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धर्मशाला , 20 जुलाई ! पीएम मोदी ने जहां देश को वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा है, वहीं स्वास्थ्य विभाग ने भी इस दिशा में गंभीरता से प्रयास तेज किए हैं, लेकिन इसके बावजूद हिमाचल में आज भी टीबी रोगी अपने बर्तन अलग कर रहे हैं। प्रदेश में टीबी रोगियों के बर्तन अलग करने का खुलासा समाजशास्त्र के पीएचडी कर रहे स्टूडेंटस के शोध से हुआ है। जब पीएचडी स्टूडेंटस ने सर्वे किया तो शुरूआत में उन्हें इस तरह के तथ्य मिले हैं। स्वास्थ्य विभाग ने भी इस पर हैरानी जताई है, क्योंकि स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि दवाई लेने के बाद टीबी रोगी में संक्रमण नहीं रहता। ऐसे में जागरूकता के अभाव में टीबी रोगी ऐसा कर रहे हैं। हालांकि विभाग सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों में टीबी के प्रति जागरूकता फैला रहा है, इसके बावजूद शोध में हुए खुलासे से स्पष्ट है कि टीबी रोगियों में अभी भी जागरूकता का अभाव है। उधर जिला स्वास्थ्य अधिकारी (एमओएच) डा. आरके सूद का कहना है कि कोविड में तो डाक्टर मरीज को बर्तन-कमरा अलग करने के लिए कहते हैं, लेकिन टीबी मरीजों को ऐसा करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि 90 फीसदी ट्रांसमिशन डाइगनोज होने से पहले हो चुकी होती है, ऐसे में दवाई खाने के बाद टीबी रोगी संक्रामक नहीं रहता। ग्रामीण क्षेत्रों में अभी यह धारणा है कि टीबी मरीज को अपने बर्तन और कमरा अलग कर लेना चाहिए, इसमें युवाओं को आगे आकर बदलाव लाना होगा। इसके साथ ही अब टीबी को खत्म करने के लिए मेडिकल स्टोर में भी टीबी मुक्त के लिफाफों में देने की मुहिम शुरु की है ताकि लोग टीबी जैसी ही बीमारी से बच सकें और अपना इलाज समय पर करवाएं। एमओएच ने बताया कि हर साल 3200 टीबी मरीजों का उपचार होता है। मोबाइल हेल्थ टीमें फील्ड में लगातार कार्यरत हैं। यही नहीं टीबी चैंपियन यानी ठीक हो चुके टीबी मरीज भी अस्पतालों मेें, घरों में और फोन के माध्यम से टीबी मरीजों का मनोबल बढ़ा रहे हैं। टीबी मरीजों को गोद लेने के लिए निक्षय मित्र योजना भी शुरू की गई है, जिला कांगड़ा 400 निक्षय मित्रों ने 1250 टीबी मरीज गोद लिए हैं। एमओएच ने बताया कि राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर पर जिस तरह से ग्राम पंचायत विकास योजना में प्राथमिकताएं तय की जाती हैं, ऐसे में पंचायतों को टीबी मुक्त पंचायत करने की पहल राष्ट्रीय स्तर और प्रदेश स्तर पर की गई है। यह कहना गलत न होगा कि बीमारी, विकास को विपरीत दिशा में ले जाती है। ऐसे में फोरम फॉर टीबी फ्री हिमाचल में जन भागीदारी से अच्छी पहल हो रही है।
धर्मशाला , 20 जुलाई ! पीएम मोदी ने जहां देश को वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा है, वहीं स्वास्थ्य विभाग ने भी इस दिशा में गंभीरता से प्रयास तेज किए हैं, लेकिन इसके बावजूद हिमाचल में आज भी टीबी रोगी अपने बर्तन अलग कर रहे हैं।
प्रदेश में टीबी रोगियों के बर्तन अलग करने का खुलासा समाजशास्त्र के पीएचडी कर रहे स्टूडेंटस के शोध से हुआ है। जब पीएचडी स्टूडेंटस ने सर्वे किया तो शुरूआत में उन्हें इस तरह के तथ्य मिले हैं।
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स्वास्थ्य विभाग ने भी इस पर हैरानी जताई है, क्योंकि स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि दवाई लेने के बाद टीबी रोगी में संक्रमण नहीं रहता। ऐसे में जागरूकता के अभाव में टीबी रोगी ऐसा कर रहे हैं।
हालांकि विभाग सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों में टीबी के प्रति जागरूकता फैला रहा है, इसके बावजूद शोध में हुए खुलासे से स्पष्ट है कि टीबी रोगियों में अभी भी जागरूकता का अभाव है।
उधर जिला स्वास्थ्य अधिकारी (एमओएच) डा. आरके सूद का कहना है कि कोविड में तो डाक्टर मरीज को बर्तन-कमरा अलग करने के लिए कहते हैं, लेकिन टीबी मरीजों को ऐसा करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि 90 फीसदी ट्रांसमिशन डाइगनोज होने से पहले हो चुकी होती है, ऐसे में दवाई खाने के बाद टीबी रोगी संक्रामक नहीं रहता।
ग्रामीण क्षेत्रों में अभी यह धारणा है कि टीबी मरीज को अपने बर्तन और कमरा अलग कर लेना चाहिए, इसमें युवाओं को आगे आकर बदलाव लाना होगा। इसके साथ ही अब टीबी को खत्म करने के लिए मेडिकल स्टोर में भी टीबी मुक्त के लिफाफों में देने की मुहिम शुरु की है ताकि लोग टीबी जैसी ही बीमारी से बच सकें और अपना इलाज समय पर करवाएं।
एमओएच ने बताया कि हर साल 3200 टीबी मरीजों का उपचार होता है। मोबाइल हेल्थ टीमें फील्ड में लगातार कार्यरत हैं। यही नहीं टीबी चैंपियन यानी ठीक हो चुके टीबी मरीज भी अस्पतालों मेें, घरों में और फोन के माध्यम से टीबी मरीजों का मनोबल बढ़ा रहे हैं। टीबी मरीजों को गोद लेने के लिए निक्षय मित्र योजना भी शुरू की गई है, जिला कांगड़ा 400 निक्षय मित्रों ने 1250 टीबी मरीज गोद लिए हैं।
एमओएच ने बताया कि राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर पर जिस तरह से ग्राम पंचायत विकास योजना में प्राथमिकताएं तय की जाती हैं, ऐसे में पंचायतों को टीबी मुक्त पंचायत करने की पहल राष्ट्रीय स्तर और प्रदेश स्तर पर की गई है। यह कहना गलत न होगा कि बीमारी, विकास को विपरीत दिशा में ले जाती है। ऐसे में फोरम फॉर टीबी फ्री हिमाचल में जन भागीदारी से अच्छी पहल हो रही है।
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