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चम्बा ! जिला चम्बा में आठ मार्च को चम्बा दिवस में मनाया जाएगा। इस दिन से जिला चम्बा के लोगों को चम्बा के स्वर्णिम इतिहास के बारे में जागरूक करने के लिए अभियान शुरू होंगे। गणमान्य व्यक्तियों के प्रेरणादायक संबोधन होंगे, जो चम्बा के गौरवशाली अतीत और विकास यात्रा पर प्रकाश डालेंगे। इस अभियान के साथ युवाओं को भी जोड़ा जाएगा। यह ऐतिहासिक दिन आठ मार्च 1948 को चंबा रियासत के भारत में विलय की याद दिलाता है, जिसने हिमाचल प्रदेश की नियति को आकार दिया। इसका हिमाचल गजेटियर के पेज नंबर 159 व 160 में भी जिक्र है। हिमाचल निर्माण के समय पंजाब के राजनेताओं का यह भरसक प्रयास था कि पूर्वी पंजाब की पहाड़ी रियासतों को पंजाब में मिला दिया जाए। किंतु चंबा के लोगों ने इसके विरुद्ध जोरदार आवाज उठाई। लोगों का तर्क था कि पहाड़ी क्षेत्रों का रहन-सहन, संस्कृति, भाषा आदि पंजाब से भिन्न है। अतः इसे अलग पहाड़ी राज्य बनाया जाना चाहिए। भारत सरकार के रियासतों संबंधी मंत्रालय के सचिव वीपी मेनन ने अपनी पुस्तक भारतीय रियासतों के भारत में विलय की कहानी में इसका उल्लेख किया है। जाहिर है कि चंबा यदि पंजाब में चला जाता तो हिमाचल प्रदेश का गठन आर्थिक रूप से व्यावहारिक न माना जाता। जिस तर्क का प्रयोग उस समय पंजाब के नेताओं द्वारा किया जा रहा था, उससे तो हिमाचल का गठन ही न हो पाता। किंतु चंबा ने हिमाचल गठन के लिए अग्रणी भूमिका निभाई और सोलन में हुई सभा में प्रजामंडल के प्रतिनिधियों ने भाग लेकर हिमाचल गठन में योगदान दिया। तीन जिले महासू, सिरमौर और मंडी पूर्वी छोर पर थे और चंबा जिला पश्चिमी छोर पर था। बीच में पंजाब का कांगड़ा जिला पड़ता था। उस समय की राजनीति में चंबा का विशेष महत्त्व राज्य की आर्थिक व्यावहारिकता सिद्ध करने के लिए था। यदि चंबा हिमाचल में विलय न करता तो चंबा पंजाब के गुरदासपुर जिला का हिस्सा बनता। उसकी वजह से जो महासू, सिरमौर व मंडी दूसरी तरफ थे। जो कि अपने अपने खर्चे खुद पूरे नहीं कर सकता था। ऐसे में हिमाचल का निर्माण हो पाना असंभव था। इसी बीच चंबा के हिमाचल में विलय के फैसले से ही हिमाचल प्रदेश के राज्य निर्माण का सपना साकार हो पाया था। हिमाचल प्रदेश के गठन में जिला चंबा की अग्रणी भूमिका रही है। इसके कई प्रमाण भी मौजूद हैं। गठन के बाद हिमाचल अग्रणी राज्य तो बना लेकिन हिमाचल के निर्माण में चंबा जिला का जो योगदान था, उसे या तो भुला दिया गया या फिर कमतर आंका गया। अनदेखी के कारण 117 पिछड़े जिलों में इसका नाम है। आज भी जिला चंबा आकांक्षी जिला के रूप में माना गया है। जबकि चंबा का जब हिमाचल में विलय हुआ था, उस समय यह अग्रणी जिला था। कुलभूषण उपमन्यु, पर्यावरणविद् एवं इतिहास के जानकार। चंबा दिवस के उपलक्ष्य पर आठ मार्च को कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। इस दिवस के बारे में चंबा के हर व्यक्ति को जानकारी होनी चाहिए। चंबा जिला के युवा वह समुदाय बढ़ चढ़कर भाग लें। आइए, इस गर्वीले इतिहास को संजोएं और चंबा की अमिट विरासत का जश्न मनाएं। चंबा के इतिहास में यह अविस्मरणीय दिवस है। मनुज शर्मा, सह संस्थापक नॉट ऑन मैप चंबा दिवस को धूमधाम से मनाने के लिए तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। यह एक ऐसा दिवस है, जिसके बारे में सभी चंबा वासियों को जानकारी होना जरूरी है। सुरेंद्र ठाकुर, क्यूरेटर भूरी सिंह संग्रहालय चंबा।चंबा दिवस जिला चंबा के ऐतिहासिक महत्व का दिवस है। चंबा के इतिहास को जानने का दिन है। चंबा के इतिहास को पर्यटन से जोड़ने के लिए कार्य किया जा रहा है। राजीव मिश्रा, जिला पर्यटन अधिकारी चंबा।
