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शिमला ! हिमाचल प्रदेश में विधानसभा द्वारा विभिन्न पदों पर भर्ती प्रक्रिया को लेकर गंभीर अनियमितताओं के आरोप सामने आए हैं। इन पदों में रिपोर्टर, क्लर्क, कनिष्ठ अनुशासनिक अधिकारी, कनिष्ठ कार्यालय सहायक (आईटी), आशुलिपिक, ड्राइवर, फ्रेशर, चौकीदार और माली जैसे पद शामिल हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) हिमाचल प्रदेश के प्रदेश सह मंत्री दिशांत जरयाल ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए इन अनियमितताओं की निष्पक्ष जांच की मांग की गई है। सबसे पहले, इस भर्ती प्रक्रिया में पक्षपात के आरोप सामने आए हैं। विभिन्न पदों पर चयनित उम्मीदवारों के नाम सत्तारूढ़ दल के प्रभावशाली नेताओं के नजदीकी क्षेत्रों से हैं। उदाहरण के तौर पर, रिपोर्टर के चार पदों में से तीन पदों पर चंबा जिले के उम्मीदवारों का चयन किया गया, जिनमें से दो उम्मीदवार विधानसभा अध्यक्ष के निर्वाचन क्षेत्र से हैं। इसी प्रकार, क्लर्क के दस पदों में से दो पद विधानसभा अध्यक्ष के निर्वाचन क्षेत्र और तीन पद मुख्यमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र से भरे गए हैं। इसके अलावा, प्रश्नपत्र निर्माण से पहले ही उत्तर कुंजियों का निर्धारण कर लिया गया था, जो कि एक गंभीर अनियमितता है। ड्राइवर पद को छोड़कर बाकी सभी परीक्षाओं में यह पाया गया कि उत्तर कुंजी पहले से तैयार थी और प्रश्नपत्र उसी के आधार पर बनाए गए। सभी उत्तर कुंजियों में समानता थी और उनमें कोई अंतर नहीं था। यह स्थिति तब ही संभव हो सकती है जब पहले से उत्तर कुंजी तैयार की गई हो और फिर प्रश्नपत्र बनाया गया हो। परिणामों की घोषणा में भी अनावश्यक देरी की गई। सत्यापन प्रक्रिया जुलाई 2024 में पूरी हो गई थी, लेकिन अंतिम परिणाम छह महीने बाद घोषित किए गए। इस देरी ने भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।इसके अतिरिक्त, चयनित उम्मीदवारों को पहले निजी रूप से परिणाम की सूचना दी गई, जबकि आधिकारिक वेबसाइट पर जानकारी अपलोड करने में देरी हुई। यह प्रक्रिया की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगाती है। जहां प्रदेश सरकार प्रदेश के युवाओं को रोजगार देने में नाकाम तो रही वहीं मुख्य मंत्री ने अपनी पत्नी और उपमुख्य मंत्री ने अपनी बेटी को रोजगार देने के साथ साथ इस भर्ती में धांधली करके अपने भाई भतीजे और अपने चहेतों को रोजगार देने का काम किया न्यायिक जांच में यदि सरकार के मुख्य स्तंभ भी संलिप्त पाए गए तो *अभाविप का सरकार से सीधा प्रश्न है कि क्या हमीरपुर चयन आयोग की भांति प्रदेश मुख्यमंत्री करप्शन पर zero tolerance formula apply करते हुए खुद के पद से इस्तीफा देने की घोषणा करेंगे। राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप भी इस भर्ती प्रक्रिया पर लगे हैं। कुछ चयनित उम्मीदवारों के सत्तारूढ़ दल के नेताओं और आईटी सेल से जुड़े होने की खबरें सामने आई हैं। चयन के बाद इन उम्मीदवारों ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर सत्तारूढ़ दल के पेजों को अनफॉलो कर दिया। मुख्यमंत्री की पत्नी, जो स्वयं एक विधायक हैं, के चालक के पुत्र के चयन की खबरें भी आई हैं, जिससे राजनीतिक प्रभाव की संभावना को बल मिला है। एक और गंभीर आरोप यह है कि कुछ उम्मीदवार टाइपिंग परीक्षा में स्वयं उपस्थित नहीं हुए, बल्कि उनकी