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बिलासपुर ! वरिष्ठ साहित्यकार रामलाल पाठक ने अपनी हाल ही में प्रकाशित पुस्तक "लोकगीतों में जनजीवन" वीरवार को उपायुक्त बिलासपुर आबिद हुसैन सादिक, पुलिस अधीक्षक संदीप धवल और अतिरिक्त उपायुक्त डॉ. निधि पटेल को भेंट की। इस अवसर पर जिला प्रशासन के अधिकारियों ने पुस्तक के लिए रामलाल पाठक की सराहना करते हुए इसे लोक संस्कृति और परंपराओं को सहेजने का उत्कृष्ट प्रयास बताया।उपायुक्त ने की पुस्तक की प्रशंसाउपायुक्त बिलासपुर आबिद हुसैन सादिक ने पुस्तक की प्रशंसा करते हुए कहा कि "लोकगीतों में जनजीवन" पुस्तक जिला बिलासपुर की युवा पीढ़ी को समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर, लोकगीत, लोकनृत्य और लोक परंपराओं से परिचित कराने का अनूठा प्रयास है। उन्होंने कहा, "यह पुस्तक हमारी संस्कृति के विविध आयामों को समझने और उसे संजोने में सहायक सिद्ध होगी। रामलाल पाठक का यह प्रयास प्रेरणादायक है और आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ने में मदद करेगा।"पुलिस अधीक्षक ने सांस्कृतिक संरक्षण की सराहनापुलिस अधीक्षक संदीप धवल ने लेखक को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि हमारी संस्कृति और रीति-रिवाजों को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। उन्होंने कहा, "इस पुस्तक में संकलित कहानियां और तथ्य युवा पीढ़ी को हमारी पुरानी संस्कृति और परंपराओं को समझने में मदद करेंगे। यह प्रयास समाज और संस्कृति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।"अतिरिक्त उपायुक्त ने दी शुभकामनाएंअतिरिक्त उपायुक्त डॉ. निधि पटेल ने कहा कि रामलाल पाठक ने लोक संस्कृति के संरक्षण के लिए जो प्रयास किए हैं, वे अत्यंत प्रशंसनीय हैं। उन्होंने कहा, "यह पुस्तक न केवल हमारी सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने में सहायक है, बल्कि परंपराओं को अगली पीढ़ियों तक पहुंचाने का मार्ग भी प्रशस्त करती है।"लेखक की उपलब्धियां और पृष्ठभूमिगांव निहारखन बासला (चिड़की), डाकघर ब्रह्मपुखर, तहसील सदर निवासी रामलाल पाठक एक किसान और प्रख्यात लेखक हैं। उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में चार दशकों तक उल्लेखनीय योगदान दिया है। उनके दर्जनों लेख प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं जैसे वीर प्रताप, जनसत्ता, दैनिक ट्रिब्यून, अजीत समाचार और हिमाचल दस्तक में प्रकाशित हो चुके हैं। गिरिराज साप्ताहिक, हिमप्रस्त, पंचजगत, सोमसी और हिमभारती में भी उनका योगदान सराहनीय रहा है।पुस्तक का महत्व"लोकगीतों में जनजीवन" पुस्तक न केवल जिला बिलासपुर के लोकगीतों की समृद्ध परंपरा को उजागर करती है, बल्कि समाज के सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन की झलक भी प्रस्तुत करती है। इसमें जन्म संस्कार गीत, विवाह संस्कार गीत, लोक नाटक दहजा, मोहना गीत, गंभरी देवी की जीवनी, गुगा गाथा, फूला चंदेल के पारंपरिक लोक नृत्य और हिमाचल की बोलियों का संकलन किया गया है। यह पुस्तक लोक संस्कृति को जीवित रखने और इसे नई पीढ़ी तक पहुंचाने का एक उत्कृष्ट माध्यम है।
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