापन सत्र के साथ संपन्न होगी, जिसमें प्रोफेसर सचिदानंद मोहंती एवं अन्य विशेषज्ञ अपने विचार साझा करेंगे।
शिमला, 08 अपील [ विशाल सूद ] ! भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (आईआईएएस), शिमला में आज “भारतीय रंगमंच में नायिका प्रतिरूप: स्त्रीवादी विमर्श के आधुनिक परिप्रेक्ष्य” विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ हुआ। ऐतिहासिक राष्ट्रपति निवास परिसर में आयोजित इस संगोष्ठी का उद्घाटन दीप प्रज्वलन के साथ हुआ।कार्यक्रम की शुरुआत में संस्थान के सचिव श्री मेहर चंद नेगी ने उद्घाटन वक्तव्य दिया और सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया। उसके बाद संगोष्ठी की संयोजिका और संस्थान की फेलो डॉ. शमीनाज़ खान ने विषय की पृष्ठभूमि प्रस्तुत करते हुए बताया कि यह संगोष्ठी ‘नाट्यशास्त्र’ में प्रतिपादित नायिका भेद की परंपरा और उसके आधुनिक स्त्रीवादी पुनर्पाठ पर केंद्रित है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि किस प्रकार पारंपरिक प्रतिरूप आज के सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भों में पुनः परिभाषित हो रहे हैं।
प्रख्यात संस्कृत विद्वान प्रोफेसर राधावल्लभ त्रिपाठी (पूर्व कुलपति, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली) ने उद्घाटन सत्र में ऑनलाइन मुख्य वक्तव्य देते हुए कहा कि “नायिका भेद” की अवधारणा केवल नाटकीय अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि भारतीय समाज में स्त्री की भूमिका की संरचना से भी जुड़ी है। उन्होंने विशद उदाहरणों के साथ स्पष्ट किया कि पारंपरिक नायिकाएं आधुनिक मंचन में किस प्रकार नवीन रूप ले रही हैं।
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उद्घाटन सत्र का संचालन संस्थान के जनसम्पर्क अधिकारी अखिलेश पाठक ने किया और धन्यवाद ज्ञापन श्री प्रेम चंद, सलाहकार (पुस्तकालय) द्वारा प्रस्तुत किया गया।पहले दिन के शेष सत्रों में प्रो. ओ. पी. शर्मा, प्रो. उमा अनंतानी, प्रो. आर. सी. सिन्हा की अध्यक्षता में विभिन्न विद्वानों द्वारा शोधपत्र प्रस्तुत किए गए। इनमें संस्कृत, इतिहास, साहित्य, और नाट्यकला के विद्वानों ने पारंपरिक नायिकाओं के समकालीन पुनर्पाठ पर विमर्श किया। सत्रों में भारत के विभिन्न राज्यों से आए विद्वानों के साथ-साथ ऑनलाइन प्रतिभागिता भी रही। यह संगोष्ठी 9 अप्रैल को समापन सत्र के साथ संपन्न होगी, जिसमें प्रोफेसर सचिदानंद मोहंती एवं अन्य विशेषज्ञ अपने विचार साझा करेंगे।
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