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धर्मशाला , 30 मार्च ! भूमि वंश राजपूतों का कटोच वंश कांगड़ा के 489वें कटोच महाराजा ऐश्वर्या चंद्र कटोच का राजतिलक समारोह ऐतिहासिक कांगड़ा किले में मनाया गया सर्वप्रथम कांगड़ा किले में पहुंचने पर ढोल नगाडों के साथ महाराजा ऐश्वर्या चंद्र कटोच का स्वागत किया गया कांगडा किले में पहुंचने पर महाराजा ऐश्वर्या चंद्र कटोच ने हवन यज्ञ में भाग लिया यज्ञ में आहुतियां डालने के बाद विधिवत रूप से पूजा अर्चना की गई। राजतिलक आरंभ करने से पूर्व पड़ितों द्वारा विधिवत रूप से मंत्रों का उच्चारण व शंखनाद किया गया कटोच वंश के राजा ऐश्वर्य कटोच ने अंबिका माता मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद राज तिलक ग्रहण किया इसके बाद पूरे विधिविधान से राजस्थान में बिजापुर रियासत के राजा उदय सिंह ने 489वें कटोच महाराजा ऐश्वर्या चंद्र कटोच का राजतिलक किया नए राजा को गद्दी पर आसीन करने का यह सारा कार्यक्रम पहाड़ों के अभेद दुर्ग माने जाने वाले ऐतिहासिक कांगड़ा किले में हुआ। इस कार्यक्रम में कटोच पुरुष संतरी रंग की पगड़ी और महिलाएं संतरी रंग के दुपट्टे ओढ़कर शामिल हुईं इस राजतिलक में दूसरे राज्यों के महाराजा भी सम्मिलित हुए राज्यों के कटोच महाराजा दुनिया में सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले शाही राजवंश का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनका साम्राज्य अरब सागर के कच्छ के रण से लेकर के हिमालय में तिब्बत की सीमा तक फैला हुआ है कटोच राजानाका उस समय के हैं जब देवताओं का हमारे इतिहास में बहुत अधिक हिस्सा था और कटोच कारनामों का विवरण रामायण और महाभारत पुराणों में भी दर्ज है। 280वें राजनाका पोरस भारत में सिकंदर की उन्नति को रोकने में सफल रहे और युद्ध के बाद सिकंदर के सहयोगी राजा के राज्य तक्षशिला पर कब्जा कर लिया सम्राट अकबर ने कटोच की विशेष स्थिति को मान्यता दी जिसके बाइ 464वें राजानाका धर्म चंद कटोच द्वितीय महाराजा की उपाधि पाने वाले पहले व्यक्ति बने, बाद में इस शीर्षक की पुष्टि सानद द्वारा ब्रिटिश वायसराय ने भी की थी इतिहास में कई बार कांगड़ा के शासकों ने राजा नाका मां अंबिका देवी से, धर्म रक्षक,त्रिगर्थ, मियां, बड़ा राजनाका और छत्रपति नरेश जैसी उपाधि प्राप्त की लघु चित्रों के लिए प्रसिद्ध कांगड़ा को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। त्रिगर्थ साम्राज्य के शासकों ने यहां 3000 से अधिक मंदिरों का निर्माण करवाया जो एक बार अपने 282 रक्षात्मक घेरों के साथ अजेय था भारत के इस सबसे बड़े पहाड़ी किले को अंततः किसी आक्रमणकारी ने नहीं बल्कि 1905 के भूकंप ने गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया था राज तिलक समारोह के बाद महाराजा ऐश्वर्या चॉंद कटोच, सुमेर सिंह कटोच और जसमेर सिंह कटोच द्वारा लिखित पुस्तक कटोच :द त्रिगर्त एंपायर का अधिकारिक रूप से विमोचन किया महाराजा के अभिषेक के साथ शैलजा कुमारी कटोच को महारानी और उनके बेटे अंबिकेश्वर चंद कटोच को टिक्का राज के रूप में मान्यता दी गई। https://youtube.com/playlist?list=PLfNkwz3upB7OrrnGCDxBewe7LwsUn1bhs
