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चम्बा , 03 अप्रेल [ शिवानी ] ! भाषा एवं संस्कृति विभाग, जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश द्वारा लाल चंद प्रार्थी जी की जयंती के अवसर पर वक्तव्य / शोध पत्र पाठन का आयोजन राजकीय महाविद्यालय चम्बा में किया गया। जिला भाषा अधिकारी, तुकेश शर्मा ने बताया कि इस अवसर पर विषय "लाल चंद प्रार्थी जी के जीवन तथा हिमाचल प्रदेश के गठन व स्वतन्त्रता संग्राम में योगदान" पर विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम की अध्यक्षता राजकीय महाविद्यालय चंबा के प्रधानाचार्य डॉ विद्या सागर शर्मा ने की। इन्होंने लाल चंद पार्थी कला केंद्र कुल्लू में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में अपनी स्मृतियों को विद्यार्थीयों के साथ सांझा किया तथा इस तरह के कार्यक्रम आगामी समय में महाविद्यालय में आयोजित करवाने के लिए कहा। मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार श्री शरत शर्मा ने लाल चंद प्रार्थी के जीवनवृत् पर प्रकाश डाला इसके साथ साथ डॉ संतोष कुमार सहायक आचार्य हिंदी ने भी अपने शोध पत्र के माध्यम से लाल चंद प्रार्थी के व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों पर चर्चा की। जिला भाषा अधिकारी ने बताया कि दोनों वक्ताओं ने उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि देशभक्त एवं समाजसेवक लाल चन्द प्रार्थी "चांद कुलवी" का जन्म कुल्लू की पुरानी राजधानी नग्गर में सन् 1916 के नये सम्वत् के दिन हुआ था। 1952-57 और 1962 से 1977 तक उन्होंने पंजाब और हिमाचल विधान सभाओं में कुल्लू क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया और इसी बीच नवम्बर, 1966 से 1977 तक हिमाचल के मन्त्री के रूप में सेवा करने के बाद 11 दिसम्बर, 1982 को उनका देहान्त हो गया उनके प्रति श्रद्धांजलियां अर्पित करते हुए लोगों ने उन्हें लेखक, कवि, कलाकार, शायर, चित्रकार, मूर्तिकार नर्तक, गायक, वैद्य, कविराज, समाज सेवक, देशभक्त, लोक नेता, राजनीतिज्ञ मन्त्री, महर्षि आदि अनेक नामों से सम्बोधित किया है। वक्ताओं ने कहा कि एक व्यक्ति को एक साथ इस कदर अनेक नामों और विशेषणों से सम्मानित करना उनके महान व्यक्तित्व और बहुमुखी प्रतिभा का स्वामी होने का परिचायक है और उनके चरित्र की विशिष्टता है। परन्तु इन गुणों के मूल में उनकी देशभक्ति और समाज सेवा की भावना रही है। ये दो उनके जन्मजात गुण थे। यह बात उनके जीवन की बाद की घटनाओं से स्पष्ट होती है। श्री प्रार्थी ने अपना जीवन समाज सेवक के रूप में आरम्भ किया। बचपन से ही सेवा भावना उनकी रग-रग में समा चुकी थी। असहाय और जरूरतमन्दों की वे सेवा के लिए सर्वदा तैयार रहते थे। इस उद्देश्य से उन्होंने अपने स्कूल के दिनों से ही संस्था चलाई थी, जिसका मुख्यालय उनका अपना गांव नगर था और इस मुख्यालय का नाम ही उन्होंने 'सेवा सदन' रखा था। वास्तव में समाज सेवा के प्रति यह अनुराग देशभक्ति के प्रति समर्पणता का प्रतिरूप था। उस समय यातायात के यहां कोई साधन न थे। पहाड़ों से घिरे इस दूर-दराज क्षेत्र में जन्म और पालन-पोषण पाकर भी वे स्वतन्त्रता संग्राम की लड़ाई से भलीभांति परिचित थे। उनके लाहौर जाने का बड़ा उद्देश्य स्वाधीनता संग्राम की मुख्य धारा से जुड़ना था। उस समय कुल्लू के कुछ और छात्र भी लाहौर में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, इन सब में मिलकर लाहौर में एक “कुल्लू पीपल्ज लीग" का गठन किया था जिसके लाला दुर्गादास, श्री देवी चन्द गुप्त सैक्रेटरी, श्री लाल चन्द प्रार्थी ज्वांइट सेक्रेटरी और श्री नीरत सिंह व लाहौर में वे क्रान्तिकारियों के बीच बड़े लोक प्रिय थे क्योंकि जलसे जलूसों में वे प्रेम और समाज सेवा की कविताएं और गीत पढ़ते और गाते थे । लाहौर में रहते हुए उन्होंने इस तरह की अनेक गजल, कविताएं, नज्में लिखी थीं जो उस समय की कई पत्र पत्रिकाओं में छपी थीं। देश-प्रेम, चरित्र निर्माण, सेवाभाव, उनकी रचनाओं का मुख्य विषय रहे। https://youtube.com/playlist?list=PLfNkwz3upB7OrrnGCDxBewe7LwsUn1bhs
