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चम्बा , 13 अप्रैल [ शिवानी ] ! जिला चंबा की महिलाओं को प्राकृतिक संसाधनों के माध्यम से आजीविका से जोड़ने के लिए प्रयास तेज हो गए हैं। इन महिलाओं को पहाड़ ट्रस्ट की ओर से आस्ट्रेलियन हेल्थ कालेज आफ वाइब्रेंट थैरेपीज तथा नाट आन मैप संस्था की ओर से नाट आन मैप के एचटूओ आनंदम कम्यूनिटी सेंटर में 21 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया जा रहा है। इसमें जिला की महिलाएं भाग ले रही हैं। इन्हें आस्ट्रेलियन हेल्थ कालेज आफ वाइब्रेंट थैरेपीज की सुविधाकर्ता एवं संस्थापक विमला राव तथा पहाड़ ट्रस्ट के संस्थापक अनूप, मुख्य तकनीकी सलाहकार डा. एससी शर्मा की ओर से पारंपरिक कृषि सहित पौष्टिक आहार व अन्य विषयों पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसे वाइव्रेंट बोवेन थैरेपी का नाम दिया गया है। विमला राव व डा. एससी शर्मा ने महिलाओं को बताया कि अधिक से अधिक किसान कैमिकल युक्त फार्मिंग से हटकर पारंपरिक संस्टेनेबल फार्मिंग की तरफ आएं। इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि इसका मकसद यही है कि जो उक्त महिलाओं को प्रेक्टिशनर बनाने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है, ताकि यहां से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद ये महिलाएं पारंपरिक कृषि को लेकर अपने परिवार या गांव में एक्सपर्ट के तौर पर सेवाएं दे सकें। इसके साथ ही इन्हें पौष्टिक आहार के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी जा रही है। पहाड़ ट्रस्ट के संस्थापक अनूप ने बताया कि पहाड़ ट्रस्ट का एमथ्रीएम फाउंडेशन और डीओसीसी के सहयोग से छोटे और सीमांत किसानों के साथ करीब 30 से अधिक किसानों के साथ एक हजार से अधिक किसानों के साथ मिलकर जलवायु अनुकूल कृषि, टिकाऊ खाद्य प्रणाली, आजीविका और पारंपरिक कृषि को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे हैं। महिलाओं को बताया गया कि पारंपरिक भोजन ही सर्वोत्तम भोजन है। पहले यह हम सबके खान-पान का अहम हिस्सा होता था, जो कि हमारे स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का कार्य करता था। लेकिन, धीरे-धीरे इसमें बदलाव आया तथा पारंपरिक खेती का स्थान कैमिकल युक्त खेती ने ले लिया, जो कि सही नहीं है। पौष्टिक अनाज में कोदरा, कोणी, रामदाना, पारंपरिक दालों सहित अन्य मोटा अनाज शामिल है, जो कि लोकल फार्मिंग सिस्टम से लगभग हट गए हैं। जितना हम कैमिकल का इस्तेमाल कर रहे हैं। उतना ही हम अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करते हैं। ऐसे में उक्त पारंपरिक फसलों के प्रति किसानों को प्रेरित करने के लिए कार्य किया जा रहा है। इसको लेकर चंबा के करीब 40 गांवों के किसानों के साथ भी कार्य किया जा रहा है। उधर, एचटूओ आनंदम की संचालक रेणु शर्मा ने बताया कि उक्त प्रशिक्षण कार्यक्रम में महिलाएं बढ़-चढ़कर भाग ले रही हैं। इन्हें शिविर में काफी कुछ सीखने को मिल रहा है। महिलाओं में काफी उत्साह है।महिलाओं को आजीविका से जोड़ने के लिए एचटूओ आनंदम में कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है, ताकि ये महिलाएं प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद अपनी आर्थिकी को सुधार सकें। इसका शिविर का मकसद यह भी है कि किसान अधिक से अधिक इन पारंपरिक फसलों को उगाएं, ताकि लोगों को कैमिकल रहित खाद्य सामग्री मिल सके।