जगह किसी और को भेजा गया। फिर भी उन्हें योग्य घोषित कर दिया गया। महत्वपूर्ण पदों के लिए टाइपिंग टेस्ट में असफल रहे कई उम्मीदवारों को भी योग्य करार दिया गया, जिससे पूरी प्रक्रिया की निष्पक्षता संदिग्ध हो गई है। जब राज्य चयन आयोग की भर्तियों में अनियमिताएं आई तो भ्रष्टाचार पर *zero tolerance formula* (शून्य सहनशीलता)प्रदेश के मुखिया द्वारा अपनाया जाता है । जो चयन आयोग उस समय भंग किया गया अभी तक भी इस आयोग के संचालन में प्रदेश सरकार विफल रही है। विद्यार्थी परिषद की मांग है हाल ही में विधानसभा में हुई फर्जी भर्ती की न्यायिक जांच की जाए और इस जांच में संलिप्त पाए जाने वाले सभी दोषियों पर उचित कार्यवाही करें। इन सभी आरोपों से यह स्पष्ट होता है कि यह भर्ती प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 में निहित समानता और निष्पक्षता के अधिकारों का उल्लंघन करती है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद हिमाचल प्रदेश इन अनियमितताओं की गहन और निष्पक्ष जांच की मांग करता है ताकि योग्य उम्मीदवारों को न्याय मिल सके और जनता का विश्वास बहाल किया जा सके। प्रदेश के युवाओं के भविष्य के साथ इस प्रकार का खिलवाड़ किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद हिमाचल प्रदेश यह मांग करता है कि इस मामले की निष्पक्ष और विस्तृत जांच की जाए ताकि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो सके और योग्य उम्मीदवारों को उनका हक मिल सके। यह प्रदेश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता का विश्वास बहाल करने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
शिमला ! हिमाचल प्रदेश में विधानसभा द्वारा विभिन्न पदों पर भर्ती प्रक्रिया को लेकर गंभीर अनियमितताओं के आरोप सामने आए हैं। इन पदों में रिपोर्टर, क्लर्क, कनिष्ठ अनुशासनिक अधिकारी, कनिष्ठ कार्यालय सहायक (आईटी), आशुलिपिक, ड्राइवर, फ्रेशर, चौकीदार और माली जैसे पद शामिल हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) हिमाचल प्रदेश के प्रदेश सह मंत्री दिशांत जरयाल ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए इन अनियमितताओं की निष्पक्ष जांच की मांग की गई है।
सबसे पहले, इस भर्ती प्रक्रिया में पक्षपात के आरोप सामने आए हैं। विभिन्न पदों पर चयनित उम्मीदवारों के नाम सत्तारूढ़ दल के प्रभावशाली नेताओं के नजदीकी क्षेत्रों से हैं। उदाहरण के तौर पर, रिपोर्टर के चार पदों में से तीन पदों पर चंबा जिले के उम्मीदवारों का चयन किया गया, जिनमें से दो उम्मीदवार विधानसभा अध्यक्ष के निर्वाचन क्षेत्र से हैं। इसी प्रकार, क्लर्क के दस पदों में से दो पद विधानसभा अध्यक्ष के निर्वाचन क्षेत्र और तीन पद मुख्यमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र से भरे गए हैं।
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इसके अलावा, प्रश्नपत्र निर्माण से पहले ही उत्तर कुंजियों का निर्धारण कर लिया गया था, जो कि एक गंभीर अनियमितता है। ड्राइवर पद को छोड़कर बाकी सभी परीक्षाओं में यह पाया गया कि उत्तर कुंजी पहले से तैयार थी और प्रश्नपत्र उसी के आधार पर बनाए गए। सभी उत्तर कुंजियों में समानता थी और उनमें कोई अंतर नहीं था। यह स्थिति तब ही संभव हो सकती है जब पहले से उत्तर कुंजी तैयार की गई हो और फिर प्रश्नपत्र बनाया गया हो।
परिणामों की घोषणा में भी अनावश्यक देरी की गई। सत्यापन प्रक्रिया जुलाई 2024 में पूरी हो गई थी, लेकिन अंतिम परिणाम छह महीने बाद घोषित किए गए। इस देरी ने भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।इसके अतिरिक्त, चयनित उम्मीदवारों को पहले निजी रूप से परिणाम की सूचना दी गई, जबकि आधिकारिक वेबसाइट पर जानकारी अपलोड करने में देरी हुई। यह प्रक्रिया की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगाती है। जहां प्रदेश सरकार प्रदेश के युवाओं को रोजगार देने में नाकाम तो रही वहीं मुख्य मंत्री ने अपनी पत्नी और उपमुख्य मंत्री ने अपनी बेटी को रोजगार देने के साथ साथ इस भर्ती में धांधली करके अपने भाई भतीजे और अपने चहेतों को रोजगार देने का काम किया न्यायिक जांच में यदि सरकार के मुख्य स्तंभ भी संलिप्त पाए गए तो *अभाविप का सरकार से सीधा प्रश्न है कि क्या हमीरपुर चयन आयोग की भांति प्रदेश मुख्यमंत्री करप्शन पर zero tolerance formula apply करते हुए खुद के पद से इस्तीफा देने की घोषणा करेंगे।
राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप भी इस भर्ती प्रक्रिया पर लगे हैं। कुछ चयनित उम्मीदवारों के सत्तारूढ़ दल के नेताओं और आईटी सेल से जुड़े होने की खबरें सामने आई हैं। चयन के बाद इन उम्मीदवारों ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर सत्तारूढ़ दल के पेजों को अनफॉलो कर दिया। मुख्यमंत्री की पत्नी, जो स्वयं एक विधायक हैं, के चालक के पुत्र के चयन की खबरें भी आई हैं, जिससे राजनीतिक प्रभाव की संभावना को बल मिला है।
एक और गंभीर आरोप यह है कि कुछ उम्मीदवार टाइपिंग परीक्षा में स्वयं उपस्थित नहीं हुए, बल्कि उनकी जगह किसी और को भेजा गया। फिर भी उन्हें योग्य घोषित कर दिया गया। महत्वपूर्ण पदों के लिए टाइपिंग टेस्ट में असफल रहे कई उम्मीदवारों को भी योग्य करार दिया गया, जिससे पूरी प्रक्रिया की निष्पक्षता संदिग्ध हो गई है। जब राज्य चयन आयोग की भर्तियों में अनियमिताएं आई तो भ्रष्टाचार पर *zero tolerance formula* (शून्य सहनशीलता)प्रदेश के मुखिया द्वारा अपनाया जाता है । जो चयन आयोग उस समय भंग किया गया अभी तक भी इस आयोग के संचालन में प्रदेश सरकार विफल रही है। विद्यार्थी परिषद की मांग है हाल ही में विधानसभा में हुई फर्जी भर्ती की न्यायिक जांच की जाए और इस जांच में संलिप्त पाए जाने वाले सभी दोषियों पर उचित कार्यवाही करें।
इन सभी आरोपों से यह स्पष्ट होता है कि यह भर्ती प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 में निहित समानता और निष्पक्षता के अधिकारों का उल्लंघन करती है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद हिमाचल प्रदेश इन अनियमितताओं की गहन और निष्पक्ष जांच की मांग करता है ताकि योग्य उम्मीदवारों को न्याय मिल सके और जनता का विश्वास बहाल किया जा सके। प्रदेश के युवाओं के भविष्य के साथ इस प्रकार का खिलवाड़ किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद हिमाचल प्रदेश यह मांग करता है कि इस मामले की निष्पक्ष और विस्तृत जांच की जाए ताकि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो सके और योग्य उम्मीदवारों को उनका हक मिल सके। यह प्रदेश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता का विश्वास बहाल करने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
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