चम्बा , 03 अप्रेल [ शिवानी ] ! भाषा एवं संस्कृति विभाग, जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश द्वारा लाल चंद प्रार्थी जी की जयंती के अवसर पर वक्तव्य / शोध पत्र पाठन का आयोजन राजकीय महाविद्यालय चम्बा में किया गया। जिला भाषा अधिकारी, तुकेश शर्मा ने बताया कि इस अवसर पर विषय "लाल चंद प्रार्थी जी के जीवन तथा हिमाचल प्रदेश के गठन व स्वतन्त्रता संग्राम में योगदान" पर विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम की अध्यक्षता राजकीय महाविद्यालय चंबा के प्रधानाचार्य डॉ विद्या सागर शर्मा ने की। इन्होंने लाल चंद पार्थी कला केंद्र कुल्लू में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में अपनी स्मृतियों को विद्यार्थीयों के साथ सांझा किया तथा इस तरह के कार्यक्रम आगामी समय में महाविद्यालय में आयोजित करवाने के लिए कहा।
मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार श्री शरत शर्मा ने लाल चंद प्रार्थी के जीवनवृत् पर प्रकाश डाला इसके साथ साथ डॉ संतोष कुमार सहायक आचार्य हिंदी ने भी अपने शोध पत्र के माध्यम से लाल चंद प्रार्थी के व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों पर चर्चा की। जिला भाषा अधिकारी ने बताया कि दोनों वक्ताओं ने उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि देशभक्त एवं समाजसेवक लाल चन्द प्रार्थी "चांद कुलवी" का जन्म कुल्लू की पुरानी राजधानी नग्गर में सन् 1916 के नये सम्वत् के दिन हुआ था।
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1952-57 और 1962 से 1977 तक उन्होंने पंजाब और हिमाचल विधान सभाओं में कुल्लू क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया और इसी बीच नवम्बर, 1966 से 1977 तक हिमाचल के मन्त्री के रूप में सेवा करने के बाद 11 दिसम्बर, 1982 को उनका देहान्त हो गया उनके प्रति श्रद्धांजलियां अर्पित करते हुए लोगों ने उन्हें लेखक, कवि, कलाकार, शायर, चित्रकार, मूर्तिकार नर्तक, गायक, वैद्य, कविराज, समाज सेवक, देशभक्त, लोक नेता, राजनीतिज्ञ मन्त्री, महर्षि आदि अनेक नामों से सम्बोधित किया है।
वक्ताओं ने कहा कि एक व्यक्ति को एक साथ इस कदर अनेक नामों और विशेषणों से सम्मानित करना उनके महान व्यक्तित्व और बहुमुखी प्रतिभा का स्वामी होने का परिचायक है और उनके चरित्र की विशिष्टता है। परन्तु इन गुणों के मूल में उनकी देशभक्ति और समाज सेवा की भावना रही है। ये दो उनके जन्मजात गुण थे। यह बात उनके जीवन की बाद की घटनाओं से स्पष्ट होती है।
श्री प्रार्थी ने अपना जीवन समाज सेवक के रूप में आरम्भ किया। बचपन से ही सेवा भावना उनकी रग-रग में समा चुकी थी। असहाय और जरूरतमन्दों की वे सेवा के लिए सर्वदा तैयार रहते थे। इस उद्देश्य से उन्होंने अपने स्कूल के दिनों से ही संस्था चलाई थी, जिसका मुख्यालय उनका अपना गांव नगर था और इस मुख्यालय का नाम ही उन्होंने 'सेवा सदन' रखा था।
वास्तव में समाज सेवा के प्रति यह अनुराग देशभक्ति के प्रति समर्पणता का प्रतिरूप था। उस समय यातायात के यहां कोई साधन न थे। पहाड़ों से घिरे इस दूर-दराज क्षेत्र में जन्म और पालन-पोषण पाकर भी वे स्वतन्त्रता संग्राम की लड़ाई से भलीभांति परिचित थे। उनके लाहौर जाने का बड़ा उद्देश्य स्वाधीनता संग्राम की मुख्य धारा से जुड़ना था। उस समय कुल्लू के कुछ और छात्र भी लाहौर में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, इन सब में मिलकर लाहौर में एक “कुल्लू पीपल्ज लीग" का गठन किया था जिसके लाला दुर्गादास, श्री देवी चन्द गुप्त सैक्रेटरी, श्री लाल चन्द प्रार्थी ज्वांइट सेक्रेटरी और श्री नीरत सिंह व लाहौर में वे क्रान्तिकारियों के बीच बड़े लोक प्रिय थे क्योंकि जलसे जलूसों में वे प्रेम और समाज सेवा की कविताएं और गीत पढ़ते और गाते थे । लाहौर में रहते हुए उन्होंने इस तरह की अनेक गजल, कविताएं, नज्में लिखी थीं जो उस समय की कई पत्र पत्रिकाओं में छपी थीं। देश-प्रेम, चरित्र निर्माण, सेवाभाव, उनकी रचनाओं का मुख्य विषय रहे।
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