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शिमला , 21 फरवरी [ विशाल सूद ] ! संस्कृत एवं संस्कृति संरक्षण संघ के प्रदेश अध्यक्ष आचार्य मदन शांडिल्य ने बताया कि शास्त्री की भर्ती के लिए अक्टूबर 2023 में सरकार द्वारा थोपे गए नियमों के विरोध में हमने कई प्रदर्शन किए। परन्तु जब सरकार के कान पर जूं तक न रेंगी। तो सभी शास्त्रियों ने 10 नवम्मर 2023 को न्यायालय का सहारा लिया। जिसमें हम 30 दिसंबर 2024 को विजय हुए। गौरतलब हो कि सरकार ने शास्त्री भर्ती के लिए बीए, एमे वालों को इसके लिए मान्य कर दिया था। जिसमें शास्त्री का अस्तित्व और संस्कृत महाविद्यालय खत्म होने की कगार पर आ गए थे। क्योंकि जब बीए में एक संस्कृत का विषय पढ़ने वाला शास्त्री भर्ती हो जाएगा। तो संस्कृत महाविद्यालय में पूर्ण रूप से संस्कृत के विषय की पढ़ाई करने का क्या औचित्य रह जाएगा और यहां पर पढ़ने वाले विद्यार्थी डिग्री कॉलेज का रुख करेंगे और संस्कृत महाविद्यालय अपने आप ही बंद हो जाएंगे । इसके विरोध में हमने न्यायालय में केश लगाया था । कि शास्त्री की भर्ती पुराने नियमों , जिसमें शास्त्री की उपाधि 50 % अंकों ओर टेट पास के साथ होती थी और संस्कृत महाविद्यालय से शास्त्री की उपाधि प्राप्त किए विद्यार्थियों को ही मौका दिया जाए। जिसमें बीए ,एमे वाले सम्मिलित न हो और यह केश 1 साल तक चलता रहा । उसके बाद माननीय न्यायालय ने हमारे पक्ष में फैसला देते हुए यह निर्णय सुनाया की शास्त्री की भर्ती के लिए केवल शास्त्री किए हुए विद्यार्थी ही मान्य होंगे। जिसमें बीएड की अनिवार्यता को खत्म कर दिया। ओर बीए , एमे और बीएड को बाहर कर दिया ओर पुराने नियमों से सरकार को शास्त्री भर्ती करने को कहा। परंतु सरकार की तानाशाही तो देखिए जिसने यह निर्णय आने के बाद भी दोबारा से न्यायालय के आदेश की अवहेलना करते हुए नए नियम बना दिए। जिसमें वही पुराना सिस्टम दोहरा दिया। जिसमें सामान्य शास्त्री को इस भर्ती से बाहर कर दिया और जरा भी यह नहीं सोचा कि न्यायालय ने क्या फैसला सुनाया है और इतने समय से शास्त्री किस लड़ाई को लड़ रहे थे। इतने समय में शास्त्रियों और न्यायालय का जो समय इस केस की सुनवाई का फैसला देते हुए लगा उसको एकदम से दरकिनार कर दिया। सरकार ने जहां एक तरफ शास्त्रियों के साथ कुठाराघात किया वहीं संस्कृत पढ़ने वाले विद्यार्थियों और संस्कृत महाविद्यालयों को खत्म करने का पूर्ण निर्णय ले लिया है और साथ में न्यायालय की एक तरह से अभेलना ही की जा रही है जैसे कि न्यायालय के द्वारा दिए गए निर्णय का उनके लिए कोई महत्व नहीं है। इसका यही मतलब हुआ कि सरकार न्यायालय से भी ऊपर है। अतः हम न्यायालय में दोबारा जाकर यह मांग करेंगे कि क्या इतने समय से लड़ी गई लड़ाई का और न्यायालय के द्वारा सुनाए गए निर्णय का सरकार पर कोई असर नहीं हुआ । क्या सरकार न्यायालय ओर लोगों से भी ऊपर हो गई है।
शिमला , 21 फरवरी [ विशाल सूद ] ! संस्कृत एवं संस्कृति संरक्षण संघ के प्रदेश अध्यक्ष आचार्य मदन शांडिल्य ने बताया कि शास्त्री की भर्ती के लिए अक्टूबर 2023 में सरकार द्वारा थोपे गए नियमों के विरोध में हमने कई प्रदर्शन किए। परन्तु जब सरकार के कान पर जूं तक न रेंगी। तो सभी शास्त्रियों ने 10 नवम्मर 2023 को न्यायालय का सहारा लिया। जिसमें हम 30 दिसंबर 2024 को विजय हुए।
गौरतलब हो कि सरकार ने शास्त्री भर्ती के लिए बीए, एमे वालों को इसके लिए मान्य कर दिया था। जिसमें शास्त्री का अस्तित्व और संस्कृत महाविद्यालय खत्म होने की कगार पर आ गए थे। क्योंकि जब बीए में एक संस्कृत का विषय पढ़ने वाला शास्त्री भर्ती हो जाएगा। तो संस्कृत महाविद्यालय में पूर्ण रूप से संस्कृत के विषय की पढ़ाई करने का क्या औचित्य रह जाएगा और यहां पर पढ़ने वाले विद्यार्थी डिग्री कॉलेज का रुख करेंगे और संस्कृत महाविद्यालय अपने आप ही बंद हो जाएंगे ।
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इसके विरोध में हमने न्यायालय में केश लगाया था । कि शास्त्री की भर्ती पुराने नियमों , जिसमें शास्त्री की उपाधि 50 % अंकों ओर टेट पास के साथ होती थी और संस्कृत महाविद्यालय से शास्त्री की उपाधि प्राप्त किए विद्यार्थियों को ही मौका दिया जाए। जिसमें बीए ,एमे वाले सम्मिलित न हो और यह केश 1 साल तक चलता रहा ।
उसके बाद माननीय न्यायालय ने हमारे पक्ष में फैसला देते हुए यह निर्णय सुनाया की शास्त्री की भर्ती के लिए केवल शास्त्री किए हुए विद्यार्थी ही मान्य होंगे। जिसमें बीएड की अनिवार्यता को खत्म कर दिया। ओर बीए , एमे और बीएड को बाहर कर दिया ओर पुराने नियमों से सरकार को शास्त्री भर्ती करने को कहा। परंतु सरकार की तानाशाही तो देखिए जिसने यह निर्णय आने के बाद भी दोबारा से न्यायालय के आदेश की अवहेलना करते हुए नए नियम बना दिए। जिसमें वही पुराना सिस्टम दोहरा दिया।
जिसमें सामान्य शास्त्री को इस भर्ती से बाहर कर दिया और जरा भी यह नहीं सोचा कि न्यायालय ने क्या फैसला सुनाया है और इतने समय से शास्त्री किस लड़ाई को लड़ रहे थे। इतने समय में शास्त्रियों और न्यायालय का जो समय इस केस की सुनवाई का फैसला देते हुए लगा उसको एकदम से दरकिनार कर दिया।
सरकार ने जहां एक तरफ शास्त्रियों के साथ कुठाराघात किया वहीं संस्कृत पढ़ने वाले विद्यार्थियों और संस्कृत महाविद्यालयों को खत्म करने का पूर्ण निर्णय ले लिया है और साथ में न्यायालय की एक तरह से अभेलना ही की जा रही है जैसे कि न्यायालय के द्वारा दिए गए निर्णय का उनके लिए कोई महत्व नहीं है। इसका यही मतलब हुआ कि सरकार न्यायालय से भी ऊपर है।
अतः हम न्यायालय में दोबारा जाकर यह मांग करेंगे कि क्या इतने समय से लड़ी गई लड़ाई का और न्यायालय के द्वारा सुनाए गए निर्णय का सरकार पर कोई असर नहीं हुआ । क्या सरकार न्यायालय ओर लोगों से भी ऊपर हो गई है।
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