धर्मशाला , 30 मार्च ! भूमि वंश राजपूतों का कटोच वंश कांगड़ा के 489वें कटोच महाराजा ऐश्वर्या चंद्र कटोच का राजतिलक समारोह ऐतिहासिक कांगड़ा किले में मनाया गया सर्वप्रथम कांगड़ा किले में पहुंचने पर ढोल नगाडों के साथ महाराजा ऐश्वर्या चंद्र कटोच का स्वागत किया गया कांगडा किले में पहुंचने पर महाराजा ऐश्वर्या चंद्र कटोच ने हवन यज्ञ में भाग लिया यज्ञ में आहुतियां डालने के बाद विधिवत रूप से पूजा अर्चना की गई।
राजतिलक आरंभ करने से पूर्व पड़ितों द्वारा विधिवत रूप से मंत्रों का उच्चारण व शंखनाद किया गया कटोच वंश के राजा ऐश्वर्य कटोच ने अंबिका माता मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद राज तिलक ग्रहण किया इसके बाद पूरे विधिविधान से राजस्थान में बिजापुर रियासत के राजा उदय सिंह ने 489वें कटोच महाराजा ऐश्वर्या चंद्र कटोच का राजतिलक किया नए राजा को गद्दी पर आसीन करने का यह सारा कार्यक्रम पहाड़ों के अभेद दुर्ग माने जाने वाले ऐतिहासिक कांगड़ा किले में हुआ।
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इस कार्यक्रम में कटोच पुरुष संतरी रंग की पगड़ी और महिलाएं संतरी रंग के दुपट्टे ओढ़कर शामिल हुईं इस राजतिलक में दूसरे राज्यों के महाराजा भी सम्मिलित हुए राज्यों के कटोच महाराजा दुनिया में सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले शाही राजवंश का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनका साम्राज्य अरब सागर के कच्छ के रण से लेकर के हिमालय में तिब्बत की सीमा तक फैला हुआ है कटोच राजानाका उस समय के हैं जब देवताओं का हमारे इतिहास में बहुत अधिक हिस्सा था और कटोच कारनामों का विवरण रामायण और महाभारत पुराणों में भी दर्ज है।
280वें राजनाका पोरस भारत में सिकंदर की उन्नति को रोकने में सफल रहे और युद्ध के बाद सिकंदर के सहयोगी राजा के राज्य तक्षशिला पर कब्जा कर लिया सम्राट अकबर ने कटोच की विशेष स्थिति को मान्यता दी जिसके बाइ 464वें राजानाका धर्म चंद कटोच द्वितीय महाराजा की उपाधि पाने वाले पहले व्यक्ति बने, बाद में इस शीर्षक की पुष्टि सानद द्वारा ब्रिटिश वायसराय ने भी की थी इतिहास में कई बार कांगड़ा के शासकों ने राजा नाका मां अंबिका देवी से, धर्म रक्षक,त्रिगर्थ, मियां, बड़ा राजनाका और छत्रपति नरेश जैसी उपाधि प्राप्त की लघु चित्रों के लिए प्रसिद्ध कांगड़ा को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है।
त्रिगर्थ साम्राज्य के शासकों ने यहां 3000 से अधिक मंदिरों का निर्माण करवाया जो एक बार अपने 282 रक्षात्मक घेरों के साथ अजेय था भारत के इस सबसे बड़े पहाड़ी किले को अंततः किसी आक्रमणकारी ने नहीं बल्कि 1905 के भूकंप ने गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया था राज तिलक समारोह के बाद महाराजा ऐश्वर्या चॉंद कटोच, सुमेर सिंह कटोच और जसमेर सिंह कटोच द्वारा लिखित पुस्तक कटोच :द त्रिगर्त एंपायर का अधिकारिक रूप से विमोचन किया महाराजा के अभिषेक के साथ शैलजा कुमारी कटोच को महारानी और उनके बेटे अंबिकेश्वर चंद कटोच को टिक्का राज के रूप में मान्यता दी गई।
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