चम्बा , 13 अप्रैल [ शिवानी ] ! जिला चंबा की महिलाओं को प्राकृतिक संसाधनों के माध्यम से आजीविका से जोड़ने के लिए प्रयास तेज हो गए हैं। इन महिलाओं को पहाड़ ट्रस्ट की ओर से आस्ट्रेलियन हेल्थ कालेज आफ वाइब्रेंट थैरेपीज तथा नाट आन मैप संस्था की ओर से नाट आन मैप के एचटूओ आनंदम कम्यूनिटी सेंटर में 21 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया जा रहा है। इसमें जिला की महिलाएं भाग ले रही हैं।
इन्हें आस्ट्रेलियन हेल्थ कालेज आफ वाइब्रेंट थैरेपीज की सुविधाकर्ता एवं संस्थापक विमला राव तथा पहाड़ ट्रस्ट के संस्थापक अनूप, मुख्य तकनीकी सलाहकार डा. एससी शर्मा की ओर से पारंपरिक कृषि सहित पौष्टिक आहार व अन्य विषयों पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
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इसे वाइव्रेंट बोवेन थैरेपी का नाम दिया गया है। विमला राव व डा. एससी शर्मा ने महिलाओं को बताया कि अधिक से अधिक किसान कैमिकल युक्त फार्मिंग से हटकर पारंपरिक संस्टेनेबल फार्मिंग की तरफ आएं। इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि इसका मकसद यही है कि जो उक्त महिलाओं को प्रेक्टिशनर बनाने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है, ताकि यहां से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद ये महिलाएं पारंपरिक कृषि को लेकर अपने परिवार या गांव में एक्सपर्ट के तौर पर सेवाएं दे सकें।
इसके साथ ही इन्हें पौष्टिक आहार के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी जा रही है। पहाड़ ट्रस्ट के संस्थापक अनूप ने बताया कि पहाड़ ट्रस्ट का एमथ्रीएम फाउंडेशन और डीओसीसी के सहयोग से छोटे और सीमांत किसानों के साथ करीब 30 से अधिक किसानों के साथ एक हजार से अधिक किसानों के साथ मिलकर जलवायु अनुकूल कृषि, टिकाऊ खाद्य प्रणाली, आजीविका और पारंपरिक कृषि को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे हैं।
महिलाओं को बताया गया कि पारंपरिक भोजन ही सर्वोत्तम भोजन है। पहले यह हम सबके खान-पान का अहम हिस्सा होता था, जो कि हमारे स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का कार्य करता था। लेकिन, धीरे-धीरे इसमें बदलाव आया तथा पारंपरिक खेती का स्थान कैमिकल युक्त खेती ने ले लिया, जो कि सही नहीं है। पौष्टिक अनाज में कोदरा, कोणी, रामदाना, पारंपरिक दालों सहित अन्य मोटा अनाज शामिल है, जो कि लोकल फार्मिंग सिस्टम से लगभग हट गए हैं।
जितना हम कैमिकल का इस्तेमाल कर रहे हैं। उतना ही हम अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करते हैं। ऐसे में उक्त पारंपरिक फसलों के प्रति किसानों को प्रेरित करने के लिए कार्य किया जा रहा है। इसको लेकर चंबा के करीब 40 गांवों के किसानों के साथ भी कार्य किया जा रहा है। उधर, एचटूओ आनंदम की संचालक रेणु शर्मा ने बताया कि उक्त प्रशिक्षण कार्यक्रम में महिलाएं बढ़-चढ़कर भाग ले रही हैं। इन्हें शिविर में काफी कुछ सीखने को मिल रहा है। महिलाओं में काफी उत्साह है।महिलाओं को आजीविका से जोड़ने के लिए एचटूओ आनंदम में कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है, ताकि ये महिलाएं प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद अपनी आर्थिकी को सुधार सकें। इसका शिविर का मकसद यह भी है कि किसान अधिक से अधिक इन पारंपरिक फसलों को उगाएं, ताकि लोगों को कैमिकल रहित खाद्य सामग्री मिल सके।
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