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शिमला, 29 अप्रैल [ विशाल सूद ] ! भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (आईआईएएस), शिमला में “समग्र शिक्षा: प्राचीन भारतीय शैक्षिक सिद्धांतों का पुनरुद्धार” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ आज ऐतिहासिक राष्ट्रपति निवास परिसर में हुआ। संगोष्ठी का उद्घाटन सरस्वती वंदना और दीप प्रज्वलन के साथ हुआ, जिसमें संस्थान के फेलो और अतिथियों ने भाग लिया। संगोष्ठी की संयोजिका डॉ. निबेदिता बनर्जी, फेलो आईआईएएस, ने विषय की प्रस्तावना प्रस्तुत की और गुरु-शिष्य परंपरा से लेकर आधुनिक चुनौतियों तक समग्र शिक्षा की आवश्यकता को रेखांकित किया। प्रमुख वक्ता प्रो. वी. एन. झा (पूर्व निदेशक, संस्कृत अध्ययन केंद्र, पुणे विश्वविद्यालय) ने अपने ऑनलाइन मुख्य भाषण में कहा कि प्राचीन भारतीय शिक्षा केवल ज्ञानार्जन नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण, नैतिक विकास और आध्यात्मिक संतुलन का मार्ग है।अध्यक्षीय संबोधन प्रो. शशिप्रभा कुमार (अध्यक्ष, शासी निकाय, आईआईएएस) ने ऑनलाइन माध्यम से प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि भारत की पारंपरिक शिक्षा प्रणाली आज भी प्रासंगिक है क्योंकि वह मानव जीवन को समरसता और उद्देश्य के साथ जोड़ती है। प्रेम चंद (पुस्तकालय सलाहकार) ने स्वागत भाषण प्रस्तुत किया। धन्यवाद ज्ञापन अखिलेश पाठक (जन संपर्क अधिकारी, आईआईएएस) द्वारा प्रस्तुत किया गया, जिन्होंने सभी वक्ताओं, प्रतिभागियों और तकनीकी दल के योगदान के लिए आभार व्यक्त किया। उद्घाटन सत्र के उपरांत “भारतीय शिक्षा की आधारशिला”, “प्राचीन शिक्षण पद्धति के स्तंभ”, एवं “समकालीन पाठ्यक्रम में पारंपरिक एकीकरण” जैसे विषयों पर सत्र आयोजित किए जा रहे हैं। संगोष्ठी का समापन 30 अप्रैल को अपराह्न वैदिक सत्र एवं समापन सत्र के साथ होगा।
शिमला, 29 अप्रैल [ विशाल सूद ] ! भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (आईआईएएस), शिमला में “समग्र शिक्षा: प्राचीन भारतीय शैक्षिक सिद्धांतों का पुनरुद्धार” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ आज ऐतिहासिक राष्ट्रपति निवास परिसर में हुआ। संगोष्ठी का उद्घाटन सरस्वती वंदना और दीप प्रज्वलन के साथ हुआ, जिसमें संस्थान के फेलो और अतिथियों ने भाग लिया। संगोष्ठी की संयोजिका डॉ. निबेदिता बनर्जी, फेलो आईआईएएस, ने विषय की प्रस्तावना प्रस्तुत की और गुरु-शिष्य परंपरा से लेकर आधुनिक चुनौतियों तक समग्र शिक्षा की आवश्यकता को रेखांकित किया।
प्रमुख वक्ता प्रो. वी. एन. झा (पूर्व निदेशक, संस्कृत अध्ययन केंद्र, पुणे विश्वविद्यालय) ने अपने ऑनलाइन मुख्य भाषण में कहा कि प्राचीन भारतीय शिक्षा केवल ज्ञानार्जन नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण, नैतिक विकास और आध्यात्मिक संतुलन का मार्ग है।अध्यक्षीय संबोधन प्रो. शशिप्रभा कुमार (अध्यक्ष, शासी निकाय, आईआईएएस) ने ऑनलाइन माध्यम से प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि भारत की पारंपरिक शिक्षा प्रणाली आज भी प्रासंगिक है क्योंकि वह मानव जीवन को समरसता और उद्देश्य के साथ जोड़ती है।
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प्रेम चंद (पुस्तकालय सलाहकार) ने स्वागत भाषण प्रस्तुत किया। धन्यवाद ज्ञापन अखिलेश पाठक (जन संपर्क अधिकारी, आईआईएएस) द्वारा प्रस्तुत किया गया, जिन्होंने सभी वक्ताओं, प्रतिभागियों और तकनीकी दल के योगदान के लिए आभार व्यक्त किया।
उद्घाटन सत्र के उपरांत “भारतीय शिक्षा की आधारशिला”, “प्राचीन शिक्षण पद्धति के स्तंभ”, एवं “समकालीन पाठ्यक्रम में पारंपरिक एकीकरण” जैसे विषयों पर सत्र आयोजित किए जा रहे हैं। संगोष्ठी का समापन 30 अप्रैल को अपराह्न वैदिक सत्र एवं समापन सत्र के साथ होगा।
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