चम्बा ! जिला चम्बा में आठ मार्च को चम्बा दिवस में मनाया जाएगा। इस दिन से जिला चम्बा के लोगों को चम्बा के स्वर्णिम इतिहास के बारे में जागरूक करने के लिए अभियान शुरू होंगे। गणमान्य व्यक्तियों के प्रेरणादायक संबोधन होंगे, जो चम्बा के गौरवशाली अतीत और विकास यात्रा पर प्रकाश डालेंगे। इस अभियान के साथ युवाओं को भी जोड़ा जाएगा। यह ऐतिहासिक दिन आठ मार्च 1948 को चंबा रियासत के भारत में विलय की याद दिलाता है, जिसने हिमाचल प्रदेश की नियति को आकार दिया। इसका हिमाचल गजेटियर के पेज नंबर 159 व 160 में भी जिक्र है। हिमाचल निर्माण के समय पंजाब के राजनेताओं का यह भरसक प्रयास था कि पूर्वी पंजाब की पहाड़ी रियासतों को पंजाब में मिला दिया जाए। किंतु चंबा के लोगों ने इसके विरुद्ध जोरदार आवाज उठाई। लोगों का तर्क था कि पहाड़ी क्षेत्रों का रहन-सहन, संस्कृति, भाषा आदि पंजाब से भिन्न है। अतः इसे अलग पहाड़ी राज्य बनाया जाना चाहिए। भारत सरकार के रियासतों संबंधी मंत्रालय के सचिव वीपी मेनन ने अपनी पुस्तक भारतीय रियासतों के भारत में विलय की कहानी में इसका उल्लेख किया है। जाहिर है कि चंबा यदि पंजाब में चला जाता तो हिमाचल प्रदेश का गठन आर्थिक रूप से व्यावहारिक न माना जाता। जिस तर्क का प्रयोग उस समय पंजाब के नेताओं द्वारा किया जा रहा था, उससे तो हिमाचल का गठन ही न हो पाता। किंतु चंबा ने हिमाचल गठन के लिए अग्रणी भूमिका निभाई और सोलन में हुई सभा में प्रजामंडल के प्रतिनिधियों ने भाग लेकर हिमाचल गठन में योगदान दिया। तीन जिले महासू, सिरमौर और मंडी पूर्वी छोर पर थे और चंबा जिला पश्चिमी छोर पर था। बीच में पंजाब का कांगड़ा जिला पड़ता था। उस समय की राजनीति में चंबा का विशेष महत्त्व राज्य की आर्थिक व्यावहारिकता सिद्ध करने के लिए था। यदि चंबा हिमाचल में विलय न करता तो चंबा पंजाब के गुरदासपुर जिला का हिस्सा बनता। उसकी वजह से जो महासू, सिरमौर व मंडी दूसरी तरफ थे। जो कि अपने अपने खर्चे खुद पूरे नहीं कर सकता था। ऐसे में हिमाचल का निर्माण हो पाना असंभव था। इसी बीच चंबा के हिमाचल में विलय के फैसले से ही हिमाचल प्रदेश के राज्य निर्माण का सपना साकार हो पाया था।
हिमाचल प्रदेश के गठन में जिला चंबा की अग्रणी भूमिका रही है। इसके कई प्रमाण भी मौजूद हैं। गठन के बाद हिमाचल अग्रणी राज्य तो बना लेकिन हिमाचल के निर्माण में चंबा जिला का जो योगदान था, उसे या तो भुला दिया गया या फिर कमतर आंका गया। अनदेखी के कारण 117 पिछड़े जिलों में इसका नाम है। आज भी जिला चंबा आकांक्षी जिला के रूप में माना गया है। जबकि चंबा का जब हिमाचल में विलय हुआ था, उस समय यह अग्रणी जिला था।
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कुलभूषण उपमन्यु, पर्यावरणविद् एवं इतिहास के जानकार।
चंबा दिवस के उपलक्ष्य पर आठ मार्च को कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। इस दिवस के बारे में चंबा के हर व्यक्ति को जानकारी होनी चाहिए। चंबा जिला के युवा वह समुदाय बढ़ चढ़कर भाग लें।
आइए, इस गर्वीले इतिहास को संजोएं और चंबा की अमिट विरासत का जश्न मनाएं। चंबा के इतिहास में यह अविस्मरणीय दिवस है।
मनुज शर्मा, सह संस्थापक नॉट ऑन मैप
चंबा दिवस को धूमधाम से मनाने के लिए तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। यह एक ऐसा दिवस है, जिसके बारे में सभी चंबा वासियों को जानकारी होना जरूरी है।
सुरेंद्र ठाकुर, क्यूरेटर भूरी सिंह संग्रहालय चंबा।
चंबा दिवस जिला चंबा के ऐतिहासिक महत्व का दिवस है। चंबा के इतिहास को जानने का दिन है। चंबा के इतिहास को पर्यटन से जोड़ने के लिए कार्य किया जा रहा है।
राजीव मिश्रा, जिला पर्यटन अधिकारी चंबा।
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