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सिरमौर , 22 अगस्त ! देश भर में अलग सांस्कृतिक पहचान रखने वाले सिरमौर के गिरीपार जनजातीय क्षेत्र में आजकल गुग्गा पीर महाराज क्षेत्र के भ्रमण पर हैं। मान्यता है कि भादो महीने में जब सभी देवी देवता विश्राम के लिए पाताल लोक चले जाते हैं, तब गुग्गा पीर महाराज क्षेत्र की रक्षा करते हैं। सिरमौर जिले के लोग आज भी प्राचीन देव परंपराओं को संरक्षित रखे हुए हैं। यहां गिरी पर क्षेत्र में हर वर्ग की अनोखी सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराएं हैं। यह परंपराएं और रीति रिवाज लोगों को देव संस्कृति से जोड़कर रखते हैं। गुग्गा पीर महाराज की छड़ी यात्रा भी ऐसी ही परंपरा है, जो देश के अन्य भागों में देखने को नहीं मिलती। भादो महीने की संक्रांति पर पीर बाबा क्षेत्र के भ्रमण को निकलते हैं और लोगों को सुरक्षा और समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। यात्रा पर पहुंचे पीर बाबा को लोग श्रद्धा अनुसार आटा, गुड़, चावल और नगदी के तौर पर भेंट प्रदान करते हैं। साथ ही पीर महाराज की ज्योत के लिए घर से शुद्ध घी भी दिया जाता है। मान्यता है कि भादो महीने में क्षेत्र के देवी देवता विश्राम के लिए पाताल लोक में चले जाते हैं। जबकि इन दोनों क्षेत्र में बारिशों और सांप बिच्छू आदि जहरीले जानवरों का प्रकोप रहता है। ऐसे में गुग्गा पीर महाराज क्षेत्र के लोगों की रक्षा करते हैं और क्षेत्र के भर्मण पर निकलते हैं। गुग्गा पीर महाराज की छड़ी यात्रा की खासियत है कि इन देवता को हरिजन समाज के लोग यात्रा पर ले जाते हैं। बाबा को यात्रा पर ले जाने वाले लोगों को पिराठी कहा जाता है। पिराठी का मतलब पीर बाबा के प्रवर्तक या पुजारी होता है। गौरतलब यह बजी है कि उनके मंदिरों में भी हरिजन समाज के लोग ही पुजारी भी रहते हैं। पिर बाबा को भेंट देने वाले लोगों को की पीठ पर उनके प्रतीक चिन्ह लोहे के कोरडे से छु कर आशीर्वाद देते हैं। माना जाता है कि इस तरह से बाबा का आशीर्वाद लेने वालों की सांप बिच्छू जैसे जहरीले जानवरों और हिंसक जानवरों से रक्षा होती है। पीर बाबा की छड़ी हर गांव के हर घर तक पहुंचती है और ग्रामीण श्रद्धा अनुसार भेंट अर्पित करते हैं। इस दौरान देवता के गुर पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुनों पर पीर बाबा की प्राचीन गाथाएं और देव स्तुतियाँ गाकर लोगों को सुनते हैं। इन देव स्तुतियों के गायन से क्षेत्र में सुख, समृद्धि और सुरक्षा बनी रहती है। क्षेत्र के लोग इन परंपराओं से जुड़ी मान्यताओं को साक्षात महसूस भी करते हैं। यही कारण है कि आज भी गिरीपार जनजातीय क्षेत्र का हर व्यक्ति इन परंपराओं से जुड़ा हुआ है।
सिरमौर , 22 अगस्त ! देश भर में अलग सांस्कृतिक पहचान रखने वाले सिरमौर के गिरीपार जनजातीय क्षेत्र में आजकल गुग्गा पीर महाराज क्षेत्र के भ्रमण पर हैं। मान्यता है कि भादो महीने में जब सभी देवी देवता विश्राम के लिए पाताल लोक चले जाते हैं, तब गुग्गा पीर महाराज क्षेत्र की रक्षा करते हैं।
सिरमौर जिले के लोग आज भी प्राचीन देव परंपराओं को संरक्षित रखे हुए हैं। यहां गिरी पर क्षेत्र में हर वर्ग की अनोखी सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराएं हैं। यह परंपराएं और रीति रिवाज लोगों को देव संस्कृति से जोड़कर रखते हैं। गुग्गा पीर महाराज की छड़ी यात्रा भी ऐसी ही परंपरा है, जो देश के अन्य भागों में देखने को नहीं मिलती।
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भादो महीने की संक्रांति पर पीर बाबा क्षेत्र के भ्रमण को निकलते हैं और लोगों को सुरक्षा और समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। यात्रा पर पहुंचे पीर बाबा को लोग श्रद्धा अनुसार आटा, गुड़, चावल और नगदी के तौर पर भेंट प्रदान करते हैं। साथ ही पीर महाराज की ज्योत के लिए घर से शुद्ध घी भी दिया जाता है।
मान्यता है कि भादो महीने में क्षेत्र के देवी देवता विश्राम के लिए पाताल लोक में चले जाते हैं। जबकि इन दोनों क्षेत्र में बारिशों और सांप बिच्छू आदि जहरीले जानवरों का प्रकोप रहता है। ऐसे में गुग्गा पीर महाराज क्षेत्र के लोगों की रक्षा करते हैं और क्षेत्र के भर्मण पर निकलते हैं। गुग्गा पीर महाराज की छड़ी यात्रा की खासियत है कि इन देवता को हरिजन समाज के लोग यात्रा पर ले जाते हैं।
बाबा को यात्रा पर ले जाने वाले लोगों को पिराठी कहा जाता है। पिराठी का मतलब पीर बाबा के प्रवर्तक या पुजारी होता है। गौरतलब यह बजी है कि उनके मंदिरों में भी हरिजन समाज के लोग ही पुजारी भी रहते हैं। पिर बाबा को भेंट देने वाले लोगों को की पीठ पर उनके प्रतीक चिन्ह लोहे के कोरडे से छु कर आशीर्वाद देते हैं। माना जाता है कि इस तरह से बाबा का आशीर्वाद लेने वालों की सांप बिच्छू जैसे जहरीले जानवरों और हिंसक जानवरों से रक्षा होती है।
पीर बाबा की छड़ी हर गांव के हर घर तक पहुंचती है और ग्रामीण श्रद्धा अनुसार भेंट अर्पित करते हैं। इस दौरान देवता के गुर पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुनों पर पीर बाबा की प्राचीन गाथाएं और देव स्तुतियाँ गाकर लोगों को सुनते हैं।
इन देव स्तुतियों के गायन से क्षेत्र में सुख, समृद्धि और सुरक्षा बनी रहती है। क्षेत्र के लोग इन परंपराओं से जुड़ी मान्यताओं को साक्षात महसूस भी करते हैं। यही कारण है कि आज भी गिरीपार जनजातीय क्षेत्र का हर व्यक्ति इन परंपराओं से जुड़ा हुआ